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शायद आज आपको इतिहास के एक ऐसे तथ्य का पता चले जो या तो छुपा हुआ है या कहे तो छुपा के रखा जाता है
"उर्दू"
.
नफासत की जुबान
पाकिस्तान की राज भाषा
भारतीय उपमहादीप के मुसलमानो की पहचान
उर्दू...
उर्दू में
50% शब्द हिंदी से है
25% अरबी से
10% फ़ारसी से
10% अंग्रेजी से
5% शब्द तुर्क मंगोल से लिए गए है
.
ऊपर दिए उदाहरण से आप समझ सकते है की उर्दू में हर वाक्य में वाक्य रचना हिंदी के समान ही होती है पर
"verb" या "noun" का फर्क होता है
.
उर्दू की ना कोई व्याकरण है
और ना कोई शब्द कोष
.
तो हमने सोचा की
ये "भेल पूरी भाषा" आखिर दुनिया में लेके कौन आया
जासूसी बुद्धि करवटे लेने लगी
और
हमने "wiki" आंटी के दरबार का घंटा बजा दिया
हीहीही
और वहां से जो पता चला उसे पढ़ के दिमाग और होउच पाउच हो गया है
हीहीही
.
उर्दू शब्द का अर्थ है "सैनिक छावनी" और उर्दू शब्द मंगोल भाषा के शब्द "ओरडू" का अपभ्रंश है यानि उर्दू शब्द तुर्क मंगोल की भाषा की उपज है
.
है ना अजीब?
मुसलमानों की भाषा का सम्बन्ध तो अरब या फारस से होना चाहिए
ये "चाईनीज कनेक्शन" कहा से आया?
.
चलिए हम बताते हैं..
और इस घालमेल को समझने के लिए आपको इतिहास को ठीक से समझना होगा
.
"चंगेज खान"
.
इतिहास का सबसे खूंखार, दुर्दांत आक्रमणकारी
कहते है की चंगेज खान की फेलाई तबाही के निशान पृथ्वी के 25% हिस्से तक फैले थे
बड़े पैमाने पे नरसंहार चंगेज खान ने किया और इतिहासकारो के मत अनुसार कई करोड़ लोगो का फातिहा पढने का श्रेय चंगेज भाई साब को जाता है
पर
हम लोग अक्सर एक गलती कर देते है की चंगेज खान को मुस्लिम समझ लेते है
वास्तव में
चंगेज तुर्क मंगोल क्षेत्र का था और इस्लाम का दुश्मन था
अरब क्षेत्रो पे हमले कर इसने वो मार काट मचाई की आज भी इन्हें मुस्लिम इतिहास में "खुनी,दरिंदा, शैतान" के तमगो से नवाजा गया है
.
अब बात करो "तैमूर लंग" की
तैमूर भी एक खूंखार आतंकवादी था और भारत पे हमला कर इसने कई बार विनाश लीला फेलाई
इसी तैमूर के पोते "बाबर" ने भारत में मुग़ल वंश का स्थापना कर इस्लाम का झंडा बुलंद किया
.
अब तुर्रा ये है की
तैमूर और बाबर दोनों खुद को चंगेज खान का वंशज बताते थे
.
बात कुछ "समधन" में आई?
.
"इस्लाम के दुश्मन के वंशज इस्लाम का झंडा बुलंद कर रहे थे"
.
ऐसा कैसे?
वो इसलिए की चंगेज के बाद अरब कबीलो के लगातार हमलो के फलस्वरूप मंगोलों ने अरबो के सामने घुटने टेक दिए थे
तैमूर ने अपनी जीवनी में स्वीकार किया है की उसके पिता ने इस्लाम कबूल किया था
.
यानि भारत में इस्लाम का झंडा बुलंद करने वाले मंगोल या मुग़ल स्वयं अरब की खूनी संस्कृति के गुलाम बन चुके थे
.
इन तुर्क मंगोलों की भाषा में सैनिक छावनी को "ओरडू" कहा जाता था जहा वे हिन्द की अवाम को कैद कर यातनाये देते थे, औरतो के बलात्कार किये जाते थे, अमानवीयता की हद पार की जाती थी.... ताकि..... वे इस्लाम कबूल कर सके
.
और इन "सैनिक छावनियों" में उन्हें इस्लाम की अधिकृत भाषा अरबी बोलने पे मजबूर किया जाता था
.
अब एक दिन में कोई अरबी कैसे सीख जाए?
तो जान बचाने के लिए उन हिंदी भाषियों ने अपनी मातृ भाषा में अरबी शब्दों को फिट करना शुरू कर दिया और धीरे धीरे फ़ारसी और अन्य शब्द भी उस भाषा में जगह पाने लगे
और इस प्रकार तलवार की धार पे उस बोली का जन्म हुआ
जो ना हिंदी थी
ना अरबी
वाक्य निर्माण हिंदी का था पर शब्द अरबी फ़ारसी और मंगोली
और सैनिक यातना गृह यानी की "ओरडू" से निकली इस खिचड़ी भाषा को नाम मिला "ओरडू"
यानी की
"उर्दू"
.
मुग़ल और तुर्क इस भेल पूरी भाषा को गुलामो की भाषा मानते थे इसलिए कभी उन्होंने इस भाषा को सम्मान नहीं दिया और इसी कारण मुग़ल दरबार की राज भाषा फ़ारसी थी
.
अब प्रश्न ये उठता है की भारत और पाकिस्तान में जो आज उर्दू को अपनी भाषा बताते हैं
वे वास्तव में हैं कौन?
कौन थे उनके पूर्वज?
.
