सुख और समृद्धि के लिए धन का महत्व काफी अधिक है। यदि हमारे पास पैसा होगा तो सुख-सुविधाओं की सभी चीजें आसानी से प्राप्त की जा सकती हैं। धन के महत्व को देखते हुए महाभारत में कई नीतियां बताई गई हैं। उन्हीं नीतियों में एक नीति यहां जानिए…
महाभारत में लिखा है कि-
श्रीर्मङ्गलात् प्रभवति प्रागल्भात् सम्प्रवर्धते।
दाक्ष्यात्तु कुरुते मूलं संयमात् प्रतितिष्ठत्ति।।
इस नीति श्लोक में चार बातें बताई गई हैं, जो धन से संबंधित हैं…
1. पहली बात ये है कि अच्छे कर्म से स्थाई लक्ष्मी आती है। परिश्रम और ईमानदारी से किए गए कार्यों में जो धन प्राप्त होता है, उससे स्थाई लाभ मिलता है और घर में बरकत बनी रहती है। जबकि, जो लोग गलत कार्यों से धन कमाते हैं, वे कई प्रकार की बीमारियों और परेशानियों का सामना करते हैं। गलत काम करने वाले लोग क्षणिक सुख प्राप्त कर सकते हैं, लेकिन वे हमेशा सुखी नहीं रह पाते हैं।
– दुर्योधन ने छल और गलत तरीके से पांडवों से उनकी धन-संपत्ति छीन ली थी, लेकिन ये संपत्ति उसके पास टिक ना सकी।
2. दूसरी बात है प्रगल्भता यानी धन का सही-सही प्रबंधन या निवेश। यदि हम धन का सही प्रबंधन करेंगे, सही कार्यों में पैसा लगाएंगे तो, निश्चित रूप से लाभ मिल सकता है। सही कार्यों में लगाए गए धन से हमेशा लाभ प्राप्त किया जा सकता है। जबकि, जो लोग जल्दी-जल्दी लाभ कमाने के चक्कर में धन का प्रबंधन गलत तरीके से करते हैं, वे अंतत: दुखी होते हैं।
– दुर्योधन ने धन का प्रबंधन पांडवों को नष्ट करने के लिए किया और खुद ही नष्ट हो गया।
3. तीसरी बात यह है कि धन के संबंध में सयंम बनाए रखें। आमतौर पर यदि किसी व्यक्ति के धन अधिक होता है तो वह बुरी आदतों का शिकार हो जाता है, नशा करने लगता है। यदि धन से हमेशा सुख और शांति प्राप्त करना चाहते हैं मानसिक, शारीरिक और वैचारिक संयम बनाए रखें। अपने गलत शौक पूरे करने के धन का दुरुपयोग न करें।
– शास्त्रों में कई ऐसे पात्र बताए गए हैं जो बुरी आदतों के कारण नष्ट हो गए। युधिष्ठिर भी द्युत क्रीड़ा (जुआं) में ही दुर्योधन और शकुनि से सब कुछ हार गए थे।
4. चौथी बात यह है कि धन चतुरता के साथ खर्च करना चाहिए। यदि सोच-समझकर और सिर्फ जरुरत की चीजों पर ही धन खर्च किया जाएगा तो बचत बनी रहेगी और धन भी बढ़ता रहेगा। आय-व्यय में संतुलन बनाए रखना चाहिए।
इस प्रकार जो लोग यहां बताई गई चारों बातें (अच्छे कर्म से पैसा कमाएं, सही जगह निवेश करें, चतुरता के साथ खर्च करें और धन का दुरुपयोग न करें) ध्यान रखते हैं, वे सदैव सुख प्राप्त करते हैं
महाभारत में लिखा है कि-
श्रीर्मङ्गलात् प्रभवति प्रागल्भात् सम्प्रवर्धते।
दाक्ष्यात्तु कुरुते मूलं संयमात् प्रतितिष्ठत्ति।।
इस नीति श्लोक में चार बातें बताई गई हैं, जो धन से संबंधित हैं…
1. पहली बात ये है कि अच्छे कर्म से स्थाई लक्ष्मी आती है। परिश्रम और ईमानदारी से किए गए कार्यों में जो धन प्राप्त होता है, उससे स्थाई लाभ मिलता है और घर में बरकत बनी रहती है। जबकि, जो लोग गलत कार्यों से धन कमाते हैं, वे कई प्रकार की बीमारियों और परेशानियों का सामना करते हैं। गलत काम करने वाले लोग क्षणिक सुख प्राप्त कर सकते हैं, लेकिन वे हमेशा सुखी नहीं रह पाते हैं।
– दुर्योधन ने छल और गलत तरीके से पांडवों से उनकी धन-संपत्ति छीन ली थी, लेकिन ये संपत्ति उसके पास टिक ना सकी।
2. दूसरी बात है प्रगल्भता यानी धन का सही-सही प्रबंधन या निवेश। यदि हम धन का सही प्रबंधन करेंगे, सही कार्यों में पैसा लगाएंगे तो, निश्चित रूप से लाभ मिल सकता है। सही कार्यों में लगाए गए धन से हमेशा लाभ प्राप्त किया जा सकता है। जबकि, जो लोग जल्दी-जल्दी लाभ कमाने के चक्कर में धन का प्रबंधन गलत तरीके से करते हैं, वे अंतत: दुखी होते हैं।
– दुर्योधन ने धन का प्रबंधन पांडवों को नष्ट करने के लिए किया और खुद ही नष्ट हो गया।
3. तीसरी बात यह है कि धन के संबंध में सयंम बनाए रखें। आमतौर पर यदि किसी व्यक्ति के धन अधिक होता है तो वह बुरी आदतों का शिकार हो जाता है, नशा करने लगता है। यदि धन से हमेशा सुख और शांति प्राप्त करना चाहते हैं मानसिक, शारीरिक और वैचारिक संयम बनाए रखें। अपने गलत शौक पूरे करने के धन का दुरुपयोग न करें।
– शास्त्रों में कई ऐसे पात्र बताए गए हैं जो बुरी आदतों के कारण नष्ट हो गए। युधिष्ठिर भी द्युत क्रीड़ा (जुआं) में ही दुर्योधन और शकुनि से सब कुछ हार गए थे।
4. चौथी बात यह है कि धन चतुरता के साथ खर्च करना चाहिए। यदि सोच-समझकर और सिर्फ जरुरत की चीजों पर ही धन खर्च किया जाएगा तो बचत बनी रहेगी और धन भी बढ़ता रहेगा। आय-व्यय में संतुलन बनाए रखना चाहिए।
इस प्रकार जो लोग यहां बताई गई चारों बातें (अच्छे कर्म से पैसा कमाएं, सही जगह निवेश करें, चतुरता के साथ खर्च करें और धन का दुरुपयोग न करें) ध्यान रखते हैं, वे सदैव सुख प्राप्त करते हैं
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