Friday 25 March 2016

आपके सपने बड़े होने चाहिए – Inspirational Life Story of Dhirubhai Ambani

अगर आप अपने सपनों का निर्माण नहीं करेंगे तो कोई और अपने सपने पूरे करने में आपका उपयोग करेगा”
“If you don’t build your dream, someone else will hire you to help them build theirs.”
ये शब्द हैं उस व्यक्ति के जिसे अपने गुजरने के सालों बाद भी भारत ही नहीं, बल्कि विश्व के किसी भी कोने में किसी परिचय की ज़रुरत नहीं| ये बोल हैं स्वर्गीय धीरजलाल हीराचंद अम्बानी उर्फ़ धीरुभाई अम्बानी (Dhirubhai Ambani) के|
उनके व्यक्तित्व और उनके आत्मविश्वास का आकलन उनके शब्दों से किया जा सकता है|  धीरुभाई अम्बानी ने जीवन में अनेक मुसीबतों का सामना किया और जिंदगी की कठिनाइयों से संघर्ष कर भारत के सबसे बड़े उद्योगपति बन गए और इसी कारण वे करोड़ों लोगों के प्रेरणास्त्रोत हैं|

धीरुभाई का बचपन – Childhood Days of Dhirubhai Ambani 

उनका जन्म 28 December 1932 को जूनागढ जिले के चरोड़ गाँव के एक बेहद मध्यम्वार्गीय गुजराती परिवार में हुआ| उनके पिता का नाम हीराचंद अम्बानी तथा माता का नाम जमनाबेन था| उनके पिता गाँव की ही एक पाठशाला में अध्यापक थे| परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी जिससे धीरुभाई छोटी सी उम्र से ही भली भांति परिचित थे| यह भी मुमकिन है कि अपने परिवार को कठिन परिस्थितियों से जूझता हुआ देख ही बालक धीरू को एक दिन बहुत बड़ा इंसान बनने की प्रेरणा मिली हो|

अम्बार लगा दूंगा

धीरुभाई अम्बानी का आत्मविश्वास शायद बचपन से ही अपने चरम पर था, इस बात का साक्ष्य एक वाकये से मिलता है| एक दिन धीरुभाई की माँ ने उन्हें और उनके बड़े भाई को पिता के साथ पैसा कमाने में मदद करने को कहा तब धीरुभाई ने माँ से गुस्से में कहा कि “तुम बार बार पैसे के बारे में क्यों कहती हो, एक दिन मैं पैसे का अम्बार लगा दूंगा|”

गाँव के मेलों में भजिए बेचे 

धीरुभाई ने स्कूल के दिनों में ही उद्यमिता की दुनिया में पहला कदम रख दिया था और उन्होंने अपने गाँव में हर हफ्ते लगने वाले मेलों में भजिए बेचना शुरू किया| वे जितना भी पैसा भजिए बेचकर कमाते, सब अपनी माँ को लाकर दे देते|

करियर और व्यवसाय की शुरुआत

धीरुभाई अम्बानी ने अपनी पहली नौकरी यमन के शहर अदन में की|  वे वहा की कंपनी अ. बेससे में 300 रूपये के वेतन पर एक छोटी सी नौकरी करते थे| वहीँ से धीरुभाई के मन में व्यवसाय की बारीकियां जानने को लेकर उत्सुकता पैदा हुई| यहीं से वे अ. बेससे में नौकरी करते हुए एक गुजराती व्यावसायिक कंपनी में काम करने लगे और वहां से उन्होंने लेखा जोखा, वित्तीय विभाग का काम और शिपिंग पेपर्स तैयार करना सीखा|
उसी दौरान आज़ादी के लिए हुए यमनी आन्दोलन ने aden में रह रहे भारतियों के लिए व्यवसाय के सारे दरवाज़े बंद कर दिए| तब 1958 में धीरुभाई भारत वापस आ गए और मुंबई में व्यवसाय शुरू करने के लिए अवसर तलाशने लगे| चूँकि धीरुभाई व्यापार में एक बड़ा निवेश करने में असक्षम थे तो मसालो और शक्कर का व्यापार रिलायंस कमर्शियल कारपोरेशन के नाम से शुरू किया| इस व्यापार के पीछे धीरुभाई का लक्ष्य मुनाफे पर ज्यादा ध्यान न देते हुए ज्यादा से ज्यादा उत्पादों का निर्माण और उनकी गुणवत्ता पर था|
इसके बाद धीरुभाई ने सूत के व्यापार में हाथ डाला जिसमे पहले के व्यापर की तुलना में ज्यादा हानि की आशंका थी| पर वे धुन के पक्के थे उन्होंने इस व्यापार को एक छोटे स्टार पर शुरू किया और जल्द ही अपनी काबिलियत के बल बूते धीरुभाई बॉम्बे सूत व्यापारी संगठन के संचालक बन गए|
उनकी दूरदर्शिता और जल्द व प्रभावी फैसले लेने के गुण ने इस व्यापार में उन्हें अत्यधिक लाभ दिलाया| ये लाभ भविष्य में धीरुभाई को रिलायंस टेक्सटाइल्स कंपनी की स्थापना करने में काम आया| इस मोके को भुनाते हुए उन्होंने 1966 में अहमदाबाद के नरोदा में भी एक टेक्सटाइल कंपनी की स्थापना की|  वे हर हफ्ते मुंबई से अहमदाबाद कंपनी का विश्लेषण लेने आते थे और हर कर्मचारी की तकलीफ सुनते और उसे हल करने को आश्वस्त करते| उनका लक्ष्य सिर्फ कंपनी की स्थापना नही बल्कि सबसे अच्छा और सबसे ज्यादा सूत निर्यात करना था|
धीरे-धीरे रिलायंस टेक्सटाइल सबसे बेहतर गुणवत्ता वाला सूत प्रदान करने वाली कंपनी के तौर पर उभर चुकी थी| पर यहाँ भी एक परेशानी थी – दुकानदार बडी मीलों से कपडा खरीदने को तैयार थे पर रिलायंस से नहीं| धीरुभाई भी कहाँ हार मानने वाले थे, उन्होंने अपना कपडा सड़कों पर बेचना शुरू किया| उनके इस साहसी स्वभाव ने सबको प्रभावित किया| जल्द ही उनका कपडा “वीमल” बाज़ार का सबसे ज्यादा बिकने वाला कपडा बन गया| इस तरह रिलायंस कंपनी सालों तक तरक्की के मार्ग पर अग्रसर रही| बाद में रिलायंस ने अपनी अन्य दूरसंचार, संरचना और उर्जा की शाखाओं की भी स्थापना की|
धीरुभाई अम्बानी की कुछ प्रेरक उपलब्धियां
रिलायंस भारत की पहली ऐसी कंपनी थी जिसे फोर्ब्स ने विश्व की सबसे सफल 500 कंपनियों की सूची में शामिल किया था| उनके कभी न हार मानने वाले स्वभाव के बल पर उन्होंने कई सम्मानीय पुरस्कार प्राप्त किये| इनमे से मैन ऑफ़ द २० सेंचुरी, डीन मैडल और कॉर्पोरेट एक्सीलेंस का लाइफ टाइम अचीवमेंट पुरस्कारसबसे प्रमुख हैं| उन्हें ए.बी.एल.एफ. (एशियन बिज़नस लीडरशिप फोरम) द्वारा भी ए बी एल एफ ग्लोबल एशियन अवार्ड प्रदान किया गया था|
आज रिलायंस देश ही नही बल्कि दुनिया की सबसे बड़ी कंपनियों में से एक है| धीरुभाई 6 जुलाई 2002 को दुनिया को अलविदा कह गए पर अपने पीछे अपनी जिंदगी की एक कहानी छोड़ गए जो करोड़ों लोगों को प्रेरित करती रहेगी कि अगर एक छोटे से गाँव का लड़का अपने आत्मविश्वास के बल पर करोड़ों लोगों की जिदगी बदल सकता है तो इस दुनिया में असंभव कुछ भी नहीं

कहानी – तितली का संघर्ष :- Motivational Hindi Story of Butterfly

एक बार एक लड़के ने पेड़ के पास एक तितली के खोल को देखा| उसने देखा कि तितली खोल से बाहर निकलने के लिए बार बार संघर्ष कर रही थी| उस लड़के को तितली पर दया आ गयी और उसने तितली की मदद करने की कोशिश की| उस लड़के ने खोल को तोड़ दिया और तितली को बाहर निकाल दिया| लेकिन कुछ ही देर में तितली मर गयी|
लड़के को यह समझ नहीं आ रहा था कि वह तितली कैसे मर गयी और उसने सारी बात अपनी माँ को बताई| माँ ने उसे कहा – “संघर्ष ही प्रकृति का नियम है और खोल से बाहर आने के लिए तितली को जो संघर्ष करना पड़ता है उससे उसके पंखों और शरीर को मजबूती मिलती है| तुमने तितली की मदद करके उसे संघर्ष करने का मौका नहीं दिया जिससे उसकी मृत्यु हो गयी”|

 

कहानी – जिराफ का संघर्ष – Inspirational Hindi Story of Giraffe

जिराफ का बच्चा जब जन्म लेता है तो वह माँ के गर्भ से 10 फीट की ऊंचाई से पीठ के बल गिरता है। गिरने के बाद उसमें उठकर खड़े होने की शक्ति नहीं होती|
जब जिराफ का बच्चा खड़ा नहीं होता तो उसकी माँ उसे बार-बार जोर-जोर से लातें मारती है और वह बच्चा तब तक यह लातें खता रहता है जब तक कि वह उठकर खड़ा नहीं हो जाता| और कुछ देर बाद वह बच्चा डगमगाते हुए उठ कर खड़ा हो जाता है|
अगर जिराफ़ के बच्चे को अपनी माँ से यह लाते खाने को न मिले तो वह खड़े होने से पहले ही शेर या अन्य शिकारी जानवर के पेट में पहुँच जाए|
तितली और जिराफ की तरह हर प्राणी को संघर्षों का सामना करना पड़ता है| प्रकृति का यही नियम हैं और जो व्यक्ति इस नियम को समझ जाता है वह सफल हो जाता है|
सफलता की हर कहानी एक असफलता की कहानी भी है| जो व्यक्ति असफलता को चुनौती समझकर स्वीकार करता है वह असफलता को हरा देता है और जो व्यक्ति असफलता से डर जाता है वह कुछ नहीं कर पाता|

Never Give Up – कभी हार मत मानो


बीच रास्ते से लौटने का कोई फायदा नहीं क्योंकि लौटने पर आपको उतनी ही दूरी तय करनी पड़ेगी जितनी दूरी तय करने पर आप लक्ष्य तक पहुँच सकते है|

“अधिकतर लोग ठीक उसी समय हार मान लेते है, जब सफलता उन्हें मिलने वाली होती है| विजय रेखा बस एक कदम दूर होती है, तभी वे कोशिश करना बंद कर देते है| वे खेल के मैदान से अंतिम मिनट में हट जाते है, जबकि उस समय जीत का निशान उनसे केवल एक फुट के फासले पर होता है|”                                                                                                                                               —— एच रोस पेरोट

कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती ……………

लहरों से डरकर नौका पार नहीं होती
कोशिश करने वालों की हार नहीं होती
नन्ही चीटी जब दाना लेकर चलती है
चढ़ती दीवारों पर, सौ बार फिसलती है
मन का विश्वास रगों मे साहस भरता है
चढ़कर गिरना, गिरकर चढ़ना न अखरता है
आखिर उसकी मेहनत बेकार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की हार नहीं होती
डुबकियां सिन्धु मे गोताखोर लगाता है,
जा जा कर खाली हाथ लौटकर आता है
मिलते नहीं सहज ही मोंती गहरे पानी में,
बढ़ता दुगना उत्साह इसी हैरानी में.
मुट्ठी उसकी खाली हर बार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की हार नहीं होती
असफलता एक चुनौती है, इसे स्वीकार करो,
क्या कमी रह गई, देखो और सुधार करो .
जब तक ना सफल हो, नींद चैन को त्यागो तुम,
संघर्ष का मैदान छोड़कर मत भागो तुम.
कुछ किए बिना ही जय जयकार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की हार नहीं होती

