Monday, 21 March 2016

●5 Seconds Without Oxygen●

इंसानी शरीर नोर्मली बिना खाने के तीन महीने और बिना पानी के 3 दिन तक ज़िंदा रह सकता है
लेकिन एक चीज ऐसी है... जिसकी अनुपस्थिति हमारी जीवन लीला मिनटों में ख़त्म कर सकती है
Yeah... Its OXYGEN !!!
.
हमें ज़िंदा रहने के लिए ऑक्सीजन की पर्याप्त मात्रा में हर समय जरुरत होती है
इन फैक्ट... महीनो प्रक्षिक्षण के बाद पर्वतारोही माउंट एवेरेस्ट की चोटी... जहा ऑक्सीजन कम एयर प्रेशर के कारण जमीन के मुकाबले एक तिहाई है... Survive कर पाते है
पर
अगर आपको अभी... instantaneous आप जहा है वहा से माउंट एवेरेस्ट की चोटी पर टेलिपोर्ट कर दिया जाए
तो... You will die...
Within 2-3 minutes due to lack of Oxygen !!!
.
We need Oxygen all the time desperately to survive!!!
.
तो मान लीजिये.... As A Thought Experiment
अगर... 5 सेकंड के लिए
पृथ्वी पर से ऑक्सीजन गायब हो जाए
तो क्या होगा?
Ready????
.
●पहले सेकंड में●
आसमान में पहले के मुकाबले लगभग 20% ज्यादा अंधियारा हो जाएगा
और ओजोन लेयर के गायब होने के कारण आपको सूर्य की घातक अल्ट्रा वायलट रे के कारण Sun Burn होने लगेगे
वातावरण का प्रेशर अचानक 20% कम हो जाने से आपके कान के परदे फट जायेगे
और
चूँकि ऑक्सीजन की मौजूदगी के कारण ही Oxidation के कारण मेटल अर्थात धातु एक दुसरे से नॉर्मली चिपकती नहीं है... इस लिए परस्पर संपर्क में रखी सभी अपरिष्कृत अथवा "Untreated" धातुए आपस में चिपक... अर्थात नेचुरली WELD हो जायेगी
.
अगर आपका मकान कंक्रीट से बना है तो आपको भाग के बाहर निकलने की जरुरत है...
क्युकी कंक्रीट में ऑक्सीजन के Binder होने के कारण... कंक्रीट से बने सभी निर्माण
भरभरा के गिर पड़ेगे
.
विश्व के सभी महासागर ऑक्सीजन के गायब होते ही... हाइड्रोजन गैस बन के गायब हो जायेगे... और हाइड्रोजन बहुत हलकी होने के कारण स्पेस में निष्काषित हो जायेगी
और पीछे रह जायेगी..
"एक जल विहीन बंजर पृथ्वी"
.
चूँकि ऑक्सीजन.... हमारे कदमो के नीचे लगभग 50 km मोटी जमीन.... यानी हमारी पृथ्वी की Crust का 45% हिस्सा बनाती है
इसलिए...ऑक्सीजन के गायब होते ही...
आपके कदमो के नीचे की जमीन भुरभुरी हो कर... तीव्र गति से नीचे धंसने लगेगी
जिन लोगो ने "2012" फिल्म देखी है... उन लोगो के लिए फिल्म में दर्शाए जमीन में धंसते लोग, बिल्डिंग्स, फ्लाईओवर वगेरह के दृश्य वास्तविक हो जायेगे
ऐसा पृथ्वी पर हर जगह होगा
इसलिए... आपके पास खुद को पाताल लोक में गिरते हुए देखने के अलावा और कोई रास्ता नहीं होगा
.
पर चिंता मत कीजिये
आपकी मौत जमीन के अन्दर धंस के नहीं होगी
Remember? की आपके शरीर का ज्यादातर हिस्सा पानी से बना है?
ऑक्सीजन के गायब होते ही आपका रक्त हाइड्रोजन बन के गायब हो जायेगा
और आपके शरीर की कोशिकाओं में छोटे छोटे धमाके होने लगेगे
And I bet...
आप जमीन के पूरी तरह धंसने से पहले ही
मर चुके होगे
.
और दूसरे सेकंड में....??????
.
.
Why bothered about 2nd second when you are already dead???
wink emoticon
******************************************
And As Always
Thanks For Reading

●Welcome To A Balloon Space Dive●

आज से हजारो वर्ष पूर्व... ब्रह्माण्ड की अनंत गहराइयो से अनिभिज्ञ मानव जब रात के आसमान में इन टिमटिमाते तारो को निहारता था
तो... उसे लगता था कि... बादलो की इस परत के पार ही शायद उसका खुदा... उसको बनाने वाला रहता है
शायद इन बादलो के पार कोई दूसरी दुनिया है जिससे वो अनजान है
और इन्सान का दिल पक्षियों की तरह हवा में परवाज कर बादलो के पार जाने के लिए मचल जाता था
शायद ये इत्तेफाक तो नहीं कि ऐसे 4-5000 साल पुराने भित्ति चित्र भी मिले है... जिनमे "पक्षियों के पंख" लिए मानवआकृतियो में शायद हम अपने पूर्वजो में छुपी उड़ने की कसक साफ़ देख सकते है
.
खैर आज हम उड़ना भी सीख गए है और ये भी जानते है कि बादलो के पार कोई खुदा की सत्ता नहीं अपितु असीम संभावनाओं का विशाल महासागर है
.
लेकिन आज मेरा टॉपिक है "हवा में परवाज" करने को लेकर
बेशक किसी प्लेन में या स्पेस क्राफ्ट में बैठ के पृथ्वी को निहारने का अनुभव शानदार होगा पर...
क्या होगा अगर हम किसी गुब्बारे की रस्सी पकड़ हवा में उड़ते चले जाए???
क्या वो गुब्बारा हमें स्पेस में ले जाएगा?
Or.... More importantly
क्या एक गुब्बारे द्वारा हमें हवा में उठा पाना संभव है?
.
Short Answer is... YES
एक लीटर हीलियम में लगभग एक ग्राम वजन को लिफ्ट करने की शक्ति होती है
अब अगर माना जाए की आपका वजन 60 किलो यानी 60000 ग्राम है तो ऑफकोर्स आपको हवा में उड़ाने के लिए 60000 लीटर हीलियम चाहिए
एक छोटे औसत हीलियम बैलून का डायमीटर एक फुट होता है जिसमे टेक्निकली 14 लीटर गैस आ जाती है
तो...
60000/14= 4285 बैलून की जरुरत है आपको हवा में उड़ा के ले जाने के लिए...
(Make it 5000 अगर आपको तेज गति से ऊपर जाना है)
.
ओके... अगर आप 4-5000 बैलून इकट्ठे करने के सिरदर्द से बचना चाहते है तो आर्मी स्टोर जा सकते है
10 फुट के बैलून मिलना आम बात है जो की रेलिटीवीली ज्यादा बड़ा होने के कारण 14-15 kg वजन सपोर्ट कर सकता है
तो.... ऐसे 4 बैलून लेके आपका काम चल जाएगा
.
तो अगर आप ऐसे 4 बैलून लेके उनसे रस्सी बाँध के... रस्सी का इक सिरा खुद से बाँध ले तो?
well
आप धीरे धीरे ऊपर उठना शुरू कर देगे... आपके नीचे मौजूद हाथ हिलाते लोग धीरे धीरे छोटे होते चले जायेगे
और धीरे धीरे आप उस ऊँचाई पर पहुच जायेगे... जहा से आपको अपना शहर "बौनो का देश" प्रतीत होने लगेगा
.
इस स्थिति में आस पास उड़ते पक्षियों को हाय बोल सकते है
जेब से मोबाइल निकाल के एक शानदार सेल्फी लेके पोस्ट कर सकते है
पर जो करना है जल्दी कर लीजिये
Fun time is near to end
.
हवा में 4 से 5 किलोमीटर ऊपर जाने के बाद... आपको सांस लेने में दिक्कत आने लगेगी... और ऊपर जाते जाते ऑक्सीजन की मात्रा ख़त्म होती जाएगी
But lets ignore oxygen anyway to continue our journey
.
ऊपर जाते जाते... वातावरण में हवा का दबाब घटता जाएगा और तापमान कम होता चला जाएगा
20 किलोमीटर के ऊपर जाने के बाद आप लगभग -71 डिग्री तापमान में होगे जो आपकी मृत्यु के लिए पर्याप्त है
इस उंचाई पर आपके शरीर में मौजूद रक्त कम दबाब के कारण उबलने लगेगा... फेफड़े फट जायेगे
शरीर फूल जाएगा और आपका वही हाल होगा जो बिना स्पेस सूट पहने अन्तरिक्ष में कदम रख देने वाले इन्सान का होता है
खैर... कल्पना के लिए मान लेते है की आप शक्तिमान के बेटे है और आपका शरीर ऑक्सीजन की कमी और दबाब की समस्या को झेल सकता है
तो... इस सफ़र का अंत क्या होगा?
क्या वो गुब्बारा आपको बाहरी अन्तरिक्ष में ले जाएगा?
उम्म्म... नहीं
पृथ्वी में हम जैसे जैसे ऊपर जाते है... वातावरण पतला होता जाता है और 32 किलो मीटर की उंचाई के बाद वातावरण इतना पतला होता जाता है की हीलियम से भरा गुब्बारा उससे ऊपर नहीं जा सकता
बेहतरीन परिस्थितियो में अगर आपके गुब्बारे से गैस लीक की संभावना शुन्य मानी जाए...
और आपका गुब्बारा बहुत विशालकाय है तो आप 40-45 किलोमीटर तक जाने की उम्मीद लगा सकते है...
बेशक "बाहरी अन्तरिक्ष" 960 किलोमीटर के बाद शुरू होता है और outer space की शुरुआत की सीमा 100 किलोमीटर मानी गई है
फिर भी... 40-45 किलोमीटर की ऊँचाई पर आप "अन्तरिक्ष के अन्धकार की काली बेल्ट" और पृथ्वी के वातावरण में फर्क साफ़ देख पायेगे
तो अब...???
हीहीही
अब क्या?
छलांग मारिये हुजुर
.
हवा में त्रिशंकु बन के लटके रहने का इरादा है क्या?
.
आपका यहाँ तक का सफ़र जितना मजेदार रहा है... जमीन का सफ़र उससे भी शानदार रहेगा
अगर माना जाए की आप लगभग 42 KM की ऊँचाई से कूदे है
तो... Keep In Mind... आपके पृथ्वी से टकराने में जुम्मा जुम्मा 5 मिनट शेष है
इस बैलून से कूदते ही सबसे पहले आपके सामने जो दिक्कत आयेगी वो है
"SPIN PROBLEM"
जी हाँ... अगर आप खुद को संभाल नहीं पाए तो आपका शरीर तीव्र गति से चक्कर काटते हुए गोल गोल घूमते हुए नीचे गिरेगा..
30 सेकंड तक लगातार इस स्थिति में रहने पर आपका खून दिमाग में इकट्ठा होना शुरू कर देगा... आँखों के सामने अन्धेरा छा जाएगा... आप अंधे हो जायेगे और लगातार इस स्थिति में एक मिनट से ज्यादा रहने पर अंत में ब्रेन हेमरेज हो जाने से आपकी मौत हो जायेगी
पर
अगर आपने शरीर को बैलेंस करते हुए spin की समस्या हल कर ली
तो..... मुबारक हो... कूदने के 34 सेकंड के अन्दर आप "Speed Of Sound" को टच कर रहे होगे...
50 सेकंड बीतने तक आपका शरीर 1350 किलोमीटर/घंटा की रफ़्तार से चलने वाला एक सुपर बुलेट बन चुका होगा
जो.... 15 किलोमीटर नीचे मौजूद अपेक्षाकृत सघन वातावरण में से गोली की तरह जब टकराएगा
तो... "Sonic Boom" पैदा होगी
आपके घने वातावरण में सुपर सोनिक बूम की तरह टकराने से प्रचंड शॉक वेव्स पैदा होगे जो निश्चित ही पृथ्वी के वातावरण को प्रभावित करेगे
दो प्रोफेशनल स्पेस डाइविंग एक्सपर्ट अब तक सुपर सोनिक स्पीड से पृथ्वी के वातावरण में घुसने का कारनामा कर चुके है
पर... offcourse उस वक़्त उन्होंने खुद को प्रोटेक्ट करने के लिए अतिआधुनिक प्रेशर सूट पहने हुए थे...
बिना सूट पहने ये कारनामा अंजाम देने पर आपका क्या होगा???
Well... राम नाम सत्य है
हीहीही
.
खैर... पृथ्वी के वातवरण में घुसने के बाद आपकी स्पीड घर्षण के कारण कम होने लगेगी और जल्द ही एक समय ऐसा आयेगा जब वातावरण का घर्षण और पृथ्वी की ग्रेविटी एक दुसरे को कैंसिल करने लगेगी
और
आप बिना accelerate हुए एक निश्चित रफ़्तार से नीचे गिरने लगेगे... जिसे Terminal Velocity कहते है... आपके लिए इसका मान लगभग 120 मील/घंटा होगा
.
तो अब आपके पास पैराशूट नहीं है तो... बजाय पृथ्वी पर टकरा के जान देने के
आप... दुआ कीजिये की आप किसी गहरे स्विमिंग पूल, या पोखर, तालाब नाले में "vertical" रूप से गिरे जहा आपके बचने की मामूली संभावना हो सकती है
.
और मान लीजिये अगर आप बच जाते है
तो...
Congratulations
You just broke record for highest space dive ever....
Previously it was 41419 metres From Google Ex VP Alan Eustace!!!
.
And As Always...
Thanks For Reading

