शिखंडी महाभारत की कथा का वो पात्र है जो भीष्म पितामह की मृत्यु का कारण बनता है। शिखंडी पूर्वजन्म में स्त्री होता है, इस जन्म में भी वो स्त्री रूप में पैदा होता है लेकिन युवा होकर पुरुष बन जाता है। स्त्री के रूप में जन्म लेकर शिखंडी पुरुष कैसे बना और क्यों बना, इसकी कथा इस प्रकार है-
भीष्म पितामह ने बताया था ये रहस्य
जब कौरवों व पांडवों में युद्ध होना निश्चित हो गया और दोनों पक्षों की सेना कुरुक्षेत्र में एकत्रित हो गई तब दुर्योधन ने भीष्म पितामह से पांडवों के प्रमुख योद्धाओं के बारे में पूछा। तब भीष्म पितामह ने पांडवों के प्रमुख योद्धाओं के बारे में विस्तार पूर्वक दुर्योधन को बताया। साथ में यह भी बताया कि वे राजा द्रुपद के पुत्र शिखंडी से युद्ध नहीं करेंगे। दुर्योधन ने इसका कारण पूछा।
तब भीष्म पितामह ने बताया कि शिखंडी पूर्व जन्म में एक स्त्री था। साथ ही वह इस जन्म में भी कन्या के रूप में जन्मा था, लेकिन बाद में वह पुरुष बन गया। भीष्म ने कहा कि कन्या रूप में जन्म लेने के कारण मैं उसके साथ युद्ध नहीं करूंगा। शिखंडी स्त्री से पुरुष कैसे बना, यह विचित्र कथा भी भीष्म पितामह ने दुर्योधन को बताई।
जानिए शिखंडी के पूर्व जन्म की कथा
दुर्योधन द्वारा पूछने पर भीष्म पितामह ने उसे शिखंडी के पूर्वजन्म और स्त्री से पुरुष बनने की विचित्र कथा के बारे में बताया, जो इस प्रकार है-
भीष्म ने बताया कि जिस समय हस्तिनापुर के राजा मेरे छोटे भाई विचित्रवीर्य थे। उस समय उनके विवाह के लिए मैं भरी सभा से काशीराज की तीन पुत्रियों अंबा, अंबिका और अंबालिका को हर लाया था, लेकिन जब मुझे पता चला कि अंबा के मन में राजा शाल्व के प्रति प्रेम है तो मैंने उसे ससम्मान राजा शाल्व के पास भेज दिया परंतु राजा शाल्व ने अंबा को अपनाने से इंकार कर दिया।
अंबा को लगा कि उस पर यह विपत्ति मेरे ही कारण आई है। इसलिए उसने मुझसे बदला लेने का संकल्प लिया। यह बात जब अंबा के नाना राजर्षि होत्रवाहन को पता चली तो उन्होंने अंबा को परशुरामजी से मिलने के लिए कहा। परशुरामजी से मिलकर अंबा ने अपनी पूरी व्यथा उन्हें बता दी। अंबा की बात सुनकर गुरु परशुराम मेरे पास आए और उन्होंने मुझे अंबा के साथ विवाह करने के लिए कहा, लेकिन मैंने ऐसा करने से मना कर दिया।
परशुराम और भीष्म में हुआ था भयंकर युद्ध
भीष्म पितामह ने दुर्योधन को बताया कि जब मैंने अंबा के साथ विवाह करने से इंकार कर दिया तो मेरे गुरु परशुराम को मुझ पर बहुत क्रोध आया और उन्होंने मुझसे युद्ध करने की ठान ली। गुरु परशुराम और मेरे बीच लगातार 23 दिन तक युद्ध होता रहा, लेकिन इसका कोई परिणाम नहीं निकला। 24 वे दिन जब मैंने महाभयंकर प्रस्वापास्त्र अस्त्र का प्रहार परशुरामजी पर करना चाहा तो आकाश में उपस्थित नारद मुनि ने मुझे ऐसा करने से रोक दिया।
तब मैंने वह अस्त्र अपने धनुष पर से उतार लिया। यह देख परशुरामजी ने मुझसे कहा कि भीष्म तुमने मुझे परास्त कर दिया। तभी वहां गुरु परशुरामजी के पितरगण उपस्थित हो गए और उनके कहने पर उन्होंने अपने अस्त्र रख दिए। इस प्रकार वह युद्ध समाप्त हो गया। तब अंबा मेरे नाश के लिए तप करने के लिए वहां से चली गई।
बदला लेने के लिए अंबा ने किया था तप