—  हरिवंश राय बच्चन – Harivansh Rai Bachchan

Romantic shayari

1.वो बेवफा हमारा इम्तेहा क्या लेगी…
मिलेगी नज़रो से नज़रे तो अपनी नज़रे ज़ुका लेगी…
उसे मेरी कबर पर दीया मत जलाने देना…
वो नादान है यारो… अपना हाथ जला लेगी.
2.घर से बाहर कोलेज जाने के लिए वो नकाब मे निकली….
सारी गली उनके पीछे निकली…
इनकार करते थे वो हमारी मोहबत से……….
और हमारी ही तसवीर उनकी किताब से निकली…
3.उस जैसा मोती पूरे समंद्र में नही है,
वो चीज़ माँग रहा हूँ जो मुक़्दर मे नही है,
किस्मत का लिखा तो मिल जाएगा मेरे ख़ुदा,
वो चीज़ अदा कर जो किस्मत में नही है…
4.जादू है उसकी हर एक बात मे,
याद बहुत आती है दिन और रात मे,
कल जब देखा था मैने सपना रात मे,
तब भी उसका ही हाथ था मेरे हाथ मे…
5.कौन कहता है हम उसके बिना मर जायेंगे
हम तो दरिया है समंदर में उतर जायेंगे
वो तरस जायेंगे प्यार की एक बून्द के लिए
हम तो बादल है प्यार के…किसी और पर बरस जायेंगे
6.शायर तो हम है शायरी बना देंगे
आपको शायरी मे क़ैद कर लेंगे|
कभी सूनाओ हमे अपनी आवाज़
आपकी आवाज़ को हम ग़ज़ल बना देंगे.||
7.मंज़िलो से अपनी डर ना जाना,
रास्ते की परेशानियों से टूट ना जाना,
जब भी ज़रूरत हो ज़िंदगी मे किसी अपने की,
हम आपके अपने है ये भूल ना जाना.
8.ना हम कुछ कह पाते हे, ना वोह कुछ कह पाते हे.
एक दूसरे को देखकर गुजर जाया करते हे.
कब तक चलता रहेंगा ये सिलसिला,
ये सोचकर दिन गुजर जाया करते हे
9.आप को इस दिल में उतार लेने को जी चाहता है,
खूबसूरत से फूलो में डूब जाने को जी चाहता है,
आपका साथ पाकर हम भूल गए सब मैखाने,
क्योकि उन मैखानो में भी आपका ही चेहरा नज़र आता है…
10.आँखों मे आ जाते है आँसू,
फिर भी लबो पे हसी रखनी पड़ती है,
ये मोहब्बत भी क्या चीज़ है यारो,
जिस से करते है उसीसे छुपानी पड़ती है…

Thursday 24 March 2016

Politics shayari

1.वोटों के खातिर निकले हैं ,
कुछ सौदागर लेके बण्डल नोटों के ,………….
बिकती है हर चीज यहाँ ,
खरीदार है यहाँ कुछ नेता वोटों के ,………….
भ्रष्टाचार को भ्रष्टाचार के नाम से ही बेच रहे है ,
काले धन के है ये वेपारी वोटों के। ………….
गरीबी वो क्या मिटायेंगे ? मिटाकर गरीबों को ,
जमीन भी बेच खायी , ये सौदागर हैं वोटों के……………..
वोटों के खातिर निकले हैं ,
कुछ सौदागर लेके बण्डल नोटों के
2.मिलते रहे हैं मंत्री ऐसे , देखो तो जरा ये , देश को मंतर रहे हैं कैसे …………..
चुनाव में खड़े हैं संत्री ऐसे , देखों तो ज़रा , जैसे देश का पेरा ये ही दे रहे हो जैसे ………….
कुछ तो हैं ठेकेदार ऐसे , चले हैं लेने ठेका ५ साल का देश का जैसे …………….
दिखा रहे हैं चाँद ऐसे , मांगते हैं लेके कटोरा वोटों की भीखों का जैसे ………………..
दिखा रहे हैं झाड़ू ऐसे , निकले हो करने देश को साफ़ जैसे ……………….
खिला रहे हैं कमल ऐसे , कीचड़ की चाय पिलाने देश को निकले हो जैसे ………………….
दिखा रहे हो पंजा ऐसे , जकड लिया हो दम घोटने को देश को जैसे …………………….
मिलते रहे हैं मंत्री ऐसे , देखो तो जरा ये , देश को मंतर रहे हैं कैसे ……………………
काश मिलजाए इस देश को मंत्री ऐसे , राम ने भी देश कभी चलाया था जैसे 
3.कितने ही वादे करवालो, नेताओं का क्या जाने वाला
अभी जैसा चाहो उन्हें नचाओ, उनका क्या जाने वाला
कुछ दिन और बचे हैं जितनी चाहो खुशी मनालो
फिर तो रोना ही रोना है ईश्वर भी नहीं बचाने वाला
4.आज कल हर जगह वोटों के भिखारी निकल पड़े हैं
कुटिल राजनीति के मझे हुए खिलाडी निकल पड़े हैं
गलतियों का दोष औरों पर मढने का जो चलन है
उसे निभाने के लिये बहुत से अनाड़ी निकल पड़े हैं
जनता को वो झूंठे वादे अब फिर से मिलने वाले हैं
हम जनता के सेवक हैं झांसे फिर से मिलने वाले हैं
दुनिया की सारी सुख सुबिधायें अब जनता की हैं
सावधान जनता अब वोटों के भिक्षुक मिलने वाले हैं
5.इंडिया की राजनीति में मचा हुआ घमासान है
लोक सभा की सीट ही जैसे हर नेता का अरमान है
टिकेट पाने होड़ में रिश्ते नाते भूल रह्रे है
पुरानी पार्टी छोड़ कर नए गठबंधन जोड़ रहे हैं
महाराष्ट्र हो या बिहार हर रिश्ते पड़ी दरार
वोट पाने की चाह में कर रहे एक दूजे पर वार
6.वो मौतों का खेल खेलते हैं बस राजनीति चमकाने को
वो जनता को गोट समझते हैं अपनी शतरंज बिछाने को
वो क्या जाने जनता की पीढ़ा,
जो जनता को केवल मोहरा समझें, जो होते हैं पिटवाने को

Happy Holi 2016.(होली के रंगों से बचने के घरेलू नुस्खे)

होली के दिन अक्सर आप सभी को इस बात की चिंता रहती है कि यदि चेहरे पर गाढ़ा रंग लग जाए तो यह जल्दी से कैसे छूटेगा। ऐसे में अब आपको परेशान होने की जरूरत नहीं है। होली के रंगों को कैसे हटाना है चेहरे से वैदिक वाटिका आपको बता रही है कुछ आसान घरेलू टिप्स। जितना हो सके पहले तो अच्छे रंगों को प्रयोग करें। क्योंकि अक्सर कुछ लोग कैमिकल रंगों को इस्तेमाल जान बूझकर करते हैं जिससे सीधे आपकी त्वचा खराब हो सकती है।


होली में आपको यदि गहरे रंग लग जाएं तो आप कुछ उपायों को करें।

दालों का स्क्रब

घर में मौजूद दालों और चावलों को आपस में मिला लें और इसे मोटा-मोटा यानि दरदरा पीस लें। और अब इसमें दही, दूध और नींबू की बूंदे मिलाए। और आखिर में तेल की कुछ बूंदे भी डाल दें। और इस स्क्रब को चेहरे पर या शरीर के किसी भी अंग जहां पर रंग अधिक लगा हो वहां पर लगाएं।

खीरा

आप खीरे के इस्तेमाल कर के भी गहरे रंगों को शरीर से हटाया जा सकता है।

पपीता

पपीता भी चेहरे पर लगे गहरे रंग को आसानी से हटा सकते है। कच्चे पपीते के छिलके को उतार कर चेहरे पर मलें। एैसा करने से गाढा रंग आसानी से उतर जाता है।

नींबू का स्क्रब

यदि रंग हल्का लगा हो तो आप नींबू को काटकर उसे नमक या चीनी में मिलाकर चेहरे और शरीर पर लगा सकते हों। इस तरीके से भी होली का रंग आसानी से छूट जाता है।

दही

होली के हल्के गहरे रंग को हटाने के लिए आप दही को लगाएं। इससे आपकी त्वचा को भी पोषण मिलेगा और रंग भी आसानी से निकल जाएगा।

Virat Kohli Success Story in Hindi | विराट कोहली ने सफलता कैसे पायी????

indian Test Captain Virat Kohli के बारे मे कोन नहीं जनता लेकिन उनके इस Success की Story बहुत कम लोग ही जानते है। विराट कोहली का जन्म दिल्ली मे 5 नवम्बर 1988 को हुआ था। उन्होने अपनी शिक्षा विशाल भारती स्कूल से हासिल की थी। उनके माता का नाम सरोज कोहली और पिता का नाम प्रेम कोहली था। इसके अलावा उनकी एक बड़ी बहन और एक बड़ा भाई भी है। उनके पिता एक वकील थे और उनकी मौत दिसम्बर 2008 मे हो गई थी।
विराट कोहली के करियर की सुरुवात :
विराट कोहली को गहरा सदमा तब लगा जब वो कर्नाटक के खिलाफ, दिल्ली के और से एक रणजी मैच खेल रहे थे, और Team को उनकी जरूरत थी। उसी दोरान उनको पता चला की उनके पिता की मौत हो गई है। इतना बड़ा सदमा लगने के बावजूद उन्होने अपना Confidence नहीं खोने दिया, उन्होने हिम्मत दिखते हुवे अपने Team के लिए एक अच्छी पारी खेलकर अपने Team को मुसीबतों से उबारा। उसके बाद वो सीधे घर गए और अपने पिता का अंतिम संस्कार किया। तब उनकी उम्र मात्र 18 साल ही थी।
इस घटना के बाद उन्होने ऐसी Commitment दिखाई की वो success की सीढ़ी चढ़ते गए। विराट कोहली ने Indian Team के लिए बड़ी – बड़ी पारियाँ खेलकर Team को जीत दिलाई है। विराट कोहली 2008 विश्व कप विजयी Under 19 टीम के कप्तान भी रह चुके है। विराट कोहली का एकदिवसीय अंतर्रास्त्रीय मैचो मे पदार्पण 18 अगस्त 2008 को श्रीलंका के खिलाफ हुआ था। इसके अलावा वो IPL मैचो मे बंगलौर Team की और से खेलते है।


विराट का अनतर्रास्त्रीय कैरियर :
विराट का सबसे पहला अंतरारस्तरीय दौरा 2008 मे Idea Cup के लिए चुना गया था। जब सचिन और सहवाग चोट के कारण नहीं खेल पाये थे तो विराट को Idea Cup श्रीलंका दौरे के लिए Team मे जगह मिली थी। उन्होने अपने पहले मैच मे मात्र 12 रन बनाए थे। लेकिन चौथे एकदिवसीय मैच मे उन्होने सतक जड़ कर Team मे अपनी जगह बनाई। कोहली को जून 2010 मे जीम्ब्बाबे के खिलाफ टी20 श्रिंखला मे पहली बार खेलने का मौका मिला था।