●YOUR SIZE IN UNIVERSE●(ब्रह्माण्ड में आपका साइज़)

वर्तमान में दुनिया में सबसे लम्बे और जीवित इन्सान होने का रिकॉर्ड तुर्की के Sultan Kosen (8 फुट 3 इंच) के नाम है
और
आज तक इतिहास में दर्ज सबसे लम्बे आदमी अमरीका में जन्मे Robert Wadlow की लम्बाई 8 फुट 11 इंच थी
पर आज सवाल ये है की...
बायोलॉजिकली... कोई इन्सान कितना बड़ा हो सकता है?
दुसरे शब्दों में... इस दुनिया में इन्सान का मैक्सिमम साइज़ कितना संभव है?
.
कुछ शोधो के अनुसार 150 साल पहले के मुकाबले आज इन्सान औसतन 4 इंच लम्बे होते है
अच्छी पोषक खुराक, बेहतर मेडिकल सुविधाओं ने हमें हमारे ब्लू प्रिंट्स "DNA" में छुपी लम्बाई को बढाने वाली जीन्स को कण्ट्रोल करने का तरीका सिखा दिया है
.
आम तौर पर 7 फुट से ऊपर का इन्सान होना... उदाहरण के लिए किसी 10 फुट का इन्सान होना संभव है?
well... 10 फुट का इन्सान होने के लिए... उसे किसी और शेप में होना पड़ेगा
इंसानी शेप तो नहीं...
काहे???? Because of "square cube law"
.
मान लीजिये आपके पास 1 cm लम्बाई चौड़ाई और उंचाई वाली एक घन अर्थात क्यूब है... अगर आप क्यूब की ऊँचाई 10 गुना बढ़ाना चाहे तो... वो तभी संभव है
जब... क्यूब का क्षेत्रफल (लम्बाई*चौड़ाई) 100 गुना हो और आयतन (लम्बाई*चौड़ाई*ऊँचाई) अर्थात 1000 गुना ज्यादा हो
अब चूँकि... वजन का सम्बन्ध आयतन से होता है
तो मोटे शब्दों में... किसी वस्तु की लम्बाई 10 गुनी बढाने के लिए उस वस्तु को 1000 गुना ज्यादा वजन भी झेलना पड़ेगा
.
आई बात समधन में?
हीहीही
10 फुट से ज्यादा लम्बे इन्सान की हड्डिया उसके वजन को झेलने के लिए या तो किसी और तत्व से बनी होनी चाहिए
या फिर...अति मानवीय रूप से दानवाकार होनी चाहिए
दुसरा.. वर्तमान परिस्थितियों में पृथ्वी के गुरुत्व के मद्देनजर उसका दिल इतना शक्तिशाली नहीं होगा की पूरे शरीर में ब्लड ठीक से सर्कुलेट कर सके
.
वर्तमान परिस्थितियो के अनुसार.. 8 फुट के ऊपर का मानव होना बहुत मुश्किल है... इतना लंबा इन्सान अपनी जिन्दगी के लिए संघर्ष करेगा
और 12-14 फुट के इन्सान का कुछ वर्ष से ज्यादा जी पाना असंभव है
●That's biological limit of your size●
.
पर साइज़ से एक बात ध्यान आई मेरे भाई
वास्तव में... आप शुरू कहा होते है?
और कहा पे ख़त्म?
अगर मैं एक कमरे में खडा हूँ तो sure... 5 फुट 11 इंच मेरे फिजिकल साइज़ की अपर बाउंड्री है... लेकिन जब मैं चिल्लाता हूँ
तो.. मैं पूरे कमरे को अपनी आवाज से भर सकता हूँ
अब चूँकि आवाज यानी साउंड एक ऐसी चीज है जो इन्सान के शरीर के अन्दर से निकली है तो आर्गुमेंट के लिए... इसे इन्सान का "vocal size" कहा जा सकता है
30 cm की दूरी से इन्सान अधिकतम रूप से 88 डेसीबेल तक साउंड चिल्ला के पैदा कर सकता है जो मैथमेटिकली...लगभग 5 किलोमीटर चलने के बाद दम तोड़ देता है
●So your vocal size at earth is about 5 kilometers●
.
पर 5 किलोमीटर से आगे भले ही कोई आपको सुन ना पाए
लेकिन... शायद वो आपको देख सके?
उम्म्म...पृथ्वी पर कोई आपको अधिकतम कितनी दुरी तक देख सकता है?
मान लो अगर आपके सामने खडा कोई इन्सान आपसे विपरीत दिशा में जाने लगे तो.... लगभग 4.8 किलोमीटर के बाद वो आपको दिखना बंद हो जाएगा
इसकी वजह पृथ्वी का गोल होना है क्युकी आपसे दूर जाता इन्सान वास्तव में ढलान पर उतर रहा होता है... यही कारण है की आप अगर सागर में जाती किसी नौका को देखे
तो... आप जान पायेगे की नौका धीरे धीरे नौका के फ्रंट भाग से गायब होनी शुरू होती है
और नौका का मस्तूल (उंचाई पर लगा झंडा) सबसे बाद में गायब होता है
●So your optical size at earth is about 4.8 kilometers●
.
लेकिन एक मिनट
स्पेस के बारे में क्या ख्याल है?
वहा ना कोई पृथ्वी है... ना कोई ढलान
अन्तरिक्ष में अगर हम मैं किसी जगह खड़ा हूँ और मेरा 6 फुट का दोस्त मुझसे दूर जा रहां है
तो... जैसे जैसे वो दूर होता जाएगा... वैसे वैसे उसके पाँव और सर से टकरा कर मेरी आँख पर बनने वाले उसके प्रतिबिम्ब का "angular size" छोटा होता चला जाता है... और चूँकि मानव नेत्र बेहतरीन परिस्थितियों में मैक्सिमम 20 arc seconds तक angular size वाली चीजो को देख सकता है
टेक्निकली स्पीकिंग... आपका 6 फुट का दोस्त लगभग 15 किलोमीटर के बाद आपको दिखना बंद हो जाएगा
●So your optical size in space is about 15 kilometers●
.
खैर पृथ्वी पर आपको देखना भले ही 5 किलोमीटर के बाद संभव ना हो पर...आपको सूंघना?
आपको जान के आश्चर्य होगा की blood hound प्रजाति के कुत्ते आपकी गंध को 18 किलोमीटर तक सूंघ सकते है
पर बात करे भालू की? तो एक भालू आपके शरीर को 30 किलोमीटर की दूरी तक सूंघ सकता है
●So your maximum scent size on earth is about 30 kilometers●

पर यहाँ एक निराशा की बात ये है की आपकी गंध या आवाज पृथ्वी के बाहर यात्रा करने के किसी माध्यम के ना होने के कारण इस पृथ्वी से बाहर कभी नहीं जा सकेगी
This feels a little embarrassing and small right??
Or....
May be not.....