भीष्म पितामह ने दुर्योधन को बताया कि मुझसे प्रतिशोध लेने के लिए अंबा यमुना तट पर रहकर तप करने लगी। तप करते-करते उसने अपना शरीर त्याग दिया। अगले जन्म में वह वत्सदेश के राजा की कन्या होकर उत्पन्न हुई। वह अपने पूर्वजन्म के बारे में जानती थी। इसलिए मुझसे बदला लेने के लिए वह पुन: तप करने लगी। उसके तप से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उसे दर्शन दिए। उस कन्या ने भगवान शिव से मेरी पराजय का वरदान मांगा।
भगवान शिव ने उसे मनचाहा वरदान दे दिया। तब उस कन्या ने कहा कि मैं एक स्त्री होकर भीष्म का वध कैसे कर सकूंगी? तब भगवान शिव ने उससे कहा कि तू अगले जन्म में पुन: एक स्त्री के रूप में जन्म लेगी, लेकिन युवा होने पर तू पुरुष बन जाएगी और भीष्म की मृत्यु का कारण बनेगी। ऐसा वरदान मिलने पर उस कन्या ने एक चिता बनाई और मैं भीष्म का वध करने के लिए अग्नि में प्रवेश करती हूं, ऐसा कहकर उसमें प्रवेश कर गई।
किस रूप में जन्म लिया अंबा ने?
भीष्म पितामह ने दुर्योधन को बताया कि वही अंबा इस जन्म में शिखंडी के रूप में जन्मी है। जब राजा द्रुपद को कोई संतान नहीं थी, तब उसने महादेव को प्रसन्न कर पुत्र होने का वरदान मांगा। महादेव ने उससे कहा कि तुम्हारे यहां एक कन्या का जन्म होगा, जो बाद में पुरुष बन जाएगी। समय आने पर द्रुपद की पत्नी ने एक कन्या को जन्म दिया।
भगवान शिव के वरदान का स्मरण करते हुए द्रुपद ने सभी को यही बताया कि उसके यहां पुत्र ने जन्म लिया है। युवा होने पर रानी ने राजा द्रुपद से कहा कि महादेव का वरदान कभी निष्फल नहीं हो सकता। इसलिए अब हमें किसी कन्या से इसका विवाह कर देना चाहिए। रानी की बात मानकर राजा द्रुपद ने दशार्णराज हिरण्यवर्मा की कन्या से शिखंडी का विवाह करवा दिया।
डर कर जंगल क्यों भागी शिखंडी
जब हिरण्यवर्मा की पुत्री को पता चला कि मेरा विवाह एक स्त्री से हुआ है, तो उसने यह बात अपने पिता को बता दी। यह बात जानकर राजा हिरण्यवर्मा को बहुत क्रोध आया और उसने राजा द्रुपद को संदेश भिजवाया कि यदि यह बात सत्य हुई तो मैं तुम्हारे कुटुंब व राज्य सहित तुम्हें नष्ट कर दूंगा। राजा द्रुपद ने राजा हिरण्यवर्मा को समझाने का बहुत प्रयास किया, लेकिन उसने अपने साथी राजाओं के साथ मिलकर पांचालदेश पर आक्रमण कर दिया।
राजा हिरण्यवर्मा व अन्य राजाओं ने निश्चय किया कि यदि शिखंडी सचमुच स्त्री हुआ तो हम राजा द्रुपद को कैद कर उसके राज्य पर अधिकार कर लेंगे और बाद में द्रुपद और शिखंडी का वध कर देंगे। राजा हिरण्यवर्मा द्वारा आक्रमण करने की बात जब स्त्री रूपी शिखंडी को पता चली तो वह बहुत घबरा गई और अपने प्राण त्यागने की इच्छा से वन में चली गई।
जानिए शिखंडी को कैसे मिला पुरुषत्व
उस वन की रक्षा स्थूणाकर्ण नाम का एक यक्ष करता था। यक्ष ने जब शिखंडी को देखा तो उससे यहां आने का कारण पूछा। तब शिखंडी ने उसे पूरी बात सच-सच बता दी। पूरी बात जानने के बाद उस यक्ष ने शिखंडी की सहायता करने के उद्देश्य से अपना पुरुषत्व उसे दे दिया और उसका स्त्रीत्व स्वयं धारण कर लिया।
यक्ष ने शिखंडी से कहा कि तुम्हारा कार्य सिद्ध होने पर तुम पुन: मेरा पुरुषत्व मुझे पुन: लौटा देना। शिखंडी ने हां कह दिया और अपने नगर लौट आया। शिखंडी को पुरुष रूप में देखकर राजा द्रुपद बहुत प्रसन्न हुए। राजा हिरण्यवर्मा ने भी शिखंडी के पुरुष रूप की परीक्षा ली और शिखंडी को पुरुष जानकर वह बहुत प्रसन्न हुआ।
कुबेर ने क्यों दिया यक्ष को श्राप?