Indian Test Team मे विराट का पदार्पण :
विराट का टेस्ट क्रिकेट मे पदार्पण 20 जून 2011 को वेस्टइंडीज के खिलाफ हुआ था। उनको 288वा कैप मिला था। कोहली को टेस्ट क्रिकेट के सुरुवात मे काफी संघर्ष करना पड़ा था। लेकिन धीरे – धीरे उन्होने अपने प्रदर्शन को सुधारा और आज वे Indian Test Team के Captain है। हाल ही मे उन्होने दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ टेस्ट सिरीस भी जीती है।
विराट कोहली Indian Cricket Team की वो कड़ी है जो Indian Cricket को नई बुलंदियों तक पहुंचाएगी, और इनसे हम युवा वर्ग के लोंगों को प्रेरणा मिलती रहेगी।

इस कहानी से हमे यही प्रेरणा मिलती है की परेशानिया हर किसी के जीवन मे आती है, ये हम पे Dippend करता है की हम उस परेशानी को कैसे लेते है। उस परेशानी से हार मान कर बैठ जाते है या उसी को अपनी मंजिल की सीढ़ी बना कर ऊपर उठते है।

मित्रो आशा करता हूँ की ये कहानी आपको पसंद आई होगी और इस से आपको प्रेरणा भी मिली होगी।
आप इस कहानी को दूसरों तक भी पहुंचाए इसे Share कर के ताकि दूसरे भी इसका लाभ ले सके।

दिल लगाकर काम करने से मिलेगी सफलता

एक गाँव में घोड़े की दौड़ का आयोजन किया गया | सभी
लोग घोड़े खरीद कर लाये | एक व्यक्ति भी race comptition में भाग लेने के लिए comptition
के 2 महीने पहले एक बहुत तेज दोड़ने वाला घोड़ा ले आया | लाने के बाद उसे बहुत जोशों के साथ अस्तबल
में बांधा और अस्तबल पर एक बोर्ड लगा दिया – ‘’दुनिया का सबसे तेज दौड़ने वाला घोड़ा
‘’
लेकिन इसके बाद न तो उस घोड़े की सही से
देखभाल की ,न ही नियमित व्यायाम कराया और न ही उसे चुस्त दुरुस्त रहने के लिए
प्रशिक्षित किया | कुछ दिनों बाद जब दौड़ का आयोजन हुआ तो वह घोड़ा जो first place पर
होता ,लेकिन अभ्यास न कर पाने की वजह से वो सबसे पीछे रहा |
इससे यह स्पष्ट है कि यदि सही कोशिश न की
जाये , तो प्रतिभा में भी जंग लग जाती है ,उसमे निखार आने की बात करना भी बेईमानी
है |
race comptiton में जब कोई खिलाड़ी स्वर्ण पदक
जीतता है तो उस आप और हम यही सोचते हैं कि 20 सेकेंड की दौड़ से उसे कितना कुछ मिल
गया ,पर यह क्या सच है इस जीत के पीछे उसकी कई महीनो,सालो की मेहनत होती है |
दृढ संकल्प और मेहनत के बिना जीत को सोचना भी
एक बुरी संकल्पना है | सिर्फ खेल के क्षेत्र में ही नही पढाई के क्षेत्र में यदि
आप अपने अपनी मेहनत को अभ्यास करके आप को अपने आप को sharp बनाना होगा |
अगर आप आधे मन से कोशिश करते हैं तो मेरा एक
टिप्स आप ध्यान में ले लीजिये आप कोशिश भी न कीजिये | अगर कोई भी काम हमें करना है
तो हम क्यों न पूरे मन से करें |

और एक बात , जीवन में कोई भी लक्ष्य सिर्फ
सोचने से हासिल नही होता ,बल्कि योजना बद्ध तरीके से की गई कोशिश ही आप को मंजिल
तक पहुंचाती है |

हमारी टीम बड़ी ही मेहनत से एक-एक पोस्ट बनाती है,और आपके सुझाव हमारे लिए बहुत ही उपयोगी हैं |आप अपनी राय हमें आपने comment के माध्यम से जरुर दे |
अपना अमूल्य समय देकर पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए धन्यवाद |
आपका दिन मंगलमय हो

ऊंट और सियार | Unth aur Siyar – Intreasting Story

एक गाँव मे एक ऊंट रहा
करता था। वह प्रतिदिन पास ही के एक हरे-भरे जंगल मे चरने जाता था। ऊंट बड़ा
सीधा-साधा था।
  एक सियार उसका मित्र था।
सियार बड़ा चालाक था। वह ऊंट की सवारी भी करता था और वक्त-बेवक्त उसके लिए संकट भी
पैदा करता था। ऊंट को चूँकि आज तक कोई बड़ा नुकसान बही हुआ था,
इसलिए वह भी उसके उल्टी-सीधी हरकतों पे ज्यादा ध्यान नहीं देता था।
एक दिन सियार ने उस से
कहा- “ऊंट भाई! पास ही में एक बड़ा खेत है, जिसमे मोटी-मोटी ककड़िया लगी हुई हैं। चलो खाने
चलें, इधर मे भी सड़ा-गला स्वादधीन भोजन कर के उकता चुका हूँ। इसी बहाने
खान-पान में बदलाव हो जाएगा।“
सियार ने कुछ इस ढंग से
ककड़ियो की तारीफ की कि ऊंट ककड़ियाँ खाने को बैचेन हो उठा और उसके साथ चल दिया।
ककड़ियों के बारे मे
सोच-विचार कर रास्ते भर ऊंट के मुह में पानी आता रहा।
खेत पार पहुँच कर सियार ने ककड़ियाँ खाना सुरू कर दीं। छोटा जीव होने के कारण उसका पेट जल्दी भर गया, किन्तु ऊंट को पेट भरने में अधिक समय लग रहा था।
इधर, पेटभर खाना खाने के बाद सियार अपने आदत के अनुसार ‘हुंवा-हूंवा’ की आवाज़ कर के चिलाने लगा।
   ऊंट ने उसे माना किया, मगर वह बोला- “क्या करू ऊंट भाई! कुछ खा कर जब तक मैं हुवास न कर लू मुझे चैन नहीं मिलता। मैं अपनी आदत से मजबूर हूँ। “कह कर वह फिर से ‘हुआ-हुआ’ करने लगा।
उसकी आवाज़ सुन कर खेत का मालिक कुछ ही देर मे लाठी लेकर वहाँ आ पहुंचा। सियार ने उसे देख लिया। छोटा होने के कारण वह झड़ियों के बीच होता हुआ फुर्ती से भाग निकला, किन्तु बचते-बचते भी ऊंट बेचारा उसकी पकड़ मे आ गया।
किसान ने उसके चार-पाँच लट्ठ जमा दिये। इस घटना से ऊंट सियार से नाराज हो गया और सियार से बात करना तथा मिलना-जुलना छोड़ दिया।
कुछ दिन सियार भी उससे मिलने नहीं आया, किन्तु उसे किसान के हनथो लट्ठ खाते देख बहुत मज़ा आया था। सियार के लिए बस इतना ही काफी नहीं था, वह फिर किसी अवसर की प्रतीक्षा करने लगा की कोई अवसर और मिले जिससे ऊंट के पिटाई का मज़ा फिर से लिया जाए।
एक दिन वह ऊंट से मिला और बड़ी विनम्रता से बोला- “ऊंट भाई, उस दिन की घटना के लिए मैं क्षमा मांगता हूँ, वो क्या है की मुझे कुछ खाने के बाद हुवास की आदत है, किन्तु अब तुम नाराजगी छोड़ो, उस दिन की नाराजगी को भूल जाओ और मेरे साथ स्वादिस्त ककड़ियों का आनंद लेने चलो। मैं वादा करता हूँ की अब नहीं चीलउगा। तुम चलो मेरे साथ और भरपेट खाने का लुफ्ट उठाओ। इस बार हम उस पुराने खेत में नहीं चलेंगे। उधर नदी के पार मैंने और एक खेत देखा है, वहाँ चलेंगे।”
ऊंट बड़ा भोला था। वह सियार के चिकनी-चुपड़ी बातों मे फिर से आ गया और उसके साथ नदी पर कर के उस खेत मे चला गया। सियार ने जल्दी-जल्दी अपना पेट भरा और फिर वही अपनी पुरानी हरकत पे उतर आया यानि लगा ‘हूंवा-हूंवा’ करने। वहाँ भी किसान आ पहुंचा। उसे आता देख सियार तो निकाल भागा, मगर ऊंट बेचारा फंस गया। वहाँ भी उसकी जाम कर धुनाई हुई। ऊंट बेचारा बुरी तरह जख्मी हो गया और उसने फैसला किया की वो दुस्ट सियार को उसके करनी का दंड जरूर देगा। यह उसके स्वभाव के वीरुध जरूर था, लेकिन सियार को सबक सीखना भी जरूरी था।
जब वे लोटते समय नदी पार करने लगे तो सियार भी उसके पीठ पर सवार था। अचानक ऊंट को एक युक्ति सूझी और वो पानी मे लेटने लगा।
“अरे…अरे ऊंट भाई क्या करते हो। मैं डूब जाऊंगा।” सियार घबरा कर बोला।
“तू डूब या तैर, लेकिन मुझे तो पीटने के बाद पानी दिखते ही लुटास आती है। इसलिए मुझे तो लेते बिना चैन नहीं मिलेगा।” कहकर ऊंट पानी में लैट गया और दुष्ट सियार तेज़ धार मे बह गया। उसे अपने करनी की सज़ा मिल गया था।
इस कहानी से हमे यही सीख मिलती है की जैसा करोगे वैसा भरोगे भी…..दोस्तो अगर आपको ये कहानी पसंद आई हो तो इसे Share जरूर करे।

Tuesday 22 March 2016

क्या हम पानी की मैन्युफैक्चरिंग कर सकते हैं? ●Why Don't We Manufacture Water?● .

