Saturday 2 April 2016

MUST READ.......OUR AMAZING ATMOSPHERE

आज से लगभग 5 अरब वर्ष पूर्व
आपकी ये खुबसूरत "नीली-हरी-सफ़ेद पृथ्वी".... इतनी खुबसूरत नहीं थी
अपने शुरूआती दौर में पृथ्वी पर ये खुबसूरत पहाड़, पेड़ पौधे, समुंद्र वगेरह नहीं... सिर्फ एक चीज दिखती थी
"लावा"
जी हाँ... शुरुआत में पृथ्वी और कुछ नहीं.... गरम पिघली चट्टानों के लावा का समुद्र मात्र थी...
और पृथ्वी पर निरंतर ब्रह्माण्ड में घुम रहे उल्का पिंडो की बम वर्षा होती रहती थी
पृथ्वी का प्रथम वातावरण "ज्वालामुखियो" से आया...
ज्वालामुखी फटने की निरंतर घटनाओं में पृथ्वी के लावा की अंदरूनी सतहों से विराट मात्रा में भाप, अमोनिया, कार्बन डाई ऑक्साइड आदि निकल कर पृथ्वी के वातावरण में छा गई... उस दौर में हमारे ग्रह का वातावरण काफी कुछ "Venus" ग्रह की तरह होता था
.
समय बीतने के साथ सूर्य की किरणों से अमोनिया (नाइट्रोजन+हाइड्रोजन) के bond टूटते गए... हाइड्रोजन बहुत हलकी होने के कारण आउटर स्पेस में निकल गई... और इस प्रकार वातावरण की मुख्य गैस नाइट्रोजन (78%) का जन्म हुआ
शुरू में वातावरण में कार्बन डाई ऑक्साइड आज के मुकाबले सैकड़ो-हजारो गुना ज्यादा थी और जीवन दायिनी ऑक्सीजन मौजूद नहीं थी
और 2 अरब साल तक पृथ्वी के ठंडे होने के बाद....
लगभग 2.8 अरब साल पहले समुद्र में कुछ सूक्ष्म जीव "सायनो-बैक्टीरिया" विकसित हुए जो सूर्य और कार्बन डाई ऑक्साइड का इस्तेमाल कर ऑक्सीजन को "As A Waste Product" प्रोड्यूस करते थे
और इस प्रकार "प्रकाश संश्लेषण" अर्थात फोटो सिंथेसिस से ऑक्सीजन निर्माण की शुरुआत हुई...
और इस प्रक्रिया की शुरुआत का कारण पेड़ पौधे नहीं... बल्कि
एक जीवाणु.... सायनो बैक्टीरिया अर्थात "Cyano-Bacteria" था
.
धीरे धीरे अरबो वर्षो तक चली सतत प्रक्रिया के फल स्वरुप वातावरण में ऑक्सीजन उस लेवल पर पहुच गई की लगभग 60 करोड़ वर्ष पूर्व तक पृथ्वी के चारो तरफ "ओजोन लेयर" का निर्माण होता गया जो सूर्य के घातक विकिरण से हमारी रक्षा करती थी
और इस प्रकार ओजोन लेयर नामक रक्षात्मक परत बनने के बाद... समुद्री जीव जल से निकल के थल पर आए...
और हमारे वायुमंडल में करोडो वर्षो की सतत विकास प्रक्रिया के बाद... आज मानवो का अस्तित्व संभव हो पाया है