जब शिखंडी अपने पुरुष रूप में पांचाल नगर में रह रहा था। इसी बीच एक दिन यक्षराज कुबेर घूमते-घूमते स्थूणाकर्ण के पास पहुंचे, लेकिन वह यक्ष उनके अभिवादन के लिए नहीं आया। तब कुबेर ने अन्य यक्षों से इसका कारण पूछा तो उन्होंने पूरी बात यक्षराज को बता दी और कहा कि इस समय स्थूणाकर्ण स्त्री रूप में है। इसलिए संकोचवश वह आपके सामने नहीं आ रहा है। पूरी बात जानकर यक्षराज कुबेर बहुत क्रोधित हुए और उन्होंने स्थूणाकर्ण को श्राप दिया कि अब उसे इसी रूप में रहना होगा।
स्थूणाकर्ण द्वारा क्षमा मांगने पर यक्षराज ने कहा कि शिखंडी की मृत्यु के बाद तुम्हें तुम्हारा पुरुष रूप पुन: प्राप्त हो जाएगा। इधर जब शिखंडी का कार्य सिद्ध हो गया तो वह वन में स्थूणाकर्ण के पास पहुंचा। तब स्थूणाकर्ण ने शिखंडी को पूरी बात बता दी। यह जानकर शिखंडी को बहुत प्रसन्नता हुई। महाभारत युद्ध की समाप्ति के बाद जब दुर्योधन ने मरणासन्न अवस्था में अश्वत्थामा को अपना सेनापति बनाया था, तब महादेव की तलवार से अश्वत्थामा ने सोती हुई अवस्था में शिखंडी का वध कर दिया था।
भीष्म पितामह ने बताया था ये रहस्य
जब कौरवों व पांडवों में युद्ध होना निश्चित हो गया और दोनों पक्षों की सेना कुरुक्षेत्र में एकत्रित हो गई तब दुर्योधन ने भीष्म पितामह से पांडवों के प्रमुख योद्धाओं के बारे में पूछा। तब भीष्म पितामह ने पांडवों के प्रमुख योद्धाओं के बारे में विस्तार पूर्वक दुर्योधन को बताया। साथ में यह भी बताया कि वे राजा द्रुपद के पुत्र शिखंडी से युद्ध नहीं करेंगे। दुर्योधन ने इसका कारण पूछा।
तब भीष्म पितामह ने बताया कि शिखंडी पूर्व जन्म में एक स्त्री था। साथ ही वह इस जन्म में भी कन्या के रूप में जन्मा था, लेकिन बाद में वह पुरुष बन गया। भीष्म ने कहा कि कन्या रूप में जन्म लेने के कारण मैं उसके साथ युद्ध नहीं करूंगा। शिखंडी स्त्री से पुरुष कैसे बना, यह विचित्र कथा भी भीष्म पितामह ने दुर्योधन को बताई।
जानिए शिखंडी के पूर्व जन्म की कथा
दुर्योधन द्वारा पूछने पर भीष्म पितामह ने उसे शिखंडी के पूर्वजन्म और स्त्री से पुरुष बनने की विचित्र कथा के बारे में बताया, जो इस प्रकार है-
भीष्म ने बताया कि जिस समय हस्तिनापुर के राजा मेरे छोटे भाई विचित्रवीर्य थे। उस समय उनके विवाह के लिए मैं भरी सभा से काशीराज की तीन पुत्रियों अंबा, अंबिका और अंबालिका को हर लाया था, लेकिन जब मुझे पता चला कि अंबा के मन में राजा शाल्व के प्रति प्रेम है तो मैंने उसे ससम्मान राजा शाल्व के पास भेज दिया परंतु राजा शाल्व ने अंबा को अपनाने से इंकार कर दिया।