आप लोगो ने अक्सर जल संकट के ऊपर होती कैंपेन देखी,सुनी होगी
कभी आपके दिमाग में ये ख्याल आया है कि... अगर पानी की पृथ्वी पे इतनी ही दिक्कत है तो... हम पानी बना क्यों नहीं लेते?
जल चूँकि.. हाइड्रोजन और ऑक्सीजन से मिल कर बना होता है तो... किसी चैम्बर में हाइड्रोजन और ऑक्सीजन को साथ भर के.. हमें सिर्फ एनर्जी देनी है
Like A Spark... और पानी बन जाना चाहिए?
Right?
यस... राईट !!! पानी बन जाएगा
समस्या ये है कि.. साथ ही साथ होगा
एक... विनाशकारी धमाका !!!
Booooooooom !!!
और ये उस चैम्बर के साथ साथ पूरे संयत्र के चीथड़े उड़ा देगा
हाइड्रोजन... अत्यधिक ज्वलनशील है और ऑक्सीजन चूँकि ज्वलन को सपोर्ट करती है
इसलिए.. हाइड्रोजन से ज़रा सा भी खिलवाड़... मृत्यु को आमंत्रित कर सकता है
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3 मई 1937...
जर्मनी में एक खुशनुमा सुबह... जब 97 यात्रियों के साथ.. "Hinderberg" पैसेंजर प्लेन ने जर्मनी से अमेरिका की उड़ान भरी
तब तक... ज्यादातर पैसेंजर प्लेन बैलून नुमा कैप्सूल होते थे... जिनमे हाइड्रोजन भर हवा में उड़ाया जाता था
(Click Photo In Comments)
तीन दिन बाद अमेरिका में अपनों से मिलने की ख़ुशी से चहक रहे यात्रियों को ये नहीं पता था कि...
ये यात्रा उनके जीवन की आखिरी यात्रा है
6 मई... तीन बाद... न्यू जर्सी शहर में तूफ़ान के मद्देनजर कई घंटो के इन्तजार के बाद... हिंडेनबेर्ग को लैंडिंग के लिए ग्रीन सिग्नल मिला
और... एअरपोर्ट पे पहुच के... हिंडेनबेर्ग के पायलट ने... 200 मीटर की ऊंचाई पर प्लेन को स्थिर करके ...लैंडिंग रोप नीचे फेकी
अगले 5 मिनट में यात्री नीचे आने वाले ही थे कि...
अचानक...
एक धमाका हुआ... और हिंडेनबेर्ग... आग से घिर गया
किसी मानवीय चूक... अथवा Static Electricity के कारण हाइड्रोजन में स्पार्क हुआ... और हाइड्रोजन और ऑक्सीजन के रिएक्शन के फलस्वरूप... अगले ही पल हिंडेनबेर्ग आसमान में मौत रुपी आग का गोला बना हुआ था
Sure...Water Was Produced Too As A Reaction
But... At A Cost Of 36 Lives !!!
.
समुद्र के पानी से नमक को अलग कर पीने योग्य बनाना भी एक खर्चीला उपाय है... इस प्रक्रिया में एनर्जी का इस्तेमाल काफी ज्यादा होता है... जिसके कारण पूरी दुनिया के लिए पानी पैदा करना... संभव नहीं है
.
पर पानी... हमारे चारो तरफ भाप के रूप में पर्याप्त मात्रा में मौजूद है... समुद्र का पानी भले ही पीने योग्य ना हो लेकिन... समुद्र का पानी भाप बन के वर्षा बन हमें शुद्ध जल देता है
तो क्या हम "कृतिम वर्षा" जैसी किसी चीज से अधिक से अधिक बारिश करवा के पानी प्राप्त कर सकते हैं?
Well...कुछ देश इस दिशा में कोशिश कर रहे है... चीन जिनमे अग्रणी है
लेकिन प्रकृति के चक्र से खेलने के ऐसे सभी प्रयासों का अंत... सुखद नहीं होता
.
अगस्त 1952.. ब्रिटेन सरकार ने "कृतिम वर्षा" के प्रोजेक्ट में... लंदन शहर में बादलो के ऊपर सिल्वर आयोडाइड का छिड़काव कराया था... ताकि सिल्वर आयोडाइड हवा में मौजूद पानी के कणो को... बूंदे बनाने के लिए "न्यूक्लिआई" अर्थात बेस प्रदान कर के... बारिश की प्रक्रिया को कृतिम रूप से तेज कर सके
Sure... It Worked !!!!
30 मिनट के बाद... लोग... बारिश की फुहारों का आनंद ले रहे थे... मीडिया ब्रिटिश पायलट्स के इंटरव्यू ले उन्हें नायक के रूप में प्रचारित कर रहा था
जश्न मनाये जा रहे थे
और दूर कही... मौत... अपने पंजे... इंसानी जिंदगी के ऊपर कसने की तैयारी में थी
सिर्फ एक हफ्ते के बाद...प्रयोग स्थल से कुछ दूर मौजूद... Lynmouth शहर में अचानक आश्चर्यजनक रूप से बादल आसमान में इकट्ठे होने लगे
और मूसलाधार वर्षा शुरू हो गई
ऐसा लगा...मानो आसमान फट पड़ा हो
कुछ ही घंटो में...
9 करोड़ टन पानी शहर की गलियो में था
पेड़ उखड गए... बिल्डिंगे ध्वस्त हो गई थी
गाड़िया सड़क पर तैर रही थी
ब्रिटेन सरकार के प्रकृति से खिलवाड़ की कीमत...
35 जिंदगियो को चुकानी पड़ी
तब से आज तक... ब्रिटेन रक्षा मंत्रलाय ने कृतिम वर्षा के प्रोजेक्ट पर रोक लगा रखी है !!!
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जल.. ब्रह्माण्ड की गहराइयो में हर तरफ बिखरा हुआ है
हमारे सोलर सिस्टम में ना जाने कितने धूमकेतु और उल्काए अंतरिक्ष में परवाज कर रहे है... जिनके अंदर समाहित बर्फ... सागरो को भर देने की क्षमता रखती है
लेकिन... बर्फ के इन उड़ते... जमे हुए सागरो के बीच... सिर्फ एक लाल नीला ग्रह ऐसा है... जहाँ जल... जीवनदायिनी... द्रव अवस्था में पाया जाता है
हमारी अपनी पृथ्वी... जहाँ जल के अंदर ही... प्रथम जीव की उत्पत्ति हुई
.
जल जीवन की सबसे महत्वपूर्ण जरुरत है... ऐसी जरुरत... जिससे एक दिन की दूरी आपको बीमार और... एक हफ्ते की दूरी आपका साक्षात्कार मृत्यु से करा सकती है
.
इस अद्धुत ग्रह पर एक नजर दौड़ाने पर भले ही... हमें पानी हर तरफ दिखाई दे
लेकिन वास्तव में... दिख रहे पानी का 0.3 प्रतिशत ही स्वच्छ जल के रूप में उपलब्ध है...
जिस 0.3 परसेंट का 70%... कृषि और ओद्योगिक जरूरतो के लिए खर्च हो जाता है
.
आंकडो के मुताबिक... हर साल 35 लाख लोग... साफ़ पानी की अनुपलब्धता से हुए रोगों से मर जाते है
35 लाख... (लगभग) लखनऊ शहर की जनसख्या भी हैं
Think It This Way
हर साल सिर्फ पानी की कमी के कारण... लखनऊ जैसा एक पूरा शहर... लाशो से पट जाता है !!!
.
जीवन की विषमताओं से संघर्ष जारी है... शायद हम जल्द कोई ऐसा तरीका ढूंढ पाये जिससे हम.. पेयजल के संकट से जूझ रही एक तिहाई मानवता को पीने का पानी उपलब्ध करा पाये
आइये... आज "विश्व जल दिवस" पर प्रण लें कि... पानी का अधिक से अधिक संरक्षण करेंगे
ताकि... भविष्य में हमारी संताने एक ऐसे विश्वयुद्ध का सामना ना करें
जो... पानी के लिए लड़ा गया हो
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Save Water... Save Earth !!!
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And As Always
Thanks For Reading
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नोट: कल पानी की टेंशन ना लेते हुए होली बिंदास मनाएं
साल के 364 दिन अपनी आदते बदले
त्यौहार नहीं
हैप्पी होली

Monday 21 March 2016

●5 Seconds Without Oxygen●

इंसानी शरीर नोर्मली बिना खाने के तीन महीने और बिना पानी के 3 दिन तक ज़िंदा रह सकता है
लेकिन एक चीज ऐसी है... जिसकी अनुपस्थिति हमारी जीवन लीला मिनटों में ख़त्म कर सकती है
Yeah... Its OXYGEN !!!
.
हमें ज़िंदा रहने के लिए ऑक्सीजन की पर्याप्त मात्रा में हर समय जरुरत होती है
इन फैक्ट... महीनो प्रक्षिक्षण के बाद पर्वतारोही माउंट एवेरेस्ट की चोटी... जहा ऑक्सीजन कम एयर प्रेशर के कारण जमीन के मुकाबले एक तिहाई है... Survive कर पाते है
पर
अगर आपको अभी... instantaneous आप जहा है वहा से माउंट एवेरेस्ट की चोटी पर टेलिपोर्ट कर दिया जाए
तो... You will die...
Within 2-3 minutes due to lack of Oxygen !!!
.
We need Oxygen all the time desperately to survive!!!
.
तो मान लीजिये.... As A Thought Experiment
अगर... 5 सेकंड के लिए
पृथ्वी पर से ऑक्सीजन गायब हो जाए
तो क्या होगा?
Ready????
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●पहले सेकंड में●
आसमान में पहले के मुकाबले लगभग 20% ज्यादा अंधियारा हो जाएगा
और ओजोन लेयर के गायब होने के कारण आपको सूर्य की घातक अल्ट्रा वायलट रे के कारण Sun Burn होने लगेगे
वातावरण का प्रेशर अचानक 20% कम हो जाने से आपके कान के परदे फट जायेगे
और
चूँकि ऑक्सीजन की मौजूदगी के कारण ही Oxidation के कारण मेटल अर्थात धातु एक दुसरे से नॉर्मली चिपकती नहीं है... इस लिए परस्पर संपर्क में रखी सभी अपरिष्कृत अथवा "Untreated" धातुए आपस में चिपक... अर्थात नेचुरली WELD हो जायेगी
.
अगर आपका मकान कंक्रीट से बना है तो आपको भाग के बाहर निकलने की जरुरत है...
क्युकी कंक्रीट में ऑक्सीजन के Binder होने के कारण... कंक्रीट से बने सभी निर्माण
भरभरा के गिर पड़ेगे
.
विश्व के सभी महासागर ऑक्सीजन के गायब होते ही... हाइड्रोजन गैस बन के गायब हो जायेगे... और हाइड्रोजन बहुत हलकी होने के कारण स्पेस में निष्काषित हो जायेगी
और पीछे रह जायेगी..
"एक जल विहीन बंजर पृथ्वी"
.
चूँकि ऑक्सीजन.... हमारे कदमो के नीचे लगभग 50 km मोटी जमीन.... यानी हमारी पृथ्वी की Crust का 45% हिस्सा बनाती है
इसलिए...ऑक्सीजन के गायब होते ही...
आपके कदमो के नीचे की जमीन भुरभुरी हो कर... तीव्र गति से नीचे धंसने लगेगी
जिन लोगो ने "2012" फिल्म देखी है... उन लोगो के लिए फिल्म में दर्शाए जमीन में धंसते लोग, बिल्डिंग्स, फ्लाईओवर वगेरह के दृश्य वास्तविक हो जायेगे
ऐसा पृथ्वी पर हर जगह होगा
इसलिए... आपके पास खुद को पाताल लोक में गिरते हुए देखने के अलावा और कोई रास्ता नहीं होगा
.
पर चिंता मत कीजिये
आपकी मौत जमीन के अन्दर धंस के नहीं होगी
Remember? की आपके शरीर का ज्यादातर हिस्सा पानी से बना है?
ऑक्सीजन के गायब होते ही आपका रक्त हाइड्रोजन बन के गायब हो जायेगा
और आपके शरीर की कोशिकाओं में छोटे छोटे धमाके होने लगेगे
And I bet...
आप जमीन के पूरी तरह धंसने से पहले ही
मर चुके होगे
.
और दूसरे सेकंड में....??????
.
.
Why bothered about 2nd second when you are already dead???
wink emoticon
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And As Always
Thanks For Reading