एक चीज ऐसी है.... जो आपके शरीर से निकलती है... और टेक्निकली उसकी यात्रा पृथ्वी की बाउंड्री के कारण रूकती नहीं
कौन सी चीज??
.
जब भी किसी प्रोटान के चक्कर लगाते इलेक्ट्रान को ऊर्जा मिलती है तो वो केन्द्रक से दूरस्थ कक्षा में ट्रान्सफर हो जाता है... और एक अन्तराल के बाद अपनी कक्षा में वापस आ जाता है
तो... इस कक्षा में परिवर्तन की प्रक्रिया में वो...
"एक फोटान अर्थात प्रकाश का अणु" पैदा करता है
किस्मत से... मानव शरीर भी रेडिएशन पैदा करता है... ये रेडिएशन ज्यादातर इंफ्रारेड होता है जिसे हम नंगी आँखों से नहीं देख सकते
पर दिन के 4 बजे आपका शरीर टेक्निकली दिन में सबसे गर्म होता है और वैज्ञानिक शोधो के अनुसार हमारे शरीर से अल्प मात्रा में "visible light" के फोटान भी उत्सर्जित होते है
बेशक ये प्रकाश द्रश्य प्रकाश से हजारो गुना मध्यम होता है क्युकी ये प्रकाश ऊर्जा के बड़े बड़े पैकेट्स में नहीं बल्कि छोटे छोटे अणुओ के रूप में होता है
.
और जब आपके शरीर से ये फोटान निकलते है और अगर कोई उनके रास्ते में ना आये तो...
"उनके पास रुकने की कोई वजह ही नहीं है"
.
आपकी शरीर से निकले हुए वे फोटान...
इस पृथ्वी से निकल अपने अनंत सफर पर हमेशा चलते रहेगे...
और किसे पता... अगर कोई उनका रास्ता ना रोके
तो... एक ना एक दिन वो द्रश्य ब्रह्माण्ड को पार कर वहा पहुच जाए...
जहा पहुचने की कल्पनाओं ने... आदिकाल से ही मानव मन को विस्मृत किया है
.
So funny enough...
आपका "फिजिकल साइज़" बायोलॉजीकल, जिओमट्रीकल वजहों के कारण "सीमित" है
आपके वोकल, ऑप्टिकल, और फ्रग्रेंस साइज़ पृथ्वी के कारण "सीमित है"
पर...
आपकी जिन्दगी की चमक...
आपके जीवन की ऊर्जा से निकला प्रकाश...
Your Personal GLOW... isn't bound by anything at all....!!!
.
Light from you life... which you emit... makes you kind of "UNLIMITED" in size
as well as...
"IMMORTAL" forever
.
तो हँसते रहिये... मुस्कुराते रहिये
Keep smiling... Keep glowing !!!

And As Always
THANKS FOR READING
wink emoticon

Your questions and my answers

१-- आत्मा क्या है ----- निश्चित रूप से एक रहस्यमय
ऊर्जा जो संसार के समस्त जड और चेतन में व्याप्त है .
औपनिषदक विचारधारा इसे परमात्मा का अंश
मानते हुए अटल ध्रुव शाश्वत सत्ता मानती है और इसके
ऊर्जात्मक रूप के अनुसार ठीक भी है पर बुद्ध ने
इसकी अटलता , अपरिवर्तनीयता और जीव से संबंध
पर सवाल उठाया . आज की भाषा में कहें
तो उन्होंने एक कोशिकीय जीवों से बहुकोशिकीय
जीवों में ' आत्मा के स्वरूप में संक्रमण ' पर सवाल
उठाया और पर्याप्त शब्दावली के अभाव के आधार
पर इसे ध्रुव और शाश्वत होना अस्वीकार कर
दिया . परंतु उनके सामने एक दूसरा सत्य खडा था और
वो था कर्म सिद्धांत और पुनर्जन्म . और तब उन्होंने
अपनी मेधा का प्रयोग करते हुए
स्थापना दी कि जन्म इच्छाओं का होता है ठीक
किसी लहर की भांति जहाँ पिछली लहर ( पिछले
कर्म ) अगली लहर को उत्पन्न करती है पर यथार्थ में
जल केवल ऊपर और नीचे होता है .

२-- इच्छा क्या है ----- यह भी ऊर्जा का ही एक
प्रकार है जिसे हम महसूस कर सकते हैं जो जीव को कर्म
के लिये प्रेरित करती है . इसके बिना आत्मा और
ब्रह्मांड अस्तित्व में ही नहीं आते . इसी लिये आर्ष
ग्रंथों में कहा गया है कि ' ब्रह्म ' ने
कामना की कि मुझे ' होना 'चाहिये और वह '
हो ' उठा . पर यह अवधारणा ब्रह्म की " निर्लिप्त
निराकार व कालातीत ' होने की अवधारणा पर
सवाल उठाती थी इसलिये बाद में
स्थापना दी गयी कि ब्रह्म में स्वतः उठने वाले
क्षोभ से ब्रह्मांड बनने की प्रक्रिया प्रारंभ हुई .
अतः इसी क्षोभ को ही ' इच्छा ' का प्रारंभिक
रूप माना जा सकता है परंतु यह अकस्मात और
स्वतः उत्पन्न हुआ था अतः ब्रह्मांड
की उत्पत्ति बिना कारण - कार्य के स्वतः हुई .
और प्रारंभिक विक्षोभ को हम पहली इच्छा और
असंतुलन का प्रारंभ मान सकते हैं जिसके पश्चात
ब्रह्मांड का निर्माण प्रारंभ हुआ . आज
की भाषा में इसे " हमारे ब्रह्मांड "
की एंट्रॉपी भी कह सकते हैं जिसके कारण ब्रह्मांड में
निरंतर संतुलन और प्रतिसंतुलन की एक हौच पौच
रहती है परंतु इस नाजुक असंतुलन से ही ब्रह्मांड संतुलित
रूप से गतिमान रहता है और उसका का कारोबार
चलता है यानि कि ' इच्छा ' भी ब्रह्मांड के
संचालित करने वाली एक शक्ति है .
तो..... जब यह ' इच्छा ' रूपी ऊर्जा ' आत्मा '
रूपी ऊर्जा को ढँकती है तो जन्म होता है ' सूक्ष्म
शरीर ' का जो अपनी इच्छाओं के कारण ,
उसकी पूर्ति के लिये ' कर्म ' करना चाहता है .
यही कारण है कि हम अपनी इच्छाओं में इतने आसक्त
और लिप्त होते हैं . इस प्रकार इस सिद्धांत से
सनातनी विचारधारा और बुद्ध
की विचारधारा , दोंनों से से पुनर्जन्म
की व्याख्या हो जाती है .

३-- कर्म क्या है ---- कर्म भी ऊर्जा का ही एक और
प्रकार है जिसे हम ' इच्छाओं ' के निर्देशन में करते हैं
जिसका परिणाम होता है -- ' फल ' अर्थात
द्रव्यमान . इसीलिये बढते अच्छे बुरे कर्मों के अनुसार '
आत्मा ' पर ' इच्छा ' , ' कर्म ' और ' कर्म फल ' के
आवरण चढता चला जाता है और ' जीव '
अधिकाधिक इस ब्रह्मांड में आवागमन के चक्र में
फंसता चला जाता है
तो अगर कोई इच्छाओं के अधीनहोकर कर्म करने के
स्थान पर निष्काम कर्म अर्थात अनासक्त कर्म करे
तो --- निश्चित रूप से फल तो आयेगा ही परंतु
आत्मा के ऊपर ना केवल इच्छाओं की नयी पर्तें
चढना बंद होंगी बल्कि इस कर्म रूपी ऊर्जा के
द्वारा पुराने कर्म फल भी नष्ट होना प्रारंभ
हो जायेंगे क्यों कि अनासक्ति होने पर उन पुरातन
इच्छाओं के होने का कोई अर्थ नहीं रह जायेगा और
वे स्वतः विलोपित हो जायेंगी . और ...तब इच्छा ,
कर्म और कर्मफल के हटने से विशुद्ध आत्मा प्रकट
होगी अपने पूर्ण ' ब्रह्म ' स्वरूप में , ठीक वैसे ही जैसे
ऊपर की राख हट जाने पर अंगारा प्रकट
हो जाता है .

