एक गाँव मे एक ऊंट रहा
करता था। वह प्रतिदिन पास ही के एक हरे-भरे जंगल मे चरने जाता था। ऊंट बड़ा
सीधा-साधा था।
करता था। वह प्रतिदिन पास ही के एक हरे-भरे जंगल मे चरने जाता था। ऊंट बड़ा
सीधा-साधा था।
एक सियार उसका मित्र था।
सियार बड़ा चालाक था। वह ऊंट की सवारी भी करता था और वक्त-बेवक्त उसके लिए संकट भी
पैदा करता था। ऊंट को चूँकि आज तक कोई बड़ा नुकसान बही हुआ था,
इसलिए वह भी उसके उल्टी-सीधी हरकतों पे ज्यादा ध्यान नहीं देता था।
सियार बड़ा चालाक था। वह ऊंट की सवारी भी करता था और वक्त-बेवक्त उसके लिए संकट भी
पैदा करता था। ऊंट को चूँकि आज तक कोई बड़ा नुकसान बही हुआ था,
इसलिए वह भी उसके उल्टी-सीधी हरकतों पे ज्यादा ध्यान नहीं देता था।
एक दिन सियार ने उस से
कहा- “ऊंट भाई! पास ही में एक बड़ा खेत है, जिसमे मोटी-मोटी ककड़िया लगी हुई हैं। चलो खाने
चलें, इधर मे भी सड़ा-गला स्वादधीन भोजन कर के उकता चुका हूँ। इसी बहाने
खान-पान में बदलाव हो जाएगा।“
कहा- “ऊंट भाई! पास ही में एक बड़ा खेत है, जिसमे मोटी-मोटी ककड़िया लगी हुई हैं। चलो खाने
चलें, इधर मे भी सड़ा-गला स्वादधीन भोजन कर के उकता चुका हूँ। इसी बहाने
खान-पान में बदलाव हो जाएगा।“
सियार ने कुछ इस ढंग से
ककड़ियो की तारीफ की कि ऊंट ककड़ियाँ खाने को बैचेन हो उठा और उसके साथ चल दिया।
ककड़ियो की तारीफ की कि ऊंट ककड़ियाँ खाने को बैचेन हो उठा और उसके साथ चल दिया।
ककड़ियों के बारे मे
सोच-विचार कर रास्ते भर ऊंट के मुह में पानी आता रहा।
सोच-विचार कर रास्ते भर ऊंट के मुह में पानी आता रहा।
खेत पार पहुँच कर सियार ने ककड़ियाँ खाना सुरू कर दीं। छोटा जीव होने के कारण उसका पेट जल्दी भर गया, किन्तु ऊंट को पेट भरने में अधिक समय लग रहा था।
इधर, पेटभर खाना खाने के बाद सियार अपने आदत के अनुसार ‘हुंवा-हूंवा’ की आवाज़ कर के चिलाने लगा।
ऊंट ने उसे माना किया, मगर वह बोला- “क्या करू ऊंट भाई! कुछ खा कर जब तक मैं हुवास न कर लू मुझे चैन नहीं मिलता। मैं अपनी आदत से मजबूर हूँ। “कह कर वह फिर से ‘हुआ-हुआ’ करने लगा।
उसकी आवाज़ सुन कर खेत का मालिक कुछ ही देर मे लाठी लेकर वहाँ आ पहुंचा। सियार ने उसे देख लिया। छोटा होने के कारण वह झड़ियों के बीच होता हुआ फुर्ती से भाग निकला, किन्तु बचते-बचते भी ऊंट बेचारा उसकी पकड़ मे आ गया।
किसान ने उसके चार-पाँच लट्ठ जमा दिये। इस घटना से ऊंट सियार से नाराज हो गया और सियार से बात करना तथा मिलना-जुलना छोड़ दिया।
कुछ दिन सियार भी उससे मिलने नहीं आया, किन्तु उसे किसान के हनथो लट्ठ खाते देख बहुत मज़ा आया था। सियार के लिए बस इतना ही काफी नहीं था, वह फिर किसी अवसर की प्रतीक्षा करने लगा की कोई अवसर और मिले जिससे ऊंट के पिटाई का मज़ा फिर से लिया जाए।
एक दिन वह ऊंट से मिला और बड़ी विनम्रता से बोला- “ऊंट भाई, उस दिन की घटना के लिए मैं क्षमा मांगता हूँ, वो क्या है की मुझे कुछ खाने के बाद हुवास की आदत है, किन्तु अब तुम नाराजगी छोड़ो, उस दिन की नाराजगी को भूल जाओ और मेरे साथ स्वादिस्त ककड़ियों का आनंद लेने चलो। मैं वादा करता हूँ की अब नहीं चीलउगा। तुम चलो मेरे साथ और भरपेट खाने का लुफ्ट उठाओ। इस बार हम उस पुराने खेत में नहीं चलेंगे। उधर नदी के पार मैंने और एक खेत देखा है, वहाँ चलेंगे।”