●Welcome To A Balloon Space Dive●

आज से हजारो वर्ष पूर्व... ब्रह्माण्ड की अनंत गहराइयो से अनिभिज्ञ मानव जब रात के आसमान में इन टिमटिमाते तारो को निहारता था
तो... उसे लगता था कि... बादलो की इस परत के पार ही शायद उसका खुदा... उसको बनाने वाला रहता है
शायद इन बादलो के पार कोई दूसरी दुनिया है जिससे वो अनजान है
और इन्सान का दिल पक्षियों की तरह हवा में परवाज कर बादलो के पार जाने के लिए मचल जाता था
शायद ये इत्तेफाक तो नहीं कि ऐसे 4-5000 साल पुराने भित्ति चित्र भी मिले है... जिनमे "पक्षियों के पंख" लिए मानवआकृतियो में शायद हम अपने पूर्वजो में छुपी उड़ने की कसक साफ़ देख सकते है
.
खैर आज हम उड़ना भी सीख गए है और ये भी जानते है कि बादलो के पार कोई खुदा की सत्ता नहीं अपितु असीम संभावनाओं का विशाल महासागर है
.
लेकिन आज मेरा टॉपिक है "हवा में परवाज" करने को लेकर
बेशक किसी प्लेन में या स्पेस क्राफ्ट में बैठ के पृथ्वी को निहारने का अनुभव शानदार होगा पर...
क्या होगा अगर हम किसी गुब्बारे की रस्सी पकड़ हवा में उड़ते चले जाए???
क्या वो गुब्बारा हमें स्पेस में ले जाएगा?
Or.... More importantly
क्या एक गुब्बारे द्वारा हमें हवा में उठा पाना संभव है?
.
Short Answer is... YES
एक लीटर हीलियम में लगभग एक ग्राम वजन को लिफ्ट करने की शक्ति होती है
अब अगर माना जाए की आपका वजन 60 किलो यानी 60000 ग्राम है तो ऑफकोर्स आपको हवा में उड़ाने के लिए 60000 लीटर हीलियम चाहिए
एक छोटे औसत हीलियम बैलून का डायमीटर एक फुट होता है जिसमे टेक्निकली 14 लीटर गैस आ जाती है
तो...
60000/14= 4285 बैलून की जरुरत है आपको हवा में उड़ा के ले जाने के लिए...
(Make it 5000 अगर आपको तेज गति से ऊपर जाना है)
.
ओके... अगर आप 4-5000 बैलून इकट्ठे करने के सिरदर्द से बचना चाहते है तो आर्मी स्टोर जा सकते है
10 फुट के बैलून मिलना आम बात है जो की रेलिटीवीली ज्यादा बड़ा होने के कारण 14-15 kg वजन सपोर्ट कर सकता है
तो.... ऐसे 4 बैलून लेके आपका काम चल जाएगा
.
तो अगर आप ऐसे 4 बैलून लेके उनसे रस्सी बाँध के... रस्सी का इक सिरा खुद से बाँध ले तो?
well
आप धीरे धीरे ऊपर उठना शुरू कर देगे... आपके नीचे मौजूद हाथ हिलाते लोग धीरे धीरे छोटे होते चले जायेगे
और धीरे धीरे आप उस ऊँचाई पर पहुच जायेगे... जहा से आपको अपना शहर "बौनो का देश" प्रतीत होने लगेगा
.
इस स्थिति में आस पास उड़ते पक्षियों को हाय बोल सकते है
जेब से मोबाइल निकाल के एक शानदार सेल्फी लेके पोस्ट कर सकते है
पर जो करना है जल्दी कर लीजिये
Fun time is near to end
.
हवा में 4 से 5 किलोमीटर ऊपर जाने के बाद... आपको सांस लेने में दिक्कत आने लगेगी... और ऊपर जाते जाते ऑक्सीजन की मात्रा ख़त्म होती जाएगी
But lets ignore oxygen anyway to continue our journey
.
ऊपर जाते जाते... वातावरण में हवा का दबाब घटता जाएगा और तापमान कम होता चला जाएगा
20 किलोमीटर के ऊपर जाने के बाद आप लगभग -71 डिग्री तापमान में होगे जो आपकी मृत्यु के लिए पर्याप्त है
इस उंचाई पर आपके शरीर में मौजूद रक्त कम दबाब के कारण उबलने लगेगा... फेफड़े फट जायेगे
शरीर फूल जाएगा और आपका वही हाल होगा जो बिना स्पेस सूट पहने अन्तरिक्ष में कदम रख देने वाले इन्सान का होता है
खैर... कल्पना के लिए मान लेते है की आप शक्तिमान के बेटे है और आपका शरीर ऑक्सीजन की कमी और दबाब की समस्या को झेल सकता है
तो... इस सफ़र का अंत क्या होगा?
क्या वो गुब्बारा आपको बाहरी अन्तरिक्ष में ले जाएगा?
उम्म्म... नहीं
पृथ्वी में हम जैसे जैसे ऊपर जाते है... वातावरण पतला होता जाता है और 32 किलो मीटर की उंचाई के बाद वातावरण इतना पतला होता जाता है की हीलियम से भरा गुब्बारा उससे ऊपर नहीं जा सकता
बेहतरीन परिस्थितियो में अगर आपके गुब्बारे से गैस लीक की संभावना शुन्य मानी जाए...
और आपका गुब्बारा बहुत विशालकाय है तो आप 40-45 किलोमीटर तक जाने की उम्मीद लगा सकते है...
बेशक "बाहरी अन्तरिक्ष" 960 किलोमीटर के बाद शुरू होता है और outer space की शुरुआत की सीमा 100 किलोमीटर मानी गई है
फिर भी... 40-45 किलोमीटर की ऊँचाई पर आप "अन्तरिक्ष के अन्धकार की काली बेल्ट" और पृथ्वी के वातावरण में फर्क साफ़ देख पायेगे
तो अब...???
हीहीही
अब क्या?
छलांग मारिये हुजुर
.
हवा में त्रिशंकु बन के लटके रहने का इरादा है क्या?
.
आपका यहाँ तक का सफ़र जितना मजेदार रहा है... जमीन का सफ़र उससे भी शानदार रहेगा
अगर माना जाए की आप लगभग 42 KM की ऊँचाई से कूदे है
तो... Keep In Mind... आपके पृथ्वी से टकराने में जुम्मा जुम्मा 5 मिनट शेष है
इस बैलून से कूदते ही सबसे पहले आपके सामने जो दिक्कत आयेगी वो है
"SPIN PROBLEM"
जी हाँ... अगर आप खुद को संभाल नहीं पाए तो आपका शरीर तीव्र गति से चक्कर काटते हुए गोल गोल घूमते हुए नीचे गिरेगा..
30 सेकंड तक लगातार इस स्थिति में रहने पर आपका खून दिमाग में इकट्ठा होना शुरू कर देगा... आँखों के सामने अन्धेरा छा जाएगा... आप अंधे हो जायेगे और लगातार इस स्थिति में एक मिनट से ज्यादा रहने पर अंत में ब्रेन हेमरेज हो जाने से आपकी मौत हो जायेगी
पर
अगर आपने शरीर को बैलेंस करते हुए spin की समस्या हल कर ली
तो..... मुबारक हो... कूदने के 34 सेकंड के अन्दर आप "Speed Of Sound" को टच कर रहे होगे...
50 सेकंड बीतने तक आपका शरीर 1350 किलोमीटर/घंटा की रफ़्तार से चलने वाला एक सुपर बुलेट बन चुका होगा
जो.... 15 किलोमीटर नीचे मौजूद अपेक्षाकृत सघन वातावरण में से गोली की तरह जब टकराएगा
तो... "Sonic Boom" पैदा होगी
आपके घने वातावरण में सुपर सोनिक बूम की तरह टकराने से प्रचंड शॉक वेव्स पैदा होगे जो निश्चित ही पृथ्वी के वातावरण को प्रभावित करेगे
दो प्रोफेशनल स्पेस डाइविंग एक्सपर्ट अब तक सुपर सोनिक स्पीड से पृथ्वी के वातावरण में घुसने का कारनामा कर चुके है
पर... offcourse उस वक़्त उन्होंने खुद को प्रोटेक्ट करने के लिए अतिआधुनिक प्रेशर सूट पहने हुए थे...
बिना सूट पहने ये कारनामा अंजाम देने पर आपका क्या होगा???
Well... राम नाम सत्य है
हीहीही
.
खैर... पृथ्वी के वातवरण में घुसने के बाद आपकी स्पीड घर्षण के कारण कम होने लगेगी और जल्द ही एक समय ऐसा आयेगा जब वातावरण का घर्षण और पृथ्वी की ग्रेविटी एक दुसरे को कैंसिल करने लगेगी
और
आप बिना accelerate हुए एक निश्चित रफ़्तार से नीचे गिरने लगेगे... जिसे Terminal Velocity कहते है... आपके लिए इसका मान लगभग 120 मील/घंटा होगा
.
तो अब आपके पास पैराशूट नहीं है तो... बजाय पृथ्वी पर टकरा के जान देने के
आप... दुआ कीजिये की आप किसी गहरे स्विमिंग पूल, या पोखर, तालाब नाले में "vertical" रूप से गिरे जहा आपके बचने की मामूली संभावना हो सकती है
.
और मान लीजिये अगर आप बच जाते है
तो...
Congratulations
You just broke record for highest space dive ever....
Previously it was 41419 metres From Google Ex VP Alan Eustace!!!
.
And As Always...
Thanks For Reading

●YOUR SIZE IN UNIVERSE●(ब्रह्माण्ड में आपका साइज़)

वर्तमान में दुनिया में सबसे लम्बे और जीवित इन्सान होने का रिकॉर्ड तुर्की के Sultan Kosen (8 फुट 3 इंच) के नाम है
और
आज तक इतिहास में दर्ज सबसे लम्बे आदमी अमरीका में जन्मे Robert Wadlow की लम्बाई 8 फुट 11 इंच थी
पर आज सवाल ये है की...
बायोलॉजिकली... कोई इन्सान कितना बड़ा हो सकता है?
दुसरे शब्दों में... इस दुनिया में इन्सान का मैक्सिमम साइज़ कितना संभव है?
.
कुछ शोधो के अनुसार 150 साल पहले के मुकाबले आज इन्सान औसतन 4 इंच लम्बे होते है
अच्छी पोषक खुराक, बेहतर मेडिकल सुविधाओं ने हमें हमारे ब्लू प्रिंट्स "DNA" में छुपी लम्बाई को बढाने वाली जीन्स को कण्ट्रोल करने का तरीका सिखा दिया है
.
आम तौर पर 7 फुट से ऊपर का इन्सान होना... उदाहरण के लिए किसी 10 फुट का इन्सान होना संभव है?
well... 10 फुट का इन्सान होने के लिए... उसे किसी और शेप में होना पड़ेगा
इंसानी शेप तो नहीं...
काहे???? Because of "square cube law"
.
मान लीजिये आपके पास 1 cm लम्बाई चौड़ाई और उंचाई वाली एक घन अर्थात क्यूब है... अगर आप क्यूब की ऊँचाई 10 गुना बढ़ाना चाहे तो... वो तभी संभव है
जब... क्यूब का क्षेत्रफल (लम्बाई*चौड़ाई) 100 गुना हो और आयतन (लम्बाई*चौड़ाई*ऊँचाई) अर्थात 1000 गुना ज्यादा हो
अब चूँकि... वजन का सम्बन्ध आयतन से होता है
तो मोटे शब्दों में... किसी वस्तु की लम्बाई 10 गुनी बढाने के लिए उस वस्तु को 1000 गुना ज्यादा वजन भी झेलना पड़ेगा
.
आई बात समधन में?
हीहीही
10 फुट से ज्यादा लम्बे इन्सान की हड्डिया उसके वजन को झेलने के लिए या तो किसी और तत्व से बनी होनी चाहिए
या फिर...अति मानवीय रूप से दानवाकार होनी चाहिए
दुसरा.. वर्तमान परिस्थितियों में पृथ्वी के गुरुत्व के मद्देनजर उसका दिल इतना शक्तिशाली नहीं होगा की पूरे शरीर में ब्लड ठीक से सर्कुलेट कर सके
.
वर्तमान परिस्थितियो के अनुसार.. 8 फुट के ऊपर का मानव होना बहुत मुश्किल है... इतना लंबा इन्सान अपनी जिन्दगी के लिए संघर्ष करेगा
और 12-14 फुट के इन्सान का कुछ वर्ष से ज्यादा जी पाना असंभव है
●That's biological limit of your size●
.
पर साइज़ से एक बात ध्यान आई मेरे भाई
वास्तव में... आप शुरू कहा होते है?
और कहा पे ख़त्म?
अगर मैं एक कमरे में खडा हूँ तो sure... 5 फुट 11 इंच मेरे फिजिकल साइज़ की अपर बाउंड्री है... लेकिन जब मैं चिल्लाता हूँ
तो.. मैं पूरे कमरे को अपनी आवाज से भर सकता हूँ
अब चूँकि आवाज यानी साउंड एक ऐसी चीज है जो इन्सान के शरीर के अन्दर से निकली है तो आर्गुमेंट के लिए... इसे इन्सान का "vocal size" कहा जा सकता है
30 cm की दूरी से इन्सान अधिकतम रूप से 88 डेसीबेल तक साउंड चिल्ला के पैदा कर सकता है जो मैथमेटिकली...लगभग 5 किलोमीटर चलने के बाद दम तोड़ देता है
●So your vocal size at earth is about 5 kilometers●
.
पर 5 किलोमीटर से आगे भले ही कोई आपको सुन ना पाए
लेकिन... शायद वो आपको देख सके?
उम्म्म...पृथ्वी पर कोई आपको अधिकतम कितनी दुरी तक देख सकता है?
मान लो अगर आपके सामने खडा कोई इन्सान आपसे विपरीत दिशा में जाने लगे तो.... लगभग 4.8 किलोमीटर के बाद वो आपको दिखना बंद हो जाएगा
इसकी वजह पृथ्वी का गोल होना है क्युकी आपसे दूर जाता इन्सान वास्तव में ढलान पर उतर रहा होता है... यही कारण है की आप अगर सागर में जाती किसी नौका को देखे
तो... आप जान पायेगे की नौका धीरे धीरे नौका के फ्रंट भाग से गायब होनी शुरू होती है
और नौका का मस्तूल (उंचाई पर लगा झंडा) सबसे बाद में गायब होता है
●So your optical size at earth is about 4.8 kilometers●
.
लेकिन एक मिनट
स्पेस के बारे में क्या ख्याल है?
वहा ना कोई पृथ्वी है... ना कोई ढलान
अन्तरिक्ष में अगर हम मैं किसी जगह खड़ा हूँ और मेरा 6 फुट का दोस्त मुझसे दूर जा रहां है
तो... जैसे जैसे वो दूर होता जाएगा... वैसे वैसे उसके पाँव और सर से टकरा कर मेरी आँख पर बनने वाले उसके प्रतिबिम्ब का "angular size" छोटा होता चला जाता है... और चूँकि मानव नेत्र बेहतरीन परिस्थितियों में मैक्सिमम 20 arc seconds तक angular size वाली चीजो को देख सकता है
टेक्निकली स्पीकिंग... आपका 6 फुट का दोस्त लगभग 15 किलोमीटर के बाद आपको दिखना बंद हो जाएगा
●So your optical size in space is about 15 kilometers●
.
खैर पृथ्वी पर आपको देखना भले ही 5 किलोमीटर के बाद संभव ना हो पर...आपको सूंघना?
आपको जान के आश्चर्य होगा की blood hound प्रजाति के कुत्ते आपकी गंध को 18 किलोमीटर तक सूंघ सकते है
पर बात करे भालू की? तो एक भालू आपके शरीर को 30 किलोमीटर की दूरी तक सूंघ सकता है
●So your maximum scent size on earth is about 30 kilometers●