४ -- फल क्या है --- इच्छाओं के निर्देशन में '
परमाणुओं को संयोजित कर एक आकार धारण
करना ही फल है . द्रव्यमान की मूल इकाई ' परमाणु '
है पर उसका चरम विकसित और चेतन रूप है ' जीवन '
और जीवन में भी सबसे ' पूर्ण चैतन्य रूप है ' -- " मानव
" जिसकी चेतना का स्तर इतना ऊँचा होता है
कि वह इच्छाओं के बंधन से मुक्त होकर अपने वास्तविक
ऊर्जा रूप अर्थात " आत्मा " को जान सकता है और
ब्रह्मांड के नियमों से मुक्त होकर पुनः उसी ब्रह्म से
जुड सकता है जिससे कभी वो पृथक हुआ था .
इसी को ' मोक्ष ' कहा गया है . परंतु मनुष्य इच्छाओं
के अधीन होकर , शरीर और अहंकार
की तॄप्ति को ही वास्तविकता समझता है जिसके
कारण ही ये संसार ब्रह्मांड के उन भौतिक
नियमों पर चलता है जिनका निर्धारण ' हमारे
ब्रह्मांड ' के जन्म के समय ही हो गया था .

५-- मोक्ष क्या है --- जब कोई मनुष्य अपनी जैविक
ऊर्जा का संयोग ब्रह्मांड की उस ऊर्जा से
करा देता है जो इच्छाओं और कर्मों के आवरणों में
ढंकी हुई है और जिसे हम आत्मा कहते है , तो उसी पल
हमें अपने वास्तविक " ब्रह्म स्वरूप " अर्थात " मूल
ऊर्जा रूप " का ज्ञान हो जाता है और तब ये जगत
एक स्वप्न के समान दिखाई देता है . ( ये केवल
सैद्धांतिक प्रेजेटेंशन है क्यों कि इसका वास्तविक
अनुभव व्यवहारिकता में कठिन है बहुत ही कठिन )

६-- मोक्ष अर्थात ब्रह्म प्राप्ति के मार्ग क्या हैं
--- गीता के अनुसार यह " योग " है जिसका अर्थ
कृष्ण ने बताया है " परमात्मा या ब्रह्म से जीव
का योग " . गीता में योग के अनेक
प्रकारों का विवरण है जिन्हें मोटे रूप से सांख्य ,
ध्यान , कर्म और भक्ति में बाँटा जा सकता है .
अर्थात कृष्ण प्रत्येक को अपने ' स्वधर्म ' अर्तात
अपनी प्रवृत्ति के अनुसार चुनाव की छूट देते हैं . कई
विद्वान इसमें विरोधाभास ढूँढते हैं परंतु
उनकी उद्घोषणा है कि प्रत्येक मार्ग अंततः ' उन '
तक ही लेकर आयेगा . कैसे ? वैज्ञानिक नजरिये से
क्या इसकी व्याख्या संभव है ??
कृष्ण ने इसके संकेत स्पष्ट दे रखे हैं पर फिर भी क्यों न
हम अपने तार्किक नजरिये से
उनकी उद्घोषणा को परख लें ----

१- सांख्य या ज्ञान --- इसके अनुसार जीव में "
अकर्ता " का भाव होता है और वह कर्म करते हुए
भी उसके प्रति स्वयं को ' उससे ' परे रखता है जिसके
कारण वह ' कर्म फल ' के प्रति भी ' अनुत्तरदायित्व '
का भाव रखता है . यह विधि बहुत कुछ बौद्ध
विधि और अन्य नास्तिक दर्शनों के समान है पर कृष्ण
अधिकारपूर्वक घोषणा करते हैं कि कर्म और कर्मफल के
प्रति ' अनुत्तरदायित्व ' का भाव उस जीव
को अंततः ' इच्छाओं ' से भी मुक्त कर देता है और तब
भी वह आत्मसाक्षात्कार के माध्यम से ब्रह्मभाव
को प्राप्त हो जाता है . ( यहाँ कपिल और बुद्ध '
ब्रह्म ' या ' ईश्वर ' के विषय में मौन हैं )

२- ध्यान --- इसे हठ योग भी कहा जा सकता है
जिसमें शरीर को शुद्ध ( पंच कर्मादि ) कर भ्रू मध्य
या नासिकाग्र पर ध्यान केन्द्रित
किया जाता है . यह अत्यंत कठिन विधि है और इसमें
सामान्य साधक को किसी योग्य गुरू
की आवश्यकता होती है . इस मत के अनुसार जीव
की समस्त जैविक ऊर्जा ( कर्म व कर्मफल सहित ) "
मूलाधार चक्र " से होती हुई विभिन्न
चक्रों को पार करती हुई " सहस्त्रार " तक पहुँचती है
जो ब्रह्म रूपी परम ऊर्जा का द्वार है और जहाँ पहुँच
कर जीव के समस्त कर्मों , कर्म फल और इच्छाओं
का विलीनीकरण हो जाता है . परंतु साधारण
शरीर वाले योगी प्रायः लौटते नहीं और
उसी समाधि अवस्था में ' ब्रह्मरंध्र ' से
उनकी आत्मा का लय ' ब्रह्म ' में हो जाता है . कुछ
सूफी भी इस हिंदू योग पद्धति से परिचित थे और
उन्होंने इन चक्रों का विवरण अन्य नामों से
दिया है .

३- कर्म --- यह गीता की सबसे चर्चित विधि है
जिसमें सांख्य और योग को दुःसाध्य मानते हुए
जीव को कर्म करने का सुझाव दिया गया है परंतु उसे
' निष्काम ' अर्थात केवल कर्म में ही आसक्ति रखने
का अधिकार दिया गया है फल में
नहीं ( साम्यवादियों और तथाकथित दलित
चिंतकों ने इसका सबसे ज्यादा अनर्थ किया है ) .
कृष्ण का कहना है कि फल में आसक्ति होने से वर्तमान
कर्म में तो एकाग्रता बाधित होगी ही साथ फल में
आसक्ति से नयी इच्छाओं का बंधन भी आत्मा के ऊपर
बन जायेगा . परंतु अगर निष्काम कर्म किया जाये
तो चाहे जो फल प्राप्त हों परंतु नयी इच्छायें न
होने से पुराने कर्म और कर्मफल क्रमशः नष्ट होते चले
जायेंगे और अंततः ' आत्मा ' अपने विशुद्ध ' ब्रह्म '
स्वरूप में प्रकट हो जायेगी और मोक्ष को प्राप्त
होगी . ( इसमें पूर्वकर्मों के फल सामने आते तो हैं पर
पूर्ण साधक उनसे भी अनासक्त रहता है )

४- भक्ति -- इसे कृष्ण ने सर्वाधिक सरल उपाय
माना है परंतु ' सकाम ' और ' निष्काम ' भक्ति में
बांट कर एक चेतावनी भी दी है . सकाम भक्ति से
जीव अपने ' आराध्य ' के स्वरूप को प्राप्त होता है
परंतु उसकी मुक्ति असंभव होती है क्यों कि इच्छाओं
और कर्मों का बंधन समाप्त नहीं होता . जबकि '
प्रेम ' जो बिना आकांक्षा , बिना इच्छा का एक
अनजाना ' निष्काम ' भाव है , उसके
द्वारा किसी भी " माध्यम " ( मूर्ति , स्वरूप ,
नाम ) से परम सत्ता से अगाध रूप से जुड जाता है
तो उसकी समस्त इच्छायें , समस्त कर्म और कर्मफल '
क्षण मात्र ' में विलीन हो जाते हैं जैसे ' अग्नि ' में
सोने के ऊपर लिपटी ' मैल ' की पर्त नष्ट
हो जाती है और खरा सोना प्रकट हो जाता है .
( पर कई बार माध्यम की आसक्ति उसे अंतिम पद से
रोक भी देती है जैसे कि रामकृष्ण परमहंस ने वर्णित
किया था कि किस तरक ' काली ' में
उनकी आसक्ति ने उन्हें आखिरी चरण में जाने से रोक
रखा था ) ..चैतन्य , मीरा और रामकृष्ण परमहंस
इसी माध्यम को सर्वाधिक सरल और उचित मानते
थे .

तो स्पष्ट है कि कृष्ण के प्रत्येक मार्ग में ' जीव '
का संपर्क ' आत्मा ' के माध्यम से अपने असली ' ब्रह्म
स्वरूप ' से होता है तो मोक्ष हो जाता है . पर
एसी स्थिति में कर्म सिद्धांत का क्या ?
विशेषतः ' ध्यान ' और ' भक्ति ' जैसे ' शॉर्टकट '
मामले में जहाँ कृष्ण उद्घोषणा करते हैं कि तूने चाहे
जो किया हो बस तू एक बार मेरी शरण में आ भर
जा ...... तो पहले तो यह जान लें सभी लोग
कि यहाँ कॄष्ण कोई एक केवल यदुवंशी कृष्ण
नहीं बल्कि ' योगयुक्त साक्षात परब्रह्म ' बोल रहे
हैं . दुसरी बात वे कह रहे हैं कि मैं तुझे सारे
पापों सारे कर्म फलों और इच्छाओं से मुक्त कर
दूँगा ...कैसे ....क्यों कि ये इच्छायें , ये कर्म , ये कर्म
फल , ये आत्मा ...ये सभी ऊर्जायें उस ' ब्रह्म
रूपी ऊर्जा ' से ही तो उत्पन्न हुई थीं तो समस्त
द्रव्यमान और ऊर्जा के विभिन्न रूप इस परम ऊर्जा के
संपर्क में आते ही क्षण मात्र में अपना मूल रूप प्राप्त
कर लेते हैं और एसा जीव स्वयं ब्रह्मस्वरूप हो जाता है
ठीक वैसे ही जैसे किसी भी संख्या का गुणा शून्य
से करने पर वह बिना किसी चरण के तत्काल शून्य
हो जाती है . इस तरह से भक्ति और योग मार्ग जैसे "
शॉर्टकट " से भी कॄष्ण के कर्म सिद्धांत का उल्लंघन
नहीं होता है

●उर्दू बोलने वालो के लिए आइना●

इस पोस्ट को पढना शुरू करे तो अंत तक बिना रुके पढ़े
शायद आज आपको इतिहास के एक ऐसे तथ्य का पता चले जो या तो छुपा हुआ है या कहे तो छुपा के रखा जाता है

"उर्दू"
.
नफासत की जुबान
पाकिस्तान की राज भाषा
भारतीय उपमहादीप के मुसलमानो की पहचान
उर्दू...