हीहीही
इसका जवाब हम आपकी कल्पनाशीलता पे छोड़ते हैं
उर्दू बोलने वालो
स्वयं विचार करो
शायद आज आपको इतिहास के एक ऐसे तथ्य का पता चले जो या तो छुपा हुआ है या कहे तो छुपा के रखा जाता है
"उर्दू"
.
नफासत की जुबान
पाकिस्तान की राज भाषा
भारतीय उपमहादीप के मुसलमानो की पहचान
उर्दू...
उर्दू में
50% शब्द हिंदी से है
25% अरबी से
10% फ़ारसी से
10% अंग्रेजी से
5% शब्द तुर्क मंगोल से लिए गए है
.
ऊपर दिए उदाहरण से आप समझ सकते है की उर्दू में हर वाक्य में वाक्य रचना हिंदी के समान ही होती है पर
"verb" या "noun" का फर्क होता है
.
उर्दू की ना कोई व्याकरण है
और ना कोई शब्द कोष
.
तो हमने सोचा की
ये "भेल पूरी भाषा" आखिर दुनिया में लेके कौन आया
जासूसी बुद्धि करवटे लेने लगी
और
हमने "wiki" आंटी के दरबार का घंटा बजा दिया
हीहीही
और वहां से जो पता चला उसे पढ़ के दिमाग और होउच पाउच हो गया है
हीहीही
.
उर्दू शब्द का अर्थ है "सैनिक छावनी" और उर्दू शब्द मंगोल भाषा के शब्द "ओरडू" का अपभ्रंश है यानि उर्दू शब्द तुर्क मंगोल की भाषा की उपज है
.
है ना अजीब?
मुसलमानों की भाषा का सम्बन्ध तो अरब या फारस से होना चाहिए
ये "चाईनीज कनेक्शन" कहा से आया?
.
चलिए हम बताते हैं..
और इस घालमेल को समझने के लिए आपको इतिहास को ठीक से समझना होगा
.
"चंगेज खान"
.
इतिहास का सबसे खूंखार, दुर्दांत आक्रमणकारी
कहते है की चंगेज खान की फेलाई तबाही के निशान पृथ्वी के 25% हिस्से तक फैले थे
बड़े पैमाने पे नरसंहार चंगेज खान ने किया और इतिहासकारो के मत अनुसार कई करोड़ लोगो का फातिहा पढने का श्रेय चंगेज भाई साब को जाता है
पर
हम लोग अक्सर एक गलती कर देते है की चंगेज खान को मुस्लिम समझ लेते है
वास्तव में
चंगेज तुर्क मंगोल क्षेत्र का था और इस्लाम का दुश्मन था
अरब क्षेत्रो पे हमले कर इसने वो मार काट मचाई की आज भी इन्हें मुस्लिम इतिहास में "खुनी,दरिंदा, शैतान" के तमगो से नवाजा गया है
.
अब बात करो "तैमूर लंग" की
तैमूर भी एक खूंखार आतंकवादी था और भारत पे हमला कर इसने कई बार विनाश लीला फेलाई
इसी तैमूर के पोते "बाबर" ने भारत में मुग़ल वंश का स्थापना कर इस्लाम का झंडा बुलंद किया
.
अब तुर्रा ये है की
तैमूर और बाबर दोनों खुद को चंगेज खान का वंशज बताते थे
.
बात कुछ "समधन" में आई?
.
"इस्लाम के दुश्मन के वंशज इस्लाम का झंडा बुलंद कर रहे थे"
.
ऐसा कैसे?
वो इसलिए की चंगेज के बाद अरब कबीलो के लगातार हमलो के फलस्वरूप मंगोलों ने अरबो के सामने घुटने टेक दिए थे
तैमूर ने अपनी जीवनी में स्वीकार किया है की उसके पिता ने इस्लाम कबूल किया था
.
यानि भारत में इस्लाम का झंडा बुलंद करने वाले मंगोल या मुग़ल स्वयं अरब की खूनी संस्कृति के गुलाम बन चुके थे
.
इन तुर्क मंगोलों की भाषा में सैनिक छावनी को "ओरडू" कहा जाता था जहा वे हिन्द की अवाम को कैद कर यातनाये देते थे, औरतो के बलात्कार किये जाते थे, अमानवीयता की हद पार की जाती थी.... ताकि..... वे इस्लाम कबूल कर सके
.
और इन "सैनिक छावनियों" में उन्हें इस्लाम की अधिकृत भाषा अरबी बोलने पे मजबूर किया जाता था
.
अब एक दिन में कोई अरबी कैसे सीख जाए?
तो जान बचाने के लिए उन हिंदी भाषियों ने अपनी मातृ भाषा में अरबी शब्दों को फिट करना शुरू कर दिया और धीरे धीरे फ़ारसी और अन्य शब्द भी उस भाषा में जगह पाने लगे
और इस प्रकार तलवार की धार पे उस बोली का जन्म हुआ
जो ना हिंदी थी
ना अरबी
वाक्य निर्माण हिंदी का था पर शब्द अरबी फ़ारसी और मंगोली
और सैनिक यातना गृह यानी की "ओरडू" से निकली इस खिचड़ी भाषा को नाम मिला "ओरडू"
यानी की
"उर्दू"
.
मुग़ल और तुर्क इस भेल पूरी भाषा को गुलामो की भाषा मानते थे इसलिए कभी उन्होंने इस भाषा को सम्मान नहीं दिया और इसी कारण मुग़ल दरबार की राज भाषा फ़ारसी थी
.
अब प्रश्न ये उठता है की भारत और पाकिस्तान में जो आज उर्दू को अपनी भाषा बताते हैं
वे वास्तव में हैं कौन?
कौन थे उनके पूर्वज?
.
हीहीही
इसका जवाब हम आपकी कल्पनाशीलता पे छोड़ते हैं
उर्दू बोलने वालो
स्वयं विचार करो
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