राजस्थान में उदयपुर से करीब 82 किलोमीटर दूर स्थित कुम्भलगढ़ का किला बेहद खूबसूरती और मजबूती के लिए विख्यात है। इस किले की दीवार करीब 36 किलोमीटर लम्बी हैं और इसे ग्रेट वॉल ऑफ चाइना के बाद दुनिया की दूसरी और भारत की सबसे लम्बी दीवार कहा जाता है।
इस दीवार की खासियत है कि इस पर 300 मन्दिर बने हुए हैं और यह अंतरिक्ष से नहीं दिखता। इस किले को ‘अजेयगढ’ भी कहा जाता था, किसी शत्रु के लिए विजय प्राप्त करना दुष्कर था।
कुम्भलगढ़ किले का इतिहास
इस लम्बी दीवार का निर्माण राणा कुम्भा ने कुम्भलगढ़ किले को शत्रुओं से रक्षा के लिए करवाया था। कुम्भलगढ़, राजस्थान के राजसमन्द जिले में स्थित है। यह स्थान राज्य के दक्षिणी भाग में स्थित है और कुम्भलमेर के नाम से भी जाना जाता है। इस किले के साथ भारतीय इतिहास का गहरा नाता रहा है।
यहां पृथ्वीराज चौहान से लेकर महाराणा सांगा का बचपन बीचा था। महाराणा उदय सिंह को भी पन्ना धाय ने इसी दुर्ग में छिपा पालन-पोषण किया था। हल्दीघाटी के युद्ध में पराजय के बाद महाराणा प्रताप काफी समय तक इस दुर्ग में रहे थे। यह दुर्ग न केवल मेवाड़ की संकटकालीन राजधानी रहा है, बल्कि ऐतिहासिक विरासत की शान और शूरवीरों की स्थली रहा है।
वास्तुपरक है कुम्भलगढ़ किला
इस दुर्ग के बारे में कहा जाता है कि यह वास्तुशास्त्र के नियमों के मुताबिक बना है। इस दुर्ग में प्रवेश द्वार, प्राचीर, जलाशय, बाहर जाने के लिए संकटकालीन द्वार, महल, मंदिर, आवासीय इमारतें, यज्ञ वेदी, स्तम्भ, छत्रियां आदि वास्तु को ध्यान में रखकर बनाए गए थे।
विख्यात पर्यटन स्थल
कालान्तर में किला और इसके नजदीक एक अभयारण्य की वजह से यह क्षेत्र एक विख्यात पर्यटन स्थल बन गया है। कुम्भलगढ़ का किला ही नहीं, यहां बने हुए कई शानदार महल पर्यटकों को लुभाते हैं।
कुम्भलगढ़ वन्यजीव अभयारण्य
कुम्भलगढ़ वन्यजीव अभयारण्य राजस्थान में एकमात्र ऐसी जगह है जहां भेड़िये पाए जाते हैं। करीब 578 वर्ग किमी क्षेत्र में फैले इस अभयारण्य में हायना, सियार, तेंदुए, आलसी भालू, जंगली बिल्लियाँ, साँभर, नीलगाय, चौसिंघा (चार सींग वाले हिरण), चिंकारा, और खरगोश भी पाए जाते हैं। यह अभयारण्य पूरी तरह से कुम्भलगढ़ किले को घेरता है।
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