उर्दू में
50% शब्द हिंदी से है
25% अरबी से
10% फ़ारसी से
10% अंग्रेजी से
5% शब्द तुर्क मंगोल से लिए गए है
.
ऊपर दिए उदाहरण से आप समझ सकते है की उर्दू में हर वाक्य में वाक्य रचना हिंदी के समान ही होती है पर
"verb" या "noun" का फर्क होता है
.
उर्दू की ना कोई व्याकरण है
और ना कोई शब्द कोष
.
तो हमने सोचा की
ये "भेल पूरी भाषा" आखिर दुनिया में लेके कौन आया
जासूसी बुद्धि करवटे लेने लगी
और
हमने "wiki" आंटी के दरबार का घंटा बजा दिया
हीहीही
और वहां से जो पता चला उसे पढ़ के दिमाग और होउच पाउच हो गया है
हीहीही
.
उर्दू शब्द का अर्थ है "सैनिक छावनी" और उर्दू शब्द मंगोल भाषा के शब्द "ओरडू" का अपभ्रंश है यानि उर्दू शब्द तुर्क मंगोल की भाषा की उपज है
.
है ना अजीब?
मुसलमानों की भाषा का सम्बन्ध तो अरब या फारस से होना चाहिए
ये "चाईनीज कनेक्शन" कहा से आया?
.
चलिए हम बताते हैं..
और इस घालमेल को समझने के लिए आपको इतिहास को ठीक से समझना होगा
.
"चंगेज खान"
.
इतिहास का सबसे खूंखार, दुर्दांत आक्रमणकारी
कहते है की चंगेज खान की फेलाई तबाही के निशान पृथ्वी के 25% हिस्से तक फैले थे
बड़े पैमाने पे नरसंहार चंगेज खान ने किया और इतिहासकारो के मत अनुसार कई करोड़ लोगो का फातिहा पढने का श्रेय चंगेज भाई साब को जाता है
पर
हम लोग अक्सर एक गलती कर देते है की चंगेज खान को मुस्लिम समझ लेते है
वास्तव में
चंगेज तुर्क मंगोल क्षेत्र का था और इस्लाम का दुश्मन था
अरब क्षेत्रो पे हमले कर इसने वो मार काट मचाई की आज भी इन्हें मुस्लिम इतिहास में "खुनी,दरिंदा, शैतान" के तमगो से नवाजा गया है
.
अब बात करो "तैमूर लंग" की
तैमूर भी एक खूंखार आतंकवादी था और भारत पे हमला कर इसने कई बार विनाश लीला फेलाई
इसी तैमूर के पोते "बाबर" ने भारत में मुग़ल वंश का स्थापना कर इस्लाम का झंडा बुलंद किया
.
अब तुर्रा ये है की
तैमूर और बाबर दोनों खुद को चंगेज खान का वंशज बताते थे
.
बात कुछ "समधन" में आई?
.
"इस्लाम के दुश्मन के वंशज इस्लाम का झंडा बुलंद कर रहे थे"
.
ऐसा कैसे?
वो इसलिए की चंगेज के बाद अरब कबीलो के लगातार हमलो के फलस्वरूप मंगोलों ने अरबो के सामने घुटने टेक दिए थे
तैमूर ने अपनी जीवनी में स्वीकार किया है की उसके पिता ने इस्लाम कबूल किया था
.
यानि भारत में इस्लाम का झंडा बुलंद करने वाले मंगोल या मुग़ल स्वयं अरब की खूनी संस्कृति के गुलाम बन चुके थे
.
इन तुर्क मंगोलों की भाषा में सैनिक छावनी को "ओरडू" कहा जाता था जहा वे हिन्द की अवाम को कैद कर यातनाये देते थे, औरतो के बलात्कार किये जाते थे, अमानवीयता की हद पार की जाती थी.... ताकि..... वे इस्लाम कबूल कर सके
.
और इन "सैनिक छावनियों" में उन्हें इस्लाम की अधिकृत भाषा अरबी बोलने पे मजबूर किया जाता था
.
अब एक दिन में कोई अरबी कैसे सीख जाए?
तो जान बचाने के लिए उन हिंदी भाषियों ने अपनी मातृ भाषा में अरबी शब्दों को फिट करना शुरू कर दिया और धीरे धीरे फ़ारसी और अन्य शब्द भी उस भाषा में जगह पाने लगे
और इस प्रकार तलवार की धार पे उस बोली का जन्म हुआ
जो ना हिंदी थी
ना अरबी
वाक्य निर्माण हिंदी का था पर शब्द अरबी फ़ारसी और मंगोली
और सैनिक यातना गृह यानी की "ओरडू" से निकली इस खिचड़ी भाषा को नाम मिला "ओरडू"
यानी की
"उर्दू"
.
मुग़ल और तुर्क इस भेल पूरी भाषा को गुलामो की भाषा मानते थे इसलिए कभी उन्होंने इस भाषा को सम्मान नहीं दिया और इसी कारण मुग़ल दरबार की राज भाषा फ़ारसी थी
.
अब प्रश्न ये उठता है की भारत और पाकिस्तान में जो आज उर्दू को अपनी भाषा बताते हैं
वे वास्तव में हैं कौन?
कौन थे उनके पूर्वज?
.
हीहीही
इसका जवाब हम आपकी कल्पनाशीलता पे छोड़ते हैं



उर्दू बोलने वालो
स्वयं विचार करो

गुरुत्वीय तरंगो की खोज ●A New Window To The Universe: Gravitational Waves●

बचपन में क्लास में पढ़ाई गई कई बकवास और भ्रामक बातो में से एक... ये भी है कि...
"पृथ्वी सूर्य के चारो ओर चक्कर लगाती है"
वास्तव में... पृथ्वी किसी चीज के चक्कर नहीं लगाती
"पृथ्वी तो... सीधी रेखा में भाग रही है"
At A Speed Of 29.78 Km/Sec
पर चूँकि पृथ्वी के निकट मौजूद एक तारा... "सूर्य" अपनी ग्रेविटी के कारण पृथ्वी को अपनी तरफ खींचता है
(वास्तव में खींचता नहीं है... ये प्रोसेस अधिक जटिल है.. जिसे मैं फिर कभी डिटेल में समझाऊँगा)
इसलिए सूर्य के पृथ्वी को खींचने के कारण... पृथ्वी की हालत उस कबूतर की तरह हो जाती है
जिस कबूतर के पाँव में आपने रस्सी बाँध दी हो... फिर भी कबूतर लगातार सीधी रेखा में उड़ने की कोशिश कर रहा हो... परिणाम स्वरुप
"कबूतर आपके चारो ओर चक्कर लगाने लगता है"
तो क्या हो.. अगर कबूतर के उड़ने की स्पीड बढ़ा दी जाए?
Lets Say... पृथ्वी रुपी कबूतर 30 की बजाय... 42.1 Km/Sec की गति पकड़ ले?
Well... तब... रस्सी टूट जायेगी !!!
और पृथ्वी... सूर्य की ग्रेविटी को तोड़ के... ब्रह्माण्ड में मुक्त सफ़र पर निकल जायेगी
क्योंकि... सूर्य का द्रव्यमान इतनी तेजी से जा रही वस्तु को बांधे रखने के लिए... काफी नहीं है
.
आप समझ गए होंगे कि... किसी सिस्टम में तारो के orbit के लिए... सिस्टम में पर्याप्त mass होना अनिवार्य है.. वरना सिस्टम/गैलेक्सी के सभी तारे अपनी कक्षा तोड़ के ब्रह्माण्ड में बिखर जायेगे !!!
.
सन 1933 में वेज्ञानिको ने दूसरी गैलेक्सीज के निरिक्षण के वक़्त एक अद्धुत चीज नोटिस की
कि... तारे जिस स्पीड में गति कर रहे है... उस गति को बांधे रखने लायक Mass तो गैलेक्सी में है ही नहीं
कुछ ऐसा था... जो अदृश्य रूप में सभी गैलेक्सीज को गोंद की तरह बांधे रख... जीवन प्रदान कर रहा था
इस अदृश्य जीवनदायी तत्व को नाम दिया गया
Dark Matter !!!
.
आज लगभग 80 साल बीत जाने के बावजूद.. अपनी बेहतरीन क्षमताओ के बावजूद... हम सिर्फ ये जानते हैं कि... "डार्क मैटर क्या नहीं है"
According To Us
1. डार्क मैटर है... और बहुत अधिक मात्रा में है (दिख रहे पदार्थ से लगभग 5 गुणा)
2. डार्क मैटर... एंटी मैटर नहीं है
3. डार्क मैटर... ब्लैक होल्स में भी नहीं है
4. डार्क मैटर के प्रकाश से कोई क्रिया ना करने के कारण... इसे किसी भी प्रकार से देखा नहीं जा सकता
That's All !!!!
ब्रह्माण्ड में हम इंसानो के समानांतर दुनिया बनाये आखिर ये डार्क मैटर है क्या?
क्या कोई ऐसा तरीका नहीं.. जिससे हम डार्क मैटर के रहस्य तक पहुच पाएं?
Well.. Dark Matter Could Be Smart But We Humans R Cunning Too !!!
एक चीज है... जिसकी पिछले दिनों हुई खोज ने... डार्क मैटर तक पहुचंने का एक रास्ता दिखाया है
.
Gravitational Waves !!!!
************************
1916 में महान वैज्ञानिक आइंस्टीन ने ये भविष्यवाणी की थी कि... ब्रह्माण्ड का फैब्रिक "स्पेस-टाइम" यानी ढांचा... एक सागर के समान है...
इसलिए... ब्रह्मांड में गति कर रही कोई भी चीज... ब्रह्माण्ड के फैब्रिक में लहरे पैदा करती है
उदाहरण के लिए... अगर आप पानी की शांत सतह में अपनी ऊँगली घुमाए... तो आपकी उंगली से लहरे पैदा होगी
इन लहर रुपी "Distortion" को ही ग्रेविटेशनल वेव्स कहते हैं
.
अब चूंकि... डार्क मैटर और ब्लैक होल जैसी चीजे... लाइट से इंटरैक्ट नहीं करती... इसलिए हम इन्हें डायरेक्टली नही देख सकते
और... इनडायरेक्ट ऑब्सेरबशन्स तक सीमित है
लेकिन... डार्क मैटर के ग्रेविटेशनल इफ़ेक्ट को ट्रैक करके... ब्रह्माण्ड के इन रहस्यों की प्रॉपर्टीज को समझा जा सकता है
***************************************
20 मई 1964 को अपनी लैब में मौजूद अमेरिकी वैज्ञानिक "रोबर्ट विलसन" एकाएक अपने माइक्रोवेव एंटीना द्वारा कैच की जा रही एक अजीबो गरीव फ्रीक्वेंसी से चौक गए थे
इस अजीबो गरीब साउंड के स्त्रोत की तलाश में.. उन्होंने हर संभावित उपाय किये
यहाँ तक की सीढिया लगा कर... एंटीने पर बैठे कबूतरो को इसकी वजह मान के उड़ाने का प्रयास किया
लेकिन... बहुत बाद में उन्हें ये ख्याल आया कि...
ये आवाज... ब्रह्माण्ड में हर तरफ से आता ये माइक्रोवेव रेडिएशन... किसी महान घटना का साक्षी है
वास्तव में.. ये रेडिएशन बिग बैंग का लेफ्ट ओवर था
Robert Was Looking At Almost Beginning Of Time !!!
माइक्रोवेव रेडिएशन विंडो की खोज ने... इंसान के लिए ब्रह्माण्ड निर्माण के सिर्फ 3 लाख 80 हजार साल बाद के समय को देख पाना संभव किया था
But That's Kinda Limit.
क्योंकि... इससे पूर्व... फोटांस का मुक्त विचरण ही संभव नहीं हो पाया था
किसी भी तरह हम... समय के पन्नों की किताब के वे पन्ने नही पलट सकते
जो हमे उस 380000 वर्ष के पूर्व के ब्रह्माण्ड का दर्शन करा सके
.
But A New Era In Science Has Begun
आज आइंस्टीन के 100 साल बाद... ग्रेविटेशनल तरंगो की खोज ने.. मानवो को ऐसी "COSMIC WINDOW" उपलब्ध कराई है... जिसके पार... ब्लैकहोल तथा डार्क मैटर जैसे ना जाने कितने रहस्यों के सागर हमारा इन्तजार कर रहे हैं
और शायद... इन सागरो की गहराइयो में डुबकी लगा कर एक दिन हम... "ब्रह्माण्ड की शुरुआत" देख पाये
.
This Universe Is Huge Ocean Of Mysteries...
Electromagnetic Window Has Enabled Us To Surf Through It
But If You Want To Reach To An End Of Cosmic Sea?
Better Ride A Wave...
.
A Gravitational Wave !!!!
************************
And As Always
Thanks For Reading