पर यहाँ एक निराशा की बात ये है की आपकी गंध या आवाज पृथ्वी के बाहर यात्रा करने के किसी माध्यम के ना होने के कारण इस पृथ्वी से बाहर कभी नहीं जा सकेगी
This feels a little embarrassing and small right??
Or....
May be not.....

एक चीज ऐसी है.... जो आपके शरीर से निकलती है... और टेक्निकली उसकी यात्रा पृथ्वी की बाउंड्री के कारण रूकती नहीं
कौन सी चीज??
.
जब भी किसी प्रोटान के चक्कर लगाते इलेक्ट्रान को ऊर्जा मिलती है तो वो केन्द्रक से दूरस्थ कक्षा में ट्रान्सफर हो जाता है... और एक अन्तराल के बाद अपनी कक्षा में वापस आ जाता है
तो... इस कक्षा में परिवर्तन की प्रक्रिया में वो...
"एक फोटान अर्थात प्रकाश का अणु" पैदा करता है
किस्मत से... मानव शरीर भी रेडिएशन पैदा करता है... ये रेडिएशन ज्यादातर इंफ्रारेड होता है जिसे हम नंगी आँखों से नहीं देख सकते
पर दिन के 4 बजे आपका शरीर टेक्निकली दिन में सबसे गर्म होता है और वैज्ञानिक शोधो के अनुसार हमारे शरीर से अल्प मात्रा में "visible light" के फोटान भी उत्सर्जित होते है
बेशक ये प्रकाश द्रश्य प्रकाश से हजारो गुना मध्यम होता है क्युकी ये प्रकाश ऊर्जा के बड़े बड़े पैकेट्स में नहीं बल्कि छोटे छोटे अणुओ के रूप में होता है
.
और जब आपके शरीर से ये फोटान निकलते है और अगर कोई उनके रास्ते में ना आये तो...
"उनके पास रुकने की कोई वजह ही नहीं है"
.
आपकी शरीर से निकले हुए वे फोटान...
इस पृथ्वी से निकल अपने अनंत सफर पर हमेशा चलते रहेगे...
और किसे पता... अगर कोई उनका रास्ता ना रोके
तो... एक ना एक दिन वो द्रश्य ब्रह्माण्ड को पार कर वहा पहुच जाए...
जहा पहुचने की कल्पनाओं ने... आदिकाल से ही मानव मन को विस्मृत किया है
.
So funny enough...
आपका "फिजिकल साइज़" बायोलॉजीकल, जिओमट्रीकल वजहों के कारण "सीमित" है
आपके वोकल, ऑप्टिकल, और फ्रग्रेंस साइज़ पृथ्वी के कारण "सीमित है"
पर...
आपकी जिन्दगी की चमक...
आपके जीवन की ऊर्जा से निकला प्रकाश...
Your Personal GLOW... isn't bound by anything at all....!!!
.
Light from you life... which you emit... makes you kind of "UNLIMITED" in size
as well as...
"IMMORTAL" forever
.
तो हँसते रहिये... मुस्कुराते रहिये
Keep smiling... Keep glowing !!!

And As Always
THANKS FOR READING
wink emoticon

Your questions and my answers

१-- आत्मा क्या है ----- निश्चित रूप से एक रहस्यमय
ऊर्जा जो संसार के समस्त जड और चेतन में व्याप्त है .
औपनिषदक विचारधारा इसे परमात्मा का अंश
मानते हुए अटल ध्रुव शाश्वत सत्ता मानती है और इसके
ऊर्जात्मक रूप के अनुसार ठीक भी है पर बुद्ध ने
इसकी अटलता , अपरिवर्तनीयता और जीव से संबंध
पर सवाल उठाया . आज की भाषा में कहें
तो उन्होंने एक कोशिकीय जीवों से बहुकोशिकीय
जीवों में ' आत्मा के स्वरूप में संक्रमण ' पर सवाल
उठाया और पर्याप्त शब्दावली के अभाव के आधार
पर इसे ध्रुव और शाश्वत होना अस्वीकार कर
दिया . परंतु उनके सामने एक दूसरा सत्य खडा था और
वो था कर्म सिद्धांत और पुनर्जन्म . और तब उन्होंने
अपनी मेधा का प्रयोग करते हुए
स्थापना दी कि जन्म इच्छाओं का होता है ठीक
किसी लहर की भांति जहाँ पिछली लहर ( पिछले
कर्म ) अगली लहर को उत्पन्न करती है पर यथार्थ में
जल केवल ऊपर और नीचे होता है .

२-- इच्छा क्या है ----- यह भी ऊर्जा का ही एक
प्रकार है जिसे हम महसूस कर सकते हैं जो जीव को कर्म
के लिये प्रेरित करती है . इसके बिना आत्मा और
ब्रह्मांड अस्तित्व में ही नहीं आते . इसी लिये आर्ष
ग्रंथों में कहा गया है कि ' ब्रह्म ' ने
कामना की कि मुझे ' होना 'चाहिये और वह '
हो ' उठा . पर यह अवधारणा ब्रह्म की " निर्लिप्त
निराकार व कालातीत ' होने की अवधारणा पर
सवाल उठाती थी इसलिये बाद में
स्थापना दी गयी कि ब्रह्म में स्वतः उठने वाले
क्षोभ से ब्रह्मांड बनने की प्रक्रिया प्रारंभ हुई .
अतः इसी क्षोभ को ही ' इच्छा ' का प्रारंभिक
रूप माना जा सकता है परंतु यह अकस्मात और
स्वतः उत्पन्न हुआ था अतः ब्रह्मांड
की उत्पत्ति बिना कारण - कार्य के स्वतः हुई .
और प्रारंभिक विक्षोभ को हम पहली इच्छा और
असंतुलन का प्रारंभ मान सकते हैं जिसके पश्चात
ब्रह्मांड का निर्माण प्रारंभ हुआ . आज
की भाषा में इसे " हमारे ब्रह्मांड "
की एंट्रॉपी भी कह सकते हैं जिसके कारण ब्रह्मांड में
निरंतर संतुलन और प्रतिसंतुलन की एक हौच पौच
रहती है परंतु इस नाजुक असंतुलन से ही ब्रह्मांड संतुलित
रूप से गतिमान रहता है और उसका का कारोबार
चलता है यानि कि ' इच्छा ' भी ब्रह्मांड के
संचालित करने वाली एक शक्ति है .
तो..... जब यह ' इच्छा ' रूपी ऊर्जा ' आत्मा '
रूपी ऊर्जा को ढँकती है तो जन्म होता है ' सूक्ष्म
शरीर ' का जो अपनी इच्छाओं के कारण ,
उसकी पूर्ति के लिये ' कर्म ' करना चाहता है .
यही कारण है कि हम अपनी इच्छाओं में इतने आसक्त
और लिप्त होते हैं . इस प्रकार इस सिद्धांत से
सनातनी विचारधारा और बुद्ध
की विचारधारा , दोंनों से से पुनर्जन्म
की व्याख्या हो जाती है .

३-- कर्म क्या है ---- कर्म भी ऊर्जा का ही एक और
प्रकार है जिसे हम ' इच्छाओं ' के निर्देशन में करते हैं
जिसका परिणाम होता है -- ' फल ' अर्थात
द्रव्यमान . इसीलिये बढते अच्छे बुरे कर्मों के अनुसार '
आत्मा ' पर ' इच्छा ' , ' कर्म ' और ' कर्म फल ' के
आवरण चढता चला जाता है और ' जीव '
अधिकाधिक इस ब्रह्मांड में आवागमन के चक्र में
फंसता चला जाता है
तो अगर कोई इच्छाओं के अधीनहोकर कर्म करने के
स्थान पर निष्काम कर्म अर्थात अनासक्त कर्म करे
तो --- निश्चित रूप से फल तो आयेगा ही परंतु
आत्मा के ऊपर ना केवल इच्छाओं की नयी पर्तें
चढना बंद होंगी बल्कि इस कर्म रूपी ऊर्जा के
द्वारा पुराने कर्म फल भी नष्ट होना प्रारंभ
हो जायेंगे क्यों कि अनासक्ति होने पर उन पुरातन
इच्छाओं के होने का कोई अर्थ नहीं रह जायेगा और
वे स्वतः विलोपित हो जायेंगी . और ...तब इच्छा ,
कर्म और कर्मफल के हटने से विशुद्ध आत्मा प्रकट
होगी अपने पूर्ण ' ब्रह्म ' स्वरूप में , ठीक वैसे ही जैसे
ऊपर की राख हट जाने पर अंगारा प्रकट
हो जाता है .