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मुख्यतः नाइट्रोजन (78%), ऑक्सीजन (21%), तथा ओर्गेन, कार्बन डाई ऑक्साइड, हाइड्रोजन, हीलियम, मीथेन आदि (1%) से बना हमारा ये वायुमंडल पृथ्वी के साथ.... पृथ्वी की ग्रेविटी के कारण जुडा हुआ है
और पृथ्वी के घूर्णन के साथ साथ घूमता है....
इस गैस के कुए में हम जीते है... खाते है
और... " सांस लेते है"
.
और आपकी सांस के बारे में एक रोमांचक बात ये है कि....
आपने अभी अभी जो सांस में वायु के जो अणु अपनी साँसों में लिए है...
वही अणु अपनी साँसों में आज से एक लाख वर्ष पूर्व किसी आदिमानव ने जंगल में भोजन की तलाश में शिकार पर जाते हुए लिए थे
नहीं समझे?
चलो समझाते है
.
उदाहरण के लिए बात करते है
"योगीराज श्री कृष्ण की"
(कृपया मैथमेटिकल कैलकुलेशन को धैर्य पूर्वक पढ़ें)
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सांस लेने पर हम एक मिनट में लगभग लगभग 12 बार साँस ले कर जुम्मा जुम्मा 6 लीटर गैस अपने फेफड़ो में खींचते है
(6 लीटर=.238 mole according to STP)
इस 6 लीटर हवा में लगभग
161 00 000 000 000 000 000 000 अणु (1.61*10^22) होते है
.
इस प्रकार अगर कृष्ण का जीवन लगभग 120 साल माना जाए तो...
उन्होंने 120 साल में 63072000 मिनट में ली गई लगभग 756864000 साँसो में all together 12185510400000000000000000000000 (1.21*10^32) अणु अपनी साँसों में खींचे होगे
.
अब हमारे वातावरण की बात करते है...
हमारे वातावरण में लगभग सभी गैस के आल together 11200000000000000000000000000000000000000000000 (1.12*10^44) अणु पाए जाते है...
अब अगर हम वातावरण के टोटल अणुओ को श्री कृष्ण के द्वारा इस्तेमाल किये गए अणुओ से भाग दे तो हमारे पास कृष्ण की साँसों के अणुओ का वातावरण के अणुओ में मिक्सिंग कंसंट्रेशन का अनुपात आ जाएगा...
So here we go
1.12*10^44\ 1.21*10^32
और हमारा जवाब है...
●0.0000000013212413●
अर्थात... 1.32*10-^14
या फिर ये कह सकते है की...
●वातावरण में 13212413000000000 अणु के बीच एक कृष्ण की साँसों में इस्तेमाल हुआ एक अणु है●
लेकिन...
चूँकि आपकी एक सांस में जाने वाले अणुओ की संख्या (16100000000000000000000) है
तो... आपकी प्रत्येक सांस में संभावित कृष्ण के अणुओ की संख्या होगी...
(Finger Crossed)
(1.61*10^22)* (0.0000000013212413)
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And here is our answer....
Congratulations !!!
आपकी पिछली सांस में आपने 21271984930000 ऐसे अणु अन्दर खींचे है
जिन अणुओ ने कभी ना कभी...
कृष्ण के शरीर की यात्रा की थी !!!!
.
ऑफकोर्स अणुओ की वास्तविक संख्या इससे थोड़ी कम ही होगी
क्युकी हमारे फेफड़ो से निकली वायु में कार्बन का अनुपात ली गई वायु की तुलना में 5 प्रतिशत अधिक होता है
जो ज्यदातर समुद्रो तथा वनस्पतियो द्वारा फोटो सिंथेसिस प्रक्रिया में इस्तेमाल कर लिया जाता है... और कई अणु ऐसे भी होते है जो repeat हो कर हमारी साँसों में आते है
Still Its Mathematically Certain कि... भले ही आप पृथ्वी के ऐसे किसी कोने में खड़े हो जहा आप पहले कभी नहीं गए
फिर भी 100 प्रतिशत संभावना है की आप अपनी साँसों में ऐसे कुछ लाख अणु अवश्य खींचेगे... जो पहले आपके शरीर की यात्रा कर चुके है
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उनमे से कुछ अणु ऐसे हो सकते है....
जिन्हें 10 साल पहले ऑफिस जाते वक़्त आपने अपनी कार की चाबी उठाते वक़्त इस्तेमाल किया था
.
उनमे से कुछ अणु ऐसे हो सकते है... जो आपके अन्दर तब थे
जब आपको पहली नजर में किसी से प्यार हो गया था
.
और कुछ अणु ऐसे भी हो सकते है.... जो आपके अन्दर थे..
जब आपने जिन्दगी में पहली बार...
Kiss किया था !!!
.
और...
हो सकता है... अभी अभी आपकी साँसों में कुछ अणु ऐसे गए हो...
जो उस पल.... आपकी माँ के अन्दर थे
....जिस पल वो आपको... जन्म दे रही थी
.
और हो सकता है... अभी अभी आपने कुछ ऐसे अणु अपने अन्दर खींचे है
"जो भगत सिंह के अन्दर थे"
जब उन्होंने मुस्कुराते हुए... फांसी का फंदा चूमा था
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Our atmosphere is full of history...
Take A Deep Breathe !!!
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क्युकी इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि..... "आपको साँसों को वायुमंडल में ठीक से मिक्स होने में अधिकतम 10 साल लगते है"
.
तो.... अगले 10 साल के बाद
मेरी किसी ना किसी सांस में....
ऐसे कुछ अणु मेरे शरीर की यात्रा अवश्य करेगे
जो अभी...
इस पोस्ट को पढ़ते हुए...
.
आपके अन्दर है !

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