●MATRIX RELOADED●

LIGHT यानी प्रकाश की गति अद्भुत है
इन फैक्ट सिर्फ एक सेकंड में... आपको पलक झपकाने में लगे समय के अंदर... लाइट इस पृथ्वी के चक्कर लगा सकती है
7 बार !!!
Impressive
प्रकाश की गति 299792 Km/Sec ब्रह्माण्ड की सबसे तेज गति है... इससे तेज गति कर पाना ब्रह्माण्ड में किसी भी चीज के लिए संभव नहीं है
लेकिन मेरा सवाल है
.........WHY........
.
लाइट की गति... 5 लाख km/sec क्यों नहीं?
या... लाइट की स्पीड 10 लाख/sec क्यों नहीं है?
Ok... Now We Are Getting Somewhere !!!
ऐसा इसलिए नहीं है कि हमारे यन्त्र इस गति से तेज गति को नहीं नाप सकते
बल्कि ऐसा इसलिए है.. क्योंकि ये ब्रह्माण्ड का ही फंडामेंटल स्ट्रक्चर है जिस कारण... प्रकाश से तेज गति की कल्पना करते ही... ब्रह्माण्ड के सभी नियम टूट जाते है... और ब्रह्माण्ड Collapse हो जाता है
क्योंकि शायद...
इन नियमो में ही... ब्रह्माण्ड का एक महान सत्य छुपा हुआ है
***********************************************
अपने घर के बाहर पार्क में इस पोस्ट को लिखते हुए... अक्सर पार्क में बने हुए खूबसूरत फाउंटेन यानी पानी के फव्वारे पे ध्यान चला जाता है
फाउंटेन को देखना बेहद खुशनुमा एहसास है... लेकिन... एक मिनट के लिए मान लीजिये
अगर हम... फव्वारे को किसी शक्तिशाली माइक्रोस्कोप की सहायता से देख रहे होते तो?
तो शायद प्रकृति के इस खूबसूरत करिश्मे की जगह... हम हाइड्रोजन और ऑक्सीजन के अणुओं का प्रवाह देख रहे होते
जो शायद इतना खूबसूरत नहीं होता
.
कुछ चीजे है... जो मुझे हमेशा परेशान करती है
जैसे कि... ये दुनिया अणुओ,परमाणुओ से क्यों बनी है?
हमारी आँखे परमाणुओ को क्यों नहीं देख पाती?
क्यों हमें लिमिटेड सेन्सस के साथ पैदा किया गया है... जिससे हम नंगी आँखों इस इस सृष्टि को इसके मूल स्वरुप में नहीं देख पाते?
.
आपके चाय बनाने से लेकर... सूर्य में संपन्न हो रही नाभिकीय प्रक्रिया तक
एक ब्रेड टोस्ट बनाने से लेकर... हाइड्रोजन एटम से आयरन बनने की प्रक्रिया तक
ब्रह्मांड का हर कण... हर क्रिया... कणो की प्रकृति पूर्व निर्धारित क्यों है?
Why So Much Physics & Chemistry In Life?
well... दुनिया बनाने वाला तो "आबरा का डाबरा" बोल के भी दुनिया बना सकता था
तो उसने ऐसी दुनिया क्यों बनाई... जहा कण कण एक पूर्वनिर्धारित प्रक्रिया अर्थात... "प्रोग्राम" का अनुसरण करता है
और ईश्वर का दिमाग समझने के लिए... इस प्रोग्रामिंग को समझने के लिए... हम अक्सर पदार्थ के अंदर झांकते हैं
.
Like....अणु... परमाणु... इलेक्ट्रॉन... प्रोटान... क्वार्क...
और अंत में पदार्थ गायब हो जाता है
रह जाते है तो सिर्फ...
कंप्यूटर कोड्स !!!!
जी हाँ...
दुनिया के कण कण के मूल में और कुछ नहीं... बाइनरी डिजिट्स में एक्सप्रेस होने वाले अर्थात 0 और 1 की भाषा में... कंप्यूटर कोड्स मिलते हैं
जो साफ़ साफ़ कहते हैं कि...
ये दुनिया.... एक कंप्यूटर प्रोग्राम है
.
MATRIX | PROGRAMME | SIMULATION
.
सीट बेल्ट बाँध लीजिये
आज मैं आपको कुछ ऐसे तथ्य बताउगा... कि अगर आप सामान्य भौतिकी का ज्ञान भी रखते है
तो आप खुद कहेगे कि...
ये दुनिया कंप्यूटर प्रोग्राम है
**********************
1: FINITE SPEED OF LIGHT
प्रकाश से हम सब भली भाँति परिचित है... लेकिन वास्तव में प्रकाश होता क्या है?
देखा जाए तो... प्रकाश ब्रह्माण्ड के दो कणो के बीच इनफार्मेशन पहुचाने का कार्य करता है
चाहे देखने के लिए प्रकाश का इस्तेमाल हो.. या इलेक्ट्रिसिटी... या इलेक्ट्रोमैग्नेटिक फील्ड... दुनिया के हर काम में... दो चीजे आपस में फोटॉन का एक्सचेंज करती है
अर्थात... लाइट ब्रह्माण्ड में "Information Processing" का कार्य करती है
.
अब आपके मोबाइल की स्क्रीन पर आते हैं...
हर वर्चुअल रियलिटी अथवा डिजिटल प्रोजेक्शन पिक्सल से मिल कर बनी होती है... पिक्सल से छोटा कुछ नहीं हो सकता
Luckily... हमारा ब्रह्माण्ड भी Pixelated है... और एक पिक्सल का साइज़ 1.616199*10^-35 होता है...
अर्थात 0.00000000000000000000000000000000016 मीटर!!!!
ब्रह्माण्ड की इस सबसे छोटी दूरी की यूनिट को हम "प्लांक डिस्टेंस" के नाम से जानते हैं
.
किसी भी प्रोग्राम में एक पिक्सल को प्रोसेस करने के लिए मिनिमम टाइम लगता है
Luckily हमारे ब्रह्मांड में भी समय की सबसे छोटी इकाई होती है...
यानी .00000000000000000000000000000000000000000005 सेकण्ड्स
या... 5.39*10^-44 सेकण्ड्स
जिसे हम... "प्लांक टाइम" के नाम से जानते है
.
किसी भी सॉफ्टवेयर गेम में एक पिक्सल को प्रोसेस करने में लगा मिनिमम समय... उस सॉफ्टवेयर की "मैक्सिमम प्रोसेसिंग स्पीड" कहलाती है
हमारे ब्रह्माण्ड में... सबसे छोटे पिक्सल को प्रोसेस करने में लगे सबसे छोटे समय का अनुपात निकाल जाए
अर्थात.... प्लांक डिस्टेंस/प्लांक टाइम
1.616199×10^−35/5.39106×10^−44
तो हमारे पास जवाब आता है
..........299792 !!!!
Whoaaa... Speed Of Light !!!
.
अर्थात... हमारे ब्रह्माण्ड में लाइट मैक्सिमम स्पीड इसलिए है
क्योंकि... ये ब्रह्माण्ड के सॉफ्टवेयर प्रोग्राम के ट्रांसिस्टर्स की अधिकतम गति है !!!
HENCE PROVED !!!!
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2: TIME DILATION
हम सभी जानते है कि... अधिक द्रव्यमान वाले पिंड.. जैसे ब्लैक होल्स के आस पास... समय की गति बहुत कम.. अथवा शून्य हो जाती है
लेकिन कैसे?
पदार्थ विज्ञान इस बात का जवाब कभी नहीं दे सकता
लेकिन... बहुत ज्यादा मैटर एक जगह एकत्रित होने के कारण... अगर ब्लैक होल को एक हैवी फ़ाइल मान लिया जाए
तो... इसकी आसानी से व्याख्या हो सकती है
Or To Be Simple
एक कंप्यूटर में.. हैवी फाइल्स के आस पास हमेशा प्रोसेसिंग...
स्लो अथवा लगभग शून्य...हो...जाती... है !!!!!
.
यही कारण है कि सदियो से "ग्रेविटी" के स्त्रोत की तलाश में घूम रहे वेज्ञानिकों को... ऐसा कोई स्त्रोत मिला ही नहीं
क्योंकि... ग्रेविटी कोई फ़ोर्स है ही नहीं
बल्कि...ग्रेविटी ब्रह्माण्ड के कणो की प्रोसेसिंग से उत्पन्न एक "यूज़फुल बायप्रोडक्ट" मात्र है
Gravity Is Simply Not Real
But An Illusion Only !!!
********************************************************
3: A UNIVERSE FROM NOTHING
चाहे प्राचीन ऋषियो का चिंतन हो
या आधुनिक वेज्ञानिको के निष्कर्ष
एक बात पर दोनों सहमत है कि
ये ब्रह्माण्ड शुन्य से उत्पन्न हुआ है
This Universe Came Out Of Nothing !!!
पर ऐसा कैसे संभव हो सकता है?
प्राचीन ऋषियो ने इसे... परमेश्वर की इच्छा का परिणाम कहा
लेकिन
21वी सदी में अवतरित एक महान संत विजय कुमार झकझकिया के अनुसार... परमेश्वर की इच्छा और कुछ नहीं...
ब्रहमाण्ड के सर्किट का पॉवर बटन "ON" होना था
Yeah... किसी भी सॉफ्टवेयर में इलेक्ट्रॉन्स शुन्य आयाम में ही होते है जब तक प्रोग्राम चालु ना किया जाए
और प्रोग्राम के on होते ही....
You Have A Universe... Which Popped Out Of "NOTHING" !!!
********************************************************
4: QUANTUM ENTANGLEMENT
ये दिमाग का दही करने के लिए पर्याप्त है
विज्ञान द्वारा सत्यापित है कि... इस ब्रह्माण्ड का एक कण.. दूसरे कण को प्रभावित कर सकता है
Faster Than Light
भले ही दोनों कण ब्रह्माण्ड के दो अलग अलग कोनो पर हो
How This Is Possible Even?
Well... पॉसिबल है
अपनी कंप्यूटर स्क्रीन देखिए
स्क्रीन के सबसे टॉप पर मौजूद पिक्सल... और सबसे नीचे मौजूद पिक्सल... के बीच की दूरी "एक स्क्रीन" है
लेकिन... दोनों पिक्सल्स की... कंप्यूटर के कमांड सेंटर से दूरी... समान है !!!
इस तरह.. ब्रह्मांड एक इकाई है
हमारे बीच दूरियां हो सकती है
लेकिन.. ब्रह्माण्ड की परम चेतना "UNIVERSAL CONSCIOUSNESS" हम सभी के समानांतर रहती है
एक हाइड्रोजन एटम के भी खरबवे के अरबवें हिस्से के बराबर दूर मौजूद "समानांतर आयाम"में
(इस विषय पर विस्तृत टॉपिक "ब्रह्माण्ड की परम चेतना" फिर कभी)
इसी कारण... Quantum Entanglement जैसी घटनाएं इस ब्रह्माण्ड में संभव है
********************************************************
5: DEFORMED HUMANS
कुछ बच्चे...जन्म से विकृत क्यों हो जाते है?
क्या प्रकृति अपने आप में परिपूर्ण नहीं?
बिलकुल.. ऐसा ही है
कोई भी प्रोग्राम परफ़ेक्ट नहीं होता