४ -- फल क्या है --- इच्छाओं के निर्देशन में '
परमाणुओं को संयोजित कर एक आकार धारण
करना ही फल है . द्रव्यमान की मूल इकाई ' परमाणु '
है पर उसका चरम विकसित और चेतन रूप है ' जीवन '
और जीवन में भी सबसे ' पूर्ण चैतन्य रूप है ' -- " मानव
" जिसकी चेतना का स्तर इतना ऊँचा होता है
कि वह इच्छाओं के बंधन से मुक्त होकर अपने वास्तविक
ऊर्जा रूप अर्थात " आत्मा " को जान सकता है और
ब्रह्मांड के नियमों से मुक्त होकर पुनः उसी ब्रह्म से
जुड सकता है जिससे कभी वो पृथक हुआ था .
इसी को ' मोक्ष ' कहा गया है . परंतु मनुष्य इच्छाओं
के अधीन होकर , शरीर और अहंकार
की तॄप्ति को ही वास्तविकता समझता है जिसके
कारण ही ये संसार ब्रह्मांड के उन भौतिक
नियमों पर चलता है जिनका निर्धारण ' हमारे
ब्रह्मांड ' के जन्म के समय ही हो गया था .

५-- मोक्ष क्या है --- जब कोई मनुष्य अपनी जैविक
ऊर्जा का संयोग ब्रह्मांड की उस ऊर्जा से
करा देता है जो इच्छाओं और कर्मों के आवरणों में
ढंकी हुई है और जिसे हम आत्मा कहते है , तो उसी पल
हमें अपने वास्तविक " ब्रह्म स्वरूप " अर्थात " मूल
ऊर्जा रूप " का ज्ञान हो जाता है और तब ये जगत
एक स्वप्न के समान दिखाई देता है . ( ये केवल
सैद्धांतिक प्रेजेटेंशन है क्यों कि इसका वास्तविक
अनुभव व्यवहारिकता में कठिन है बहुत ही कठिन )

६-- मोक्ष अर्थात ब्रह्म प्राप्ति के मार्ग क्या हैं
--- गीता के अनुसार यह " योग " है जिसका अर्थ
कृष्ण ने बताया है " परमात्मा या ब्रह्म से जीव
का योग " . गीता में योग के अनेक
प्रकारों का विवरण है जिन्हें मोटे रूप से सांख्य ,
ध्यान , कर्म और भक्ति में बाँटा जा सकता है .
अर्थात कृष्ण प्रत्येक को अपने ' स्वधर्म ' अर्तात
अपनी प्रवृत्ति के अनुसार चुनाव की छूट देते हैं . कई
विद्वान इसमें विरोधाभास ढूँढते हैं परंतु
उनकी उद्घोषणा है कि प्रत्येक मार्ग अंततः ' उन '
तक ही लेकर आयेगा . कैसे ? वैज्ञानिक नजरिये से
क्या इसकी व्याख्या संभव है ??
कृष्ण ने इसके संकेत स्पष्ट दे रखे हैं पर फिर भी क्यों न
हम अपने तार्किक नजरिये से
उनकी उद्घोषणा को परख लें ----

१- सांख्य या ज्ञान --- इसके अनुसार जीव में "
अकर्ता " का भाव होता है और वह कर्म करते हुए
भी उसके प्रति स्वयं को ' उससे ' परे रखता है जिसके
कारण वह ' कर्म फल ' के प्रति भी ' अनुत्तरदायित्व '
का भाव रखता है . यह विधि बहुत कुछ बौद्ध
विधि और अन्य नास्तिक दर्शनों के समान है पर कृष्ण
अधिकारपूर्वक घोषणा करते हैं कि कर्म और कर्मफल के
प्रति ' अनुत्तरदायित्व ' का भाव उस जीव
को अंततः ' इच्छाओं ' से भी मुक्त कर देता है और तब
भी वह आत्मसाक्षात्कार के माध्यम से ब्रह्मभाव
को प्राप्त हो जाता है . ( यहाँ कपिल और बुद्ध '
ब्रह्म ' या ' ईश्वर ' के विषय में मौन हैं )

२- ध्यान --- इसे हठ योग भी कहा जा सकता है
जिसमें शरीर को शुद्ध ( पंच कर्मादि ) कर भ्रू मध्य
या नासिकाग्र पर ध्यान केन्द्रित
किया जाता है . यह अत्यंत कठिन विधि है और इसमें
सामान्य साधक को किसी योग्य गुरू
की आवश्यकता होती है . इस मत के अनुसार जीव
की समस्त जैविक ऊर्जा ( कर्म व कर्मफल सहित ) "
मूलाधार चक्र " से होती हुई विभिन्न
चक्रों को पार करती हुई " सहस्त्रार " तक पहुँचती है
जो ब्रह्म रूपी परम ऊर्जा का द्वार है और जहाँ पहुँच
कर जीव के समस्त कर्मों , कर्म फल और इच्छाओं
का विलीनीकरण हो जाता है . परंतु साधारण
शरीर वाले योगी प्रायः लौटते नहीं और
उसी समाधि अवस्था में ' ब्रह्मरंध्र ' से
उनकी आत्मा का लय ' ब्रह्म ' में हो जाता है . कुछ
सूफी भी इस हिंदू योग पद्धति से परिचित थे और
उन्होंने इन चक्रों का विवरण अन्य नामों से
दिया है .

३- कर्म --- यह गीता की सबसे चर्चित विधि है
जिसमें सांख्य और योग को दुःसाध्य मानते हुए
जीव को कर्म करने का सुझाव दिया गया है परंतु उसे
' निष्काम ' अर्थात केवल कर्म में ही आसक्ति रखने
का अधिकार दिया गया है फल में
नहीं ( साम्यवादियों और तथाकथित दलित
चिंतकों ने इसका सबसे ज्यादा अनर्थ किया है ) .
कृष्ण का कहना है कि फल में आसक्ति होने से वर्तमान
कर्म में तो एकाग्रता बाधित होगी ही साथ फल में
आसक्ति से नयी इच्छाओं का बंधन भी आत्मा के ऊपर
बन जायेगा . परंतु अगर निष्काम कर्म किया जाये
तो चाहे जो फल प्राप्त हों परंतु नयी इच्छायें न
होने से पुराने कर्म और कर्मफल क्रमशः नष्ट होते चले
जायेंगे और अंततः ' आत्मा ' अपने विशुद्ध ' ब्रह्म '
स्वरूप में प्रकट हो जायेगी और मोक्ष को प्राप्त
होगी . ( इसमें पूर्वकर्मों के फल सामने आते तो हैं पर
पूर्ण साधक उनसे भी अनासक्त रहता है )

४- भक्ति -- इसे कृष्ण ने सर्वाधिक सरल उपाय
माना है परंतु ' सकाम ' और ' निष्काम ' भक्ति में
बांट कर एक चेतावनी भी दी है . सकाम भक्ति से
जीव अपने ' आराध्य ' के स्वरूप को प्राप्त होता है
परंतु उसकी मुक्ति असंभव होती है क्यों कि इच्छाओं
और कर्मों का बंधन समाप्त नहीं होता . जबकि '
प्रेम ' जो बिना आकांक्षा , बिना इच्छा का एक
अनजाना ' निष्काम ' भाव है , उसके
द्वारा किसी भी " माध्यम " ( मूर्ति , स्वरूप ,
नाम ) से परम सत्ता से अगाध रूप से जुड जाता है
तो उसकी समस्त इच्छायें , समस्त कर्म और कर्मफल '
क्षण मात्र ' में विलीन हो जाते हैं जैसे ' अग्नि ' में
सोने के ऊपर लिपटी ' मैल ' की पर्त नष्ट
हो जाती है और खरा सोना प्रकट हो जाता है .
( पर कई बार माध्यम की आसक्ति उसे अंतिम पद से
रोक भी देती है जैसे कि रामकृष्ण परमहंस ने वर्णित
किया था कि किस तरक ' काली ' में
उनकी आसक्ति ने उन्हें आखिरी चरण में जाने से रोक
रखा था ) ..चैतन्य , मीरा और रामकृष्ण परमहंस
इसी माध्यम को सर्वाधिक सरल और उचित मानते
थे .

तो स्पष्ट है कि कृष्ण के प्रत्येक मार्ग में ' जीव '
का संपर्क ' आत्मा ' के माध्यम से अपने असली ' ब्रह्म
स्वरूप ' से होता है तो मोक्ष हो जाता है . पर
एसी स्थिति में कर्म सिद्धांत का क्या ?
विशेषतः ' ध्यान ' और ' भक्ति ' जैसे ' शॉर्टकट '
मामले में जहाँ कृष्ण उद्घोषणा करते हैं कि तूने चाहे
जो किया हो बस तू एक बार मेरी शरण में आ भर
जा ...... तो पहले तो यह जान लें सभी लोग
कि यहाँ कॄष्ण कोई एक केवल यदुवंशी कृष्ण
नहीं बल्कि ' योगयुक्त साक्षात परब्रह्म ' बोल रहे
हैं . दुसरी बात वे कह रहे हैं कि मैं तुझे सारे
पापों सारे कर्म फलों और इच्छाओं से मुक्त कर
दूँगा ...कैसे ....क्यों कि ये इच्छायें , ये कर्म , ये कर्म
फल , ये आत्मा ...ये सभी ऊर्जायें उस ' ब्रह्म
रूपी ऊर्जा ' से ही तो उत्पन्न हुई थीं तो समस्त
द्रव्यमान और ऊर्जा के विभिन्न रूप इस परम ऊर्जा के
संपर्क में आते ही क्षण मात्र में अपना मूल रूप प्राप्त
कर लेते हैं और एसा जीव स्वयं ब्रह्मस्वरूप हो जाता है
ठीक वैसे ही जैसे किसी भी संख्या का गुणा शून्य
से करने पर वह बिना किसी चरण के तत्काल शून्य
हो जाती है . इस तरह से भक्ति और योग मार्ग जैसे "
शॉर्टकट " से भी कॄष्ण के कर्म सिद्धांत का उल्लंघन
नहीं होता है

●उर्दू बोलने वालो के लिए आइना●

इस पोस्ट को पढना शुरू करे तो अंत तक बिना रुके पढ़े
शायद आज आपको इतिहास के एक ऐसे तथ्य का पता चले जो या तो छुपा हुआ है या कहे तो छुपा के रखा जाता है

"उर्दू"
.
नफासत की जुबान
पाकिस्तान की राज भाषा
भारतीय उपमहादीप के मुसलमानो की पहचान
उर्दू...