अंबा को लगा कि उस पर यह विपत्ति मेरे ही कारण आई है। इसलिए उसने मुझसे बदला लेने का संकल्प लिया। यह बात जब अंबा के नाना राजर्षि होत्रवाहन को पता चली तो उन्होंने अंबा को परशुरामजी से मिलने के लिए कहा। परशुरामजी से मिलकर अंबा ने अपनी पूरी व्यथा उन्हें बता दी। अंबा की बात सुनकर गुरु परशुराम मेरे पास आए और उन्होंने मुझे अंबा के साथ विवाह करने के लिए कहा, लेकिन मैंने ऐसा करने से मना कर दिया।
परशुराम और भीष्म में हुआ था भयंकर युद्ध
भीष्म पितामह ने दुर्योधन को बताया कि जब मैंने अंबा के साथ विवाह करने से इंकार कर दिया तो मेरे गुरु परशुराम को मुझ पर बहुत क्रोध आया और उन्होंने मुझसे युद्ध करने की ठान ली। गुरु परशुराम और मेरे बीच लगातार 23 दिन तक युद्ध होता रहा, लेकिन इसका कोई परिणाम नहीं निकला। 24 वे दिन जब मैंने महाभयंकर प्रस्वापास्त्र अस्त्र का प्रहार परशुरामजी पर करना चाहा तो आकाश में उपस्थित नारद मुनि ने मुझे ऐसा करने से रोक दिया।
तब मैंने वह अस्त्र अपने धनुष पर से उतार लिया। यह देख परशुरामजी ने मुझसे कहा कि भीष्म तुमने मुझे परास्त कर दिया। तभी वहां गुरु परशुरामजी के पितरगण उपस्थित हो गए और उनके कहने पर उन्होंने अपने अस्त्र रख दिए। इस प्रकार वह युद्ध समाप्त हो गया। तब अंबा मेरे नाश के लिए तप करने के लिए वहां से चली गई।
बदला लेने के लिए अंबा ने किया था तप
भीष्म पितामह ने दुर्योधन को बताया कि मुझसे प्रतिशोध लेने के लिए अंबा यमुना तट पर रहकर तप करने लगी। तप करते-करते उसने अपना शरीर त्याग दिया। अगले जन्म में वह वत्सदेश के राजा की कन्या होकर उत्पन्न हुई। वह अपने पूर्वजन्म के बारे में जानती थी। इसलिए मुझसे बदला लेने के लिए वह पुन: तप करने लगी। उसके तप से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उसे दर्शन दिए। उस कन्या ने भगवान शिव से मेरी पराजय का वरदान मांगा।
भगवान शिव ने उसे मनचाहा वरदान दे दिया। तब उस कन्या ने कहा कि मैं एक स्त्री होकर भीष्म का वध कैसे कर सकूंगी? तब भगवान शिव ने उससे कहा कि तू अगले जन्म में पुन: एक स्त्री के रूप में जन्म लेगी, लेकिन युवा होने पर तू पुरुष बन जाएगी और भीष्म की मृत्यु का कारण बनेगी। ऐसा वरदान मिलने पर उस कन्या ने एक चिता बनाई और मैं भीष्म का वध करने के लिए अग्नि में प्रवेश करती हूं, ऐसा कहकर उसमें प्रवेश कर गई।
किस रूप में जन्म लिया अंबा ने?