और प्रोग्रामिंग में किसी भी फाइल्स का करप्ट हो जाना है नार्मल बात है
तो दूसरे शब्दों में
ये विकृत बच्चे और कुछ नहीं...
नेचर की प्रोग्रामिंग एरर मात्र है !!!
********************************************************
और भी दर्जनों ऐसे कारण है... जिनके बल पर ब्रह्माण्ड को एक प्रोजेक्टेड रियलिटी सिद्ध किया जा सकता है... पर वे इतने टेक्निकल है कि उन्हें लिख कर मैं आपका दिमाग ही खराब करूँगा
इसलिए... कुछ बिन्दुओ को मैं छोड़ रहा हूँ... जिन्हें मैं अपनी किताब (अगर लिखता हूँ तो) में इस्तेमाल करना चाहुगा
.
अब सवाल ये उठता है... कि पदार्थ तक तो ठीक है
पर.. क्या हमारी चेतना... हमारे एहसास, सुख दुःख को प्रोग्राम किया जा सकता है?
मेरी बीवी को किस करते वक़्त... जिस सुख की अनुभूति मुझे होती है
वो प्रोग्राम नहीं हो सकता !!!
Oh Really ?
आपकी चेतना... आपके एहसास... सुख दुःख आनंद.. भी और कुछ नहीं... इलेक्ट्रो केमिकल रिएक्शन से बने सर्किट मात्र है
जब आपने अपनी बीवी को किस किया.. तो आपको बेशक अच्छा एहसास हुआ हो
लेकिन उस वक़्त आपका दिमाग "डोपेमिन" नामक केमिकल आपके सर्किट में रिलीज कर रहा था
बेशक आप अपने दिल को अपने हर एहसास के लिए जिम्मेदार माने
पर वास्तव में...आपके सुख,दुःख,ख़ुशी,गम सब कुछ आपके दिमाग में चल रहे केमिकल लोचे मात्र है
.
आपके दिमाग की चेतना ब्रह्माण्ड से इतर कोई अलग ऊर्जा नहीं... बल्कि आपको भ्रम में डालने के लिए "लिमिटेड सेंस" के साथ डिज़ाइन किया एक प्रोग्राम मात्र है
इस प्रोग्राम को बिलकुल तैयार किया जा सकता है
Artificial Intelligence !!!
मैने जैसा कि अपने पूर्व प्रकाशित टॉपिक "Matrix-1 "You Live In Simulation" में कहा था कि
हम आलरेडी एक सेकंड के लिए मानव चेतना को सिमुलेट करने में सफल रहे है
इन फैक्ट अगर हम 10^16 ऑपरेशन्स प्रति सेकंड अंजाम दे पाये तो हम आसानी से एक चेतनशील वर्चुअल ब्रेन बना सकते है
और अगर हम 10^36 ऑपरेशन्स प्रति सेकंड अंजाम दे पाये तो...
हम पृथ्वी जैसा एक डिजिटल ग्रह तैयार कर सकते है
.
करना सिर्फ ये है कि
हम एक वीडियो गेम तैयार कर के... उसमे मौजूद करैक्टर को लिमिटेड सेन्सस वाली चेतना के साथ डिज़ाइन करे.. तो वीडियो गेम में मौजूद वो इंसान हमारी तरह सोचेगा
वीडियो गेम में मौजूद पृथ्वी को अपना घर समझेगा..
और हमेशा अपने अस्तित्व को लेकर परेशान रहेगा
और
कंप्यूटर्स की हर वर्ष बढ़ती गति को लेकर एस्टिमटेड है
कि...
मिनिमम 2042 और मैक्सिमम सन 2192 वो वर्ष होगा
जब हम इंसान... खुद के वर्चुअल ब्रह्माण्ड बनाने में सफल हो जायेगे
अगर ऐसा कभी संभव हो पाया
तो... क्या ये सबसे बड़ा प्रमाण नहीं
कि... हम खुद एक कंप्यूटर प्रोग्राम में है?
.
हम इंसान भी और क्या है?
फंडामेंटल लेवल पर... आपका शरीर भी इलेक्ट्रिकल सिग्नल्स से बना हुआ एक जाल मात्र है... जो अपने आस पास मौजूद बाइनरी डिजिट्स को पढता है... उनसे इंटरैक्ट करता है... उन बाइनरी डिजिट्स को खाता पीता और जीता है
For Example... Water !!!
पानी... इसलिए पानी प्रतीत होता है क्योंकि... हमारा दिमाग एक निश्चित फ्रीक्वेंसी को पढ़ के उसे हमें पानी रूप में दर्शाता है
लेकिन... पानी और आपके पैर में पहने जूते में क्या अंतर है?
आपके अनुसार काफी अंतर हो सकता है
लेकिन फंडामेंटल लेवल पर...
आपके जूते और पानी में... सिर्फ इतना फर्क है
कि... आपके जूते को बनाने वाली एनर्जी स्ट्रिंग्स की वाइब्रेशन फ्रीक्वेंसी अर्थात बाइनरी डिजिट संख्या... पानी से भिन्न है
अर्थात... दुनिया की हर चीज में मूलभूत अंतर सिर्फ इतना है कि... हर चीज में प्रति सेकंड वाइब्रेशन की संख्या अलग अलग होती है
जिन वाइब्रेशन को पढ़ के... आपका वाइब्रेशन रीडर ब्रेन... आपको अलग अलग चीजो का एहसास कराता है
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Everything Around Us Are Vibrating Strings...
Life Is So Digital !!!
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क्या पता... पूर्व में किसी एडवांस एलियन सभ्यता ने... हमारे लिए इस ब्रह्मांड रुपी वीडियो गेम को डिज़ाइन किया हो
और क्या गारंटी है कि..
जिस सभ्यता ने ये किया हो...
वो खुद किसी वीडियो गेम का हिस्सा नहीं हो???
स्वप्न के भीतर... स्वप्न... की अनंत परते हो सकती है
अंतिम परत... परम सत्य तक पहुचना शायद संभव नहीं है
(और शायद संभव हो भी सकता है)
wink emoticon
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खैर... इस ब्रह्मांड के प्रोग्राम होने पे अधिकतर वैज्ञानिक सहमत हो सकते है
लेकिन... एक चीज है जो संभव नहीं दिखती
कि.. किसी भी एडवांस एलियन सिविलाइज़ेशन के पास इतनी कंप्यूटिंग पॉवर नहीं हो सकती
कि.. 8 अरब मानवो और 94 अरब प्रकाश वर्ष लंबे इस ब्रह्माण्ड को प्रोग्राम किया जा सके
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ओके...
किसने कहा कि ये ब्रह्माण्ड... 94 अरब प्रकाश वर्ष लंबा है?
हो सकता है कि... इस आकाशगंगा के बाहर दिखाई देने वाला ब्रह्माण्ड फेक हो !!!
Just An Illusion !!!
हो सकता है कि... रात के आसमान में झिलमिलाते ये असंख्य तारे किसी फ़िल्म का प्रोजेक्शन मात्र हो !!!
और...किसने कहा कि दुनिया की पापुलेशन 8 अरब है
May Be... All Of Them Are Not Real !!!
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आप सभी ने एक बेहतरीन वीडियो गेम "VICE CITY" अवश्य खेला होगा... जिसमे एक शहर की सड़को पर भटक रहे नायक का लक्ष्य अपनी मंजिल तक पहुचना होता है
अपने इस सफ़र में नायक.. सड़को पर आ जा रहे दर्जनो Fake लोगो को देखता था
पर नायक से इंटरेक्शन की सूरत में वे लोग... रियल हो जाते थे
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अब मैं जो कहने जा रहा हूँ उसे कुर्सी पकड़ के पढ़िए
अपना मोबाइल सामने मेज पे रख दीजिये
और... एक मिनट के लिए आँखे बन्द कर लिजिये
एक मिनट के बाद आँखे खोलिए
Done?
तो साहेबान... जब आपकी आँखे बन्द थी... तो आपका फोन कहाँ था?
क्या कहा? सामने मेज पर?
नहीं... आपका फोन मेज पे नहीं था
बल्कि... ऊर्जा बन कर अदृश्य हो गया था
जैसे ही आपने आँखे खोली...
वैसे... ही आपकी चेतना का संपर्क मोबाइल के अणुओ से होते ही...
मोबाइल स्थूल रूप प्रकट हो गया !!
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I Know... आप सोच रहे है कि मेरे दिमाग का कोई सर्किट हिल गया है
लेकिन... Unfortunately... आप गलत है !!!
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ब्रह्मांड में मौजूद सभी कण क्वांटम-ली वेव रूप में...
सुपर पोजीशन स्टेट में मौजूद रहते है... पदार्थ रूप में तभी प्रकट होते है
जब... कोई इन्हें... देख रहा हो या किसी भी बॉडी सेन्सस द्वारा इन कणो से कनेक्टेड हो!!!
ये बात... प्रयोगशाला में हजारो बार प्रमाणित है !!!
"Observer Effect"
पर वेव फंक्शन collapse हो के पदार्थ के रूप में प्रकटीकरण इतने सूक्ष्म समय में होता है... कि ये हमारी मानवीय इन्द्रियों के परे है !!!
(इस विषय पे अलग पोस्ट जल्द)
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तो साहेबान... हो सकता है कि...
किसी स्मार्ट एलियन सभ्यता ने आपको भ्रम में रखने के लिए फेक लोगो का भी निर्माण किया हो
Lets Say...999 Fake For Every Real Person !!!
सड़को पर आते जाते जिन हजारो लोगो को आप देखते है
शायद....वे सभी वास्तविक ना हो
पर
जैसे ही आप किसी से इंटरेक्शन करते हैं
वैसे ही वो इंसान एक्टिवेट हो जाता है
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"एक जिंदगी की कहानी के साथ"
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So Funny Enough
कल सुबह जब आप ऑफिस जाने के लिए सड़क पार कर रहे हो
तो.... सड़क पर गुजरती भीड़ को देख... एक सवाल खुद से पूछियेगा
कि...
WHO ARE YOU???
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क्या आप वो एक इंसान है... जिसके लिए सड़क पर मौजूद 999 लोगो को बनाया गया है
Or May Be...
You Are A Part Of Those 999
Who Think.......They Are Real
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........!!!!! BUT !!!!!...........
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Don't Forget To Share!!
And As Always
Thanks For Reading !!!!