उर्दू में
50% शब्द हिंदी से है
25% अरबी से
10% फ़ारसी से
10% अंग्रेजी से
5% शब्द तुर्क मंगोल से लिए गए है
.
ऊपर दिए उदाहरण से आप समझ सकते है की उर्दू में हर वाक्य में वाक्य रचना हिंदी के समान ही होती है पर
"verb" या "noun" का फर्क होता है
.
उर्दू की ना कोई व्याकरण है
और ना कोई शब्द कोष
.
तो हमने सोचा की
ये "भेल पूरी भाषा" आखिर दुनिया में लेके कौन आया
जासूसी बुद्धि करवटे लेने लगी
और
हमने "wiki" आंटी के दरबार का घंटा बजा दिया
हीहीही
और वहां से जो पता चला उसे पढ़ के दिमाग और होउच पाउच हो गया है
हीहीही
.
उर्दू शब्द का अर्थ है "सैनिक छावनी" और उर्दू शब्द मंगोल भाषा के शब्द "ओरडू" का अपभ्रंश है यानि उर्दू शब्द तुर्क मंगोल की भाषा की उपज है
.
है ना अजीब?
मुसलमानों की भाषा का सम्बन्ध तो अरब या फारस से होना चाहिए
ये "चाईनीज कनेक्शन" कहा से आया?
.
चलिए हम बताते हैं..
और इस घालमेल को समझने के लिए आपको इतिहास को ठीक से समझना होगा
.
"चंगेज खान"
.
इतिहास का सबसे खूंखार, दुर्दांत आक्रमणकारी
कहते है की चंगेज खान की फेलाई तबाही के निशान पृथ्वी के 25% हिस्से तक फैले थे
बड़े पैमाने पे नरसंहार चंगेज खान ने किया और इतिहासकारो के मत अनुसार कई करोड़ लोगो का फातिहा पढने का श्रेय चंगेज भाई साब को जाता है
पर
हम लोग अक्सर एक गलती कर देते है की चंगेज खान को मुस्लिम समझ लेते है
वास्तव में
चंगेज तुर्क मंगोल क्षेत्र का था और इस्लाम का दुश्मन था
अरब क्षेत्रो पे हमले कर इसने वो मार काट मचाई की आज भी इन्हें मुस्लिम इतिहास में "खुनी,दरिंदा, शैतान" के तमगो से नवाजा गया है
.
अब बात करो "तैमूर लंग" की
तैमूर भी एक खूंखार आतंकवादी था और भारत पे हमला कर इसने कई बार विनाश लीला फेलाई
इसी तैमूर के पोते "बाबर" ने भारत में मुग़ल वंश का स्थापना कर इस्लाम का झंडा बुलंद किया
.
अब तुर्रा ये है की
तैमूर और बाबर दोनों खुद को चंगेज खान का वंशज बताते थे
.
बात कुछ "समधन" में आई?
.
"इस्लाम के दुश्मन के वंशज इस्लाम का झंडा बुलंद कर रहे थे"
.
ऐसा कैसे?
वो इसलिए की चंगेज के बाद अरब कबीलो के लगातार हमलो के फलस्वरूप मंगोलों ने अरबो के सामने घुटने टेक दिए थे
तैमूर ने अपनी जीवनी में स्वीकार किया है की उसके पिता ने इस्लाम कबूल किया था
.
यानि भारत में इस्लाम का झंडा बुलंद करने वाले मंगोल या मुग़ल स्वयं अरब की खूनी संस्कृति के गुलाम बन चुके थे
.
इन तुर्क मंगोलों की भाषा में सैनिक छावनी को "ओरडू" कहा जाता था जहा वे हिन्द की अवाम को कैद कर यातनाये देते थे, औरतो के बलात्कार किये जाते थे, अमानवीयता की हद पार की जाती थी.... ताकि..... वे इस्लाम कबूल कर सके
.
और इन "सैनिक छावनियों" में उन्हें इस्लाम की अधिकृत भाषा अरबी बोलने पे मजबूर किया जाता था
.
अब एक दिन में कोई अरबी कैसे सीख जाए?
तो जान बचाने के लिए उन हिंदी भाषियों ने अपनी मातृ भाषा में अरबी शब्दों को फिट करना शुरू कर दिया और धीरे धीरे फ़ारसी और अन्य शब्द भी उस भाषा में जगह पाने लगे
और इस प्रकार तलवार की धार पे उस बोली का जन्म हुआ
जो ना हिंदी थी
ना अरबी
वाक्य निर्माण हिंदी का था पर शब्द अरबी फ़ारसी और मंगोली
और सैनिक यातना गृह यानी की "ओरडू" से निकली इस खिचड़ी भाषा को नाम मिला "ओरडू"
यानी की
"उर्दू"
.
मुग़ल और तुर्क इस भेल पूरी भाषा को गुलामो की भाषा मानते थे इसलिए कभी उन्होंने इस भाषा को सम्मान नहीं दिया और इसी कारण मुग़ल दरबार की राज भाषा फ़ारसी थी
.
अब प्रश्न ये उठता है की भारत और पाकिस्तान में जो आज उर्दू को अपनी भाषा बताते हैं
वे वास्तव में हैं कौन?
कौन थे उनके पूर्वज?
.
हीहीही
इसका जवाब हम आपकी कल्पनाशीलता पे छोड़ते हैं



उर्दू बोलने वालो
स्वयं विचार करो

गुरुत्वीय तरंगो की खोज ●A New Window To The Universe: Gravitational Waves●

बचपन में क्लास में पढ़ाई गई कई बकवास और भ्रामक बातो में से एक... ये भी है कि...
"पृथ्वी सूर्य के चारो ओर चक्कर लगाती है"
वास्तव में... पृथ्वी किसी चीज के चक्कर नहीं लगाती
"पृथ्वी तो... सीधी रेखा में भाग रही है"
At A Speed Of 29.78 Km/Sec
पर चूँकि पृथ्वी के निकट मौजूद एक तारा... "सूर्य" अपनी ग्रेविटी के कारण पृथ्वी को अपनी तरफ खींचता है
(वास्तव में खींचता नहीं है... ये प्रोसेस अधिक जटिल है.. जिसे मैं फिर कभी डिटेल में समझाऊँगा)
इसलिए सूर्य के पृथ्वी को खींचने के कारण... पृथ्वी की हालत उस कबूतर की तरह हो जाती है
जिस कबूतर के पाँव में आपने रस्सी बाँध दी हो... फिर भी कबूतर लगातार सीधी रेखा में उड़ने की कोशिश कर रहा हो... परिणाम स्वरुप
"कबूतर आपके चारो ओर चक्कर लगाने लगता है"
तो क्या हो.. अगर कबूतर के उड़ने की स्पीड बढ़ा दी जाए?
Lets Say... पृथ्वी रुपी कबूतर 30 की बजाय... 42.1 Km/Sec की गति पकड़ ले?
Well... तब... रस्सी टूट जायेगी !!!
और पृथ्वी... सूर्य की ग्रेविटी को तोड़ के... ब्रह्माण्ड में मुक्त सफ़र पर निकल जायेगी
क्योंकि... सूर्य का द्रव्यमान इतनी तेजी से जा रही वस्तु को बांधे रखने के लिए... काफी नहीं है
.
आप समझ गए होंगे कि... किसी सिस्टम में तारो के orbit के लिए... सिस्टम में पर्याप्त mass होना अनिवार्य है.. वरना सिस्टम/गैलेक्सी के सभी तारे अपनी कक्षा तोड़ के ब्रह्माण्ड में बिखर जायेगे !!!
.
सन 1933 में वेज्ञानिको ने दूसरी गैलेक्सीज के निरिक्षण के वक़्त एक अद्धुत चीज नोटिस की
कि... तारे जिस स्पीड में गति कर रहे है... उस गति को बांधे रखने लायक Mass तो गैलेक्सी में है ही नहीं
कुछ ऐसा था... जो अदृश्य रूप में सभी गैलेक्सीज को गोंद की तरह बांधे रख... जीवन प्रदान कर रहा था
इस अदृश्य जीवनदायी तत्व को नाम दिया गया
Dark Matter !!!
.
आज लगभग 80 साल बीत जाने के बावजूद.. अपनी बेहतरीन क्षमताओ के बावजूद... हम सिर्फ ये जानते हैं कि... "डार्क मैटर क्या नहीं है"
According To Us
1. डार्क मैटर है... और बहुत अधिक मात्रा में है (दिख रहे पदार्थ से लगभग 5 गुणा)
2. डार्क मैटर... एंटी मैटर नहीं है
3. डार्क मैटर... ब्लैक होल्स में भी नहीं है
4. डार्क मैटर के प्रकाश से कोई क्रिया ना करने के कारण... इसे किसी भी प्रकार से देखा नहीं जा सकता
That's All !!!!
ब्रह्माण्ड में हम इंसानो के समानांतर दुनिया बनाये आखिर ये डार्क मैटर है क्या?
क्या कोई ऐसा तरीका नहीं.. जिससे हम डार्क मैटर के रहस्य तक पहुच पाएं?
Well.. Dark Matter Could Be Smart But We Humans R Cunning Too !!!
एक चीज है... जिसकी पिछले दिनों हुई खोज ने... डार्क मैटर तक पहुचंने का एक रास्ता दिखाया है
.
Gravitational Waves !!!!
************************
1916 में महान वैज्ञानिक आइंस्टीन ने ये भविष्यवाणी की थी कि... ब्रह्माण्ड का फैब्रिक "स्पेस-टाइम" यानी ढांचा... एक सागर के समान है...
इसलिए... ब्रह्मांड में गति कर रही कोई भी चीज... ब्रह्माण्ड के फैब्रिक में लहरे पैदा करती है
उदाहरण के लिए... अगर आप पानी की शांत सतह में अपनी ऊँगली घुमाए... तो आपकी उंगली से लहरे पैदा होगी
इन लहर रुपी "Distortion" को ही ग्रेविटेशनल वेव्स कहते हैं
.
अब चूंकि... डार्क मैटर और ब्लैक होल जैसी चीजे... लाइट से इंटरैक्ट नहीं करती... इसलिए हम इन्हें डायरेक्टली नही देख सकते
और... इनडायरेक्ट ऑब्सेरबशन्स तक सीमित है
लेकिन... डार्क मैटर के ग्रेविटेशनल इफ़ेक्ट को ट्रैक करके... ब्रह्माण्ड के इन रहस्यों की प्रॉपर्टीज को समझा जा सकता है
***************************************
20 मई 1964 को अपनी लैब में मौजूद अमेरिकी वैज्ञानिक "रोबर्ट विलसन" एकाएक अपने माइक्रोवेव एंटीना द्वारा कैच की जा रही एक अजीबो गरीव फ्रीक्वेंसी से चौक गए थे
इस अजीबो गरीब साउंड के स्त्रोत की तलाश में.. उन्होंने हर संभावित उपाय किये
यहाँ तक की सीढिया लगा कर... एंटीने पर बैठे कबूतरो को इसकी वजह मान के उड़ाने का प्रयास किया
लेकिन... बहुत बाद में उन्हें ये ख्याल आया कि...
ये आवाज... ब्रह्माण्ड में हर तरफ से आता ये माइक्रोवेव रेडिएशन... किसी महान घटना का साक्षी है
वास्तव में.. ये रेडिएशन बिग बैंग का लेफ्ट ओवर था
Robert Was Looking At Almost Beginning Of Time !!!
माइक्रोवेव रेडिएशन विंडो की खोज ने... इंसान के लिए ब्रह्माण्ड निर्माण के सिर्फ 3 लाख 80 हजार साल बाद के समय को देख पाना संभव किया था
But That's Kinda Limit.
क्योंकि... इससे पूर्व... फोटांस का मुक्त विचरण ही संभव नहीं हो पाया था
किसी भी तरह हम... समय के पन्नों की किताब के वे पन्ने नही पलट सकते
जो हमे उस 380000 वर्ष के पूर्व के ब्रह्माण्ड का दर्शन करा सके
.
But A New Era In Science Has Begun
आज आइंस्टीन के 100 साल बाद... ग्रेविटेशनल तरंगो की खोज ने.. मानवो को ऐसी "COSMIC WINDOW" उपलब्ध कराई है... जिसके पार... ब्लैकहोल तथा डार्क मैटर जैसे ना जाने कितने रहस्यों के सागर हमारा इन्तजार कर रहे हैं
और शायद... इन सागरो की गहराइयो में डुबकी लगा कर एक दिन हम... "ब्रह्माण्ड की शुरुआत" देख पाये
.
This Universe Is Huge Ocean Of Mysteries...
Electromagnetic Window Has Enabled Us To Surf Through It
But If You Want To Reach To An End Of Cosmic Sea?
Better Ride A Wave...
.
A Gravitational Wave !!!!
************************
And As Always
Thanks For Reading