ओम (ॐ) क्या है : 'ॐ' को अनहद नाद कहते हैं, जो प्रत्येक व्यक्ति के भीतर और इस ब्रह्मांड में सतत गूंजता रहता है। इसके गूंजते रहने का कोई कारण नहीं। सामान्यत: नियम है कि ध्वनि उत्पन्न होती है किसी की टकराहट से, लेकिन अनाहत को उत्पन्न नहीं किया जा सकता।
ओम प्रत्येक धर्म में है। मध्य एशिया में जाकर ओम ओमीन और आमीन हो गया। ओम 3 अक्षरों से मिलकर बना है- अ, उ और म। ये मूल ध्वनियां हैं, जो हमारे चारों तरफ हर समय उच्चारित होती रहती हैं। आप नदी किनारे, समुद्र किनारे या किसी बंद कमरे में बैठकर इसे गौर से सुनने का प्रयास करें।
ध्यान दें, गौर करें कि बाहर जो ढेर सारी आवाजें हैं उनमें एक आवाज ऐसी है, जो सतत जारी रहती है- जैसे प्लेन की आवाज जैसी आवाज, फेन की आवाज जैसी आवाज या जैसे कोई कर रहा है 'ॐ' का उच्चारण अर्थात सन्नाटे की आवाज। इसी तरह शरीर के भीतर भी आवाज जारी है। ध्यान दें। आंखें बंद कर यह आवाज सुनें। सुनने का अभ्यास गहरा होगा तो आपको पता चलेगा कि यह आवाज आपके भीतर भी है।
लाभ : अ, उ और म- यह नाभि, हृदय और आज्ञा चक्र को जगाता है। ओम के निरंतर जाप से तनाव से पूरी तरह मुक्ति मिलती है। ओम के जाप से दिमाग शांत होता है और बहुत-सी शारीरिक तकलीफें दूर होती हैं। इससे आंतरिक और बाह्य विकारों का निदान होता है और नियमित जाप से व्यक्ति के प्रभामंडल में वृद्धि होती है। यह रिसर्च द्वारा सिद्ध हो चुका है।
सूर्य की शक्ति को नमस्कार : मानव सहित सभी प्राणी, जीव और जंतु धरती के अंश हैं। धरती पर जीवन है पंच तत्वों के कारण। पंच तत्व हैं- आकाश, अग्नि, वायु, जल और धरती। ये पांचों तत्व व्यक्ति के भीतर भी हैं और बाहर भी। सूर्य को अग्नि तत्व माना गया है। वेदों में इसे जगत की आत्मा कहा गया है। सूर्य न हो तो धरती पर सभी प्रकार का जीवन नष्ट हो जाएगा। कई ऐसे पुरुष हुए हैं जिन्होंने सूर्य साधना के बल पर खुद को अजर-अमर कर लिया है और कई ऐसे हैं, जो कई वर्षों से अन्न और जल के बगैर भी जी रहे हैं। 'सूर्य सिद्धांत मणि' जैसे कई ग्रंथ हैं, जो सूर्य की रोशनी के महत्व का वर्णन करते हैं। आजकल सौर ऊर्जा से बिजली और अन्य उपकरण चलने लगे हैं। भविष्य में इसके महत्व को और समझा जाएगा।
'सूर्य नमस्कार' क्या है? अब बात करते हैं 'सूर्य नमस्कार' की। सूर्य को नमस्कार करने का अर्थ उसके प्रति कृतज्ञता प्रकट करना है। यह हमारा नैतिक कर्तव्य है, क्योंकि उसी के कारण हम जिंदा हैं। यदि आप उसके प्रति श्रद्धा के भाव से नहीं भरे हैं तो आपसे किसी अन्य के प्रति प्रेम या संवेदनशीलता की अपेक्षा नहीं की जा सकती। हालांकि 'सूर्य नमस्कार' योग करते वक्त किसी भी प्रकार से सूर्य का ध्यान, पूजा, प्रार्थना या नमस्कार करने की बाध्यता नहीं।
'सूर्य नमस्कार' का नाम और कुछ भी हो सकता था, जैसे कि सर्वांग योगासन या षाष्टांग योग। दरअसल, 'सूर्य नमस्कार' में योग के सभी प्रमुख आसनों का समावेश हो जाता है। यह सभी आसनों का एक पैकेज है। व्यक्ति यदि सभी आसन न करते हुए मात्र 'सूर्य नमस्कार' ही करता रहे तो वह संपूर्ण आसनों का लाभ प्राप्त कर सकता है, क्योंकि 'सूर्य नमस्कार' करते वक्त ताड़ासन, अर्धचक्रासन, पादहस्तासन, आंजनेय आसन, प्रसरणासन, द्विपाद प्रसरणासन, भू-धरासन, अष्टांग, प्रविधातासन तथा भुजंगासन आदि सभी आसनों का समावेश हो जाता है।
'सूर्य नमस्कार' के लाभ : 'सूर्य नमस्कार' अत्यधिक लाभकारी है। इसके अभ्यास से हाथों और पैरों का दर्द दूर होकर उनमें सबलता आती है। गर्दन, फेफड़े तथा पसलियों की मांसपेशियां सशक्त हो जाती हैं, शरीर की फालतू चर्बी कम होकर शरीर हल्का-फुल्का हो जाता है।
सूर्य नमस्कार द्वारा त्वचा रोग समाप्त हो जाते हैं अथवा इनके होने की आशंका समाप्त हो जाती है। इस अभ्यास से कब्ज आदि उदर रोग समाप्त हो जाते हैं और पाचन तंत्र की क्रियाशीलता में वृद्धि हो जाती है। इस अभ्यास द्वारा हमारे शरीर की छोटी-बड़ी सभी नस-नाड़ियां क्रियाशील हो जाती हैं इसलिए आलस्य, अतिनिद्रा आदि विकार दूर हो जाते हैं।
इस योग से पेट की मांसपेशियां मजबूत हो जाती हैं। उससे पाचन शक्ति बढ़ती है। शरीर के ज्यादा वजन को घटाने में मददगार है। शरीर में खून का प्रवाह तेज होने से ब्लड प्रेशर की बीमारी में आराम मिलता है। बालों को असमय सफेद होने, झड़ने व रूसी से बचाता है। व्यक्ति में धीरज रखने की क्षमता बढ़ती है। सहनशीलता बढ़ाने और क्रोध पर काबू रखने में मददगार है। शरीर में लचीलापन आता है जिससे पीठ और पैरों के दर्द की आशंका कम होती है।
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