ऊंट बड़ा भोला था। वह सियार के चिकनी-चुपड़ी बातों मे फिर से आ गया और उसके साथ नदी पर कर के उस खेत मे चला गया। सियार ने जल्दी-जल्दी अपना पेट भरा और फिर वही अपनी पुरानी हरकत पे उतर आया यानि लगा ‘हूंवा-हूंवा’ करने। वहाँ भी किसान आ पहुंचा। उसे आता देख सियार तो निकाल भागा, मगर ऊंट बेचारा फंस गया। वहाँ भी उसकी जाम कर धुनाई हुई। ऊंट बेचारा बुरी तरह जख्मी हो गया और उसने फैसला किया की वो दुस्ट सियार को उसके करनी का दंड जरूर देगा। यह उसके स्वभाव के वीरुध जरूर था, लेकिन सियार को सबक सीखना भी जरूरी था।
जब वे लोटते समय नदी पार करने लगे तो सियार भी उसके पीठ पर सवार था। अचानक ऊंट को एक युक्ति सूझी और वो पानी मे लेटने लगा।
“अरे…अरे ऊंट भाई क्या करते हो। मैं डूब जाऊंगा।” सियार घबरा कर बोला।
“तू डूब या तैर, लेकिन मुझे तो पीटने के बाद पानी दिखते ही लुटास आती है। इसलिए मुझे तो लेते बिना चैन नहीं मिलेगा।” कहकर ऊंट पानी में लैट गया और दुष्ट सियार तेज़ धार मे बह गया। उसे अपने करनी की सज़ा मिल गया था।
इस कहानी से हमे यही सीख मिलती है की जैसा करोगे वैसा भरोगे भी…..दोस्तो अगर आपको ये कहानी पसंद आई हो तो इसे Share जरूर करे।
कुछ दिन सियार भी उससे मिलने नहीं आया, किन्तु उसे किसान के हनथो लट्ठ खाते देख बहुत मज़ा आया था। सियार के लिए बस इतना ही काफी नहीं था, वह फिर किसी अवसर की प्रतीक्षा करने लगा की कोई अवसर और मिले जिससे ऊंट के पिटाई का मज़ा फिर से लिया जाए।
एक दिन वह ऊंट से मिला और बड़ी विनम्रता से बोला- “ऊंट भाई, उस दिन की घटना के लिए मैं क्षमा मांगता हूँ, वो क्या है की मुझे कुछ खाने के बाद हुवास की आदत है, किन्तु अब तुम नाराजगी छोड़ो, उस दिन की नाराजगी को भूल जाओ और मेरे साथ स्वादिस्त ककड़ियों का आनंद लेने चलो। मैं वादा करता हूँ की अब नहीं चीलउगा। तुम चलो मेरे साथ और भरपेट खाने का लुफ्ट उठाओ। इस बार हम उस पुराने खेत में नहीं चलेंगे। उधर नदी के पार मैंने और एक खेत देखा है, वहाँ चलेंगे।”
ऊंट बड़ा भोला था। वह सियार के चिकनी-चुपड़ी बातों मे फिर से आ गया और उसके साथ नदी पर कर के उस खेत मे चला गया। सियार ने जल्दी-जल्दी अपना पेट भरा और फिर वही अपनी पुरानी हरकत पे उतर आया यानि लगा ‘हूंवा-हूंवा’ करने। वहाँ भी किसान आ पहुंचा। उसे आता देख सियार तो निकाल भागा, मगर ऊंट बेचारा फंस गया। वहाँ भी उसकी जाम कर धुनाई हुई। ऊंट बेचारा बुरी तरह जख्मी हो गया और उसने फैसला किया की वो दुस्ट सियार को उसके करनी का दंड जरूर देगा। यह उसके स्वभाव के वीरुध जरूर था, लेकिन सियार को सबक सीखना भी जरूरी था।
जब वे लोटते समय नदी पार करने लगे तो सियार भी उसके पीठ पर सवार था। अचानक ऊंट को एक युक्ति सूझी और वो पानी मे लेटने लगा।
“अरे…अरे ऊंट भाई क्या करते हो। मैं डूब जाऊंगा।” सियार घबरा कर बोला।
“तू डूब या तैर, लेकिन मुझे तो पीटने के बाद पानी दिखते ही लुटास आती है। इसलिए मुझे तो लेते बिना चैन नहीं मिलेगा।” कहकर ऊंट पानी में लैट गया और दुष्ट सियार तेज़ धार मे बह गया। उसे अपने करनी की सज़ा मिल गया था।
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