क्या कुछ असम्भव है ?Is there anything in the nature which is IMPOSSIBLE ?

मेरा जवाब है - "नहीं......और हाँ"
क्या हुआ .....? कन्फ्युज्ड !!!
OK I'll clear it
आज मैं आपको एक रहस्य बताता हुँ "यह संसार मात्र आपके लिए है, यहाँ केवल वही होगा जो आप चाहेंगे मतलब कोई सीमा नहीं..... कुछ भी असम्भव नहीं"
जी हाँ यही शाश्वत सत्य है वह हर किताब, हर पुर्वाग्रह, हर प्रवचन भूल जाईए जो यह कहता हो कि यह सम्भव नहीं है|
मैं यह कहता हुँ कि यहाँ सब-कुछ सिर्फ आपके आत्मिक विकास के लिए है | जो आप चाहेंगे बस वही होगा, आप जो कुछ भी चाहे पर सबसे महत्वपुर्ण ..... ""आपको चाहना होगा"" |
हर जीव ऊर्जा के विशाल चेतन पुँज (ईश्वर) का ही अंश है और उसमें वो सब शक्तियाँ निहित है जो ईश्वर में है | अगर जीवन के किसी भी क्षण में जीवात्मा परमात्मा से सम्बन्ध को स्वीकार कर सम्बन्ध स्थापित करती है तब वह परम शक्तिशाली स्वरूप में होती है | ऐसी स्थिति में जो उस जीवात्मा नें चाहा है तो सिर्फ और सिर्फ वही घटित होगा, निर्विवाद अटल सत्य के रूप में |
असम्भव/सीमाओं के अस्तित्व पर मेरी कई मित्रो से चर्चा होती रही है इस पर आपत्तियाँ भी आती रही है जिनमें सें अधिकतर कोई ऊटपटांग सा काम बताकर कहते है - "...तो फिर यह करके दिखाओ?"
हर बार मेरा समान जवाब होता है कि "यह सम्भव है बस तरीका मालुम करना जरूरी है कि यह किस तरह होगा" |
Everything is possible if You know the way to get it.
दुसरा एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण है जो भाई विजय सिंह ठकुराय ने द्रव्यमान की शुन्यता को आधार बना दर्ज कराया है "कोई चीज प्रकाश के वेग से तभी चल सकती है जब उसका द्रव्यमान शुन्य हो"|
वो प्रकाश के वेग को अन्तिम अधिकतम वेग कहते हुये एक सीमा बनाते है | इस पर भी मैने कहा था कि प्रकाश का वेग ही अधिकतम वेग नहीं है, यह वह अधिकतम वेग है जो हम अब तक जान पायें है इससे अधिक, और अधिक और भी बहुत अधिक सम्भव है बस हम जानते नहीं है|
अब एक तथ्य सुनीये जो आपके होश उड़ा देगा| हाल ही नाभिक में टेकियोन नामक ऐसे कणो की खोज की है जिनका वेग द्रव्यमान/ तरंग यान्त्रिकी सम्बन्धी समस्त अवधारणाओ को तोड़ते हुये प्रकाश के वेग से भी ज्यादा है |
इसलिए कोई स्थापित सीमा तात्कालिक अन्तिम सीमा तो हो सकती है पर शाश्वत नहीं | यह सृष्टि आपके लिए है और यहाँ कुछ भी असम्भव नहीं है |
अब आप सोच रहे होंगे कि फिर मैने हाँ क्यों कहा था ? तो सुनीये ..... कोई भी कार्य करने के लिए ऊर्जा की जरूरत होती है यानि जितना बड़ा कार्य उतनी ज्यादा ऊर्जा की जरूरत होगी| मेरी पुरानी पोस्ट्स से यह तो जान ही चुके होंगे कि यह सम्पूर्ण प्रकृति मात्र ऊर्जा ही है |
तो बन्धुवर बस ऐसा कोई कार्य ही असम्भव होगा जिसे करने के लिए इस प्रकृति की समस्त ऊर्जा से भी अधिक ऊर्जा की आवश्यकता होगी| अगर आप वो करने जा रहे है तो बात अलग है वरना इस सृष्टि में में किसी के लिए कुछ भी असम्भव नहीं |