सुप्त का अर्थ होता है सोया हुआ अर्थात वज्रासन की स्थिति में सोया हुआ। इस आसन में पीठ के बल लेटना पड़ता है इसलिए इस आसन को सुप्तवज्रासन कहते हैं।
सावधानी : जिनको पेट में वायु विकार, कमर दर्द की शिकायत हो उन्हें यह आसन नहीं करना चाहिए। इसे खाना खाने के तुरंत बाद न करें।
नितंब मिलने के बाद ही जमीन पर लेटें। लेटते समय जितनी आसानी से जा सकते है, उतना ही जाए। प्रारंभ में घुटने मिलाकर रखने में कठिनाई हो तो अलग-अलग रख सकते हैं, धीरे अभ्यास करने पर पैर को मिलाने का प्रयास करें। जमीन पर लेटते समय घुटने ऊपर नहीं उठने चाहिए, पूर्ण रूप से जमीन पर रखें।
लाभ : यह आसन घुटने, वक्षस्थल और मेरुदंड के लिए लाभदायक है। उक्त आसन से उदर में खिंचाव होता है जिस कारण उदर संबंधी नाड़ियों में रक्त प्रावाहित होकर उन्हें सशक्त बनाता है। इससे उदर संबंधी सभी तरह के रोगों में लाभ मिलता है।
विधि : दोनों पैरों को सामने फैलाकर बैठ जाते है, दोनों पैर मिले हुए, हाथ बगल में, कमर सीधी और दृष्टि सामने। अब वज्रासन की स्थिति में बैठ जाते हैं वज्रासन में बैठने के बाद दोनों पैरों में पीछे इतना अंतर रखते हैं कि नितंब जमीन से लग जाए तब धीरे-धीरे दोनों कुहनियों का सहारा लेकर जमीन पर लेट जाते हैं।
दाएं हाथ को पीछे ले जाते है और बाएं कंधे के नीचे रखते हैं और बाएं हाथ को पीछे ले जाकर दाएं कंधे के नीचे रखते है। इस अवस्था में दोनों हाथों की कैंची जैसी स्थिति बन जाती है उसके बाद इसके बीच में सिर को रखते हैं।
वापस पहले वाली अवस्था में आने के लिए हाथों को जंघाओं के बगल में रखते हैं और दोनों कुहनियों की सहायता से उठकर बैठ जाते हैं।
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