भीष्म पितामह ने दुर्योधन को बताया कि वही अंबा इस जन्म में शिखंडी के रूप में जन्मी है। जब राजा द्रुपद को कोई संतान नहीं थी, तब उसने महादेव को प्रसन्न कर पुत्र होने का वरदान मांगा। महादेव ने उससे कहा कि तुम्हारे यहां एक कन्या का जन्म होगा, जो बाद में पुरुष बन जाएगी। समय आने पर द्रुपद की पत्नी ने एक कन्या को जन्म दिया।
भगवान शिव के वरदान का स्मरण करते हुए द्रुपद ने सभी को यही बताया कि उसके यहां पुत्र ने जन्म लिया है। युवा होने पर रानी ने राजा द्रुपद से कहा कि महादेव का वरदान कभी निष्फल नहीं हो सकता। इसलिए अब हमें किसी कन्या से इसका विवाह कर देना चाहिए। रानी की बात मानकर राजा द्रुपद ने दशार्णराज हिरण्यवर्मा की कन्या से शिखंडी का विवाह करवा दिया।
डर कर जंगल क्यों भागी शिखंडी
जब हिरण्यवर्मा की पुत्री को पता चला कि मेरा विवाह एक स्त्री से हुआ है, तो उसने यह बात अपने पिता को बता दी। यह बात जानकर राजा हिरण्यवर्मा को बहुत क्रोध आया और उसने राजा द्रुपद को संदेश भिजवाया कि यदि यह बात सत्य हुई तो मैं तुम्हारे कुटुंब व राज्य सहित तुम्हें नष्ट कर दूंगा। राजा द्रुपद ने राजा हिरण्यवर्मा को समझाने का बहुत प्रयास किया, लेकिन उसने अपने साथी राजाओं के साथ मिलकर पांचालदेश पर आक्रमण कर दिया।
राजा हिरण्यवर्मा व अन्य राजाओं ने निश्चय किया कि यदि शिखंडी सचमुच स्त्री हुआ तो हम राजा द्रुपद को कैद कर उसके राज्य पर अधिकार कर लेंगे और बाद में द्रुपद और शिखंडी का वध कर देंगे। राजा हिरण्यवर्मा द्वारा आक्रमण करने की बात जब स्त्री रूपी शिखंडी को पता चली तो वह बहुत घबरा गई और अपने प्राण त्यागने की इच्छा से वन में चली गई।
जानिए शिखंडी को कैसे मिला पुरुषत्व
उस वन की रक्षा स्थूणाकर्ण नाम का एक यक्ष करता था। यक्ष ने जब शिखंडी को देखा तो उससे यहां आने का कारण पूछा। तब शिखंडी ने उसे पूरी बात सच-सच बता दी। पूरी बात जानने के बाद उस यक्ष ने शिखंडी की सहायता करने के उद्देश्य से अपना पुरुषत्व उसे दे दिया और उसका स्त्रीत्व स्वयं धारण कर लिया।
यक्ष ने शिखंडी से कहा कि तुम्हारा कार्य सिद्ध होने पर तुम पुन: मेरा पुरुषत्व मुझे पुन: लौटा देना। शिखंडी ने हां कह दिया और अपने नगर लौट आया। शिखंडी को पुरुष रूप में देखकर राजा द्रुपद बहुत प्रसन्न हुए। राजा हिरण्यवर्मा ने भी शिखंडी के पुरुष रूप की परीक्षा ली और शिखंडी को पुरुष जानकर वह बहुत प्रसन्न हुआ।
कुबेर ने क्यों दिया यक्ष को श्राप?
जब शिखंडी अपने पुरुष रूप में पांचाल नगर में रह रहा था। इसी बीच एक दिन यक्षराज कुबेर घूमते-घूमते स्थूणाकर्ण के पास पहुंचे, लेकिन वह यक्ष उनके अभिवादन के लिए नहीं आया। तब कुबेर ने अन्य यक्षों से इसका कारण पूछा तो उन्होंने पूरी बात यक्षराज को बता दी और कहा कि इस समय स्थूणाकर्ण स्त्री रूप में है। इसलिए संकोचवश वह आपके सामने नहीं आ रहा है। पूरी बात जानकर यक्षराज कुबेर बहुत क्रोधित हुए और उन्होंने स्थूणाकर्ण को श्राप दिया कि अब उसे इसी रूप में रहना होगा।
स्थूणाकर्ण द्वारा क्षमा मांगने पर यक्षराज ने कहा कि शिखंडी की मृत्यु के बाद तुम्हें तुम्हारा पुरुष रूप पुन: प्राप्त हो जाएगा। इधर जब शिखंडी का कार्य सिद्ध हो गया तो वह वन में स्थूणाकर्ण के पास पहुंचा। तब स्थूणाकर्ण ने शिखंडी को पूरी बात बता दी। यह जानकर शिखंडी को बहुत प्रसन्नता हुई। महाभारत युद्ध की समाप्ति के बाद जब दुर्योधन ने मरणासन्न अवस्था में अश्वत्थामा को अपना सेनापति बनाया था, तब महादेव की तलवार से अश्वत्थामा ने सोती हुई अवस्था में शिखंडी का वध कर दिया था।
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