Saturday, 20 February 2016

महाभारत ज्ञान – एक राजा में आवश्यक है ये 36 गुण

पुरातन समय से लेकर लगभग एक सदी पहले तक हमारे देश में राजाओं का शासन था। जहाँ कुछ राजाओं को हम उनकी नेकी, वीरता, बलिदान, सद्गुणों आदि के कारण याद करते है तो कुछ राजा अपने अवगुणों के कारण जाने जाते है। एक राजा में क्या-क्या गुण होने चाहिए, इसका वर्णन महाभारत के शांति पर्व में विस्तार पूर्वक लिखा है। तीरों की शय्या पर लेटे भीष्म पितामह ने राजा के गुण, धर्म, आचरण आदि के बारे में युधिष्ठिर को बताया था। भीष्म पितामह ने युधिष्ठर को राज्यों के अत्यावश्यक 36 गुणों के बारे में बताया था। आज हम आपको राजा के उन्हीं गुणों के बारे में बता रहे हैं।


जानिए राजा में कौन-कौन से गुण होने चाहिए

1- शूरवीर बने, किंतु बढ़चढ़कर बातें न बनाए।

2- स्त्रियों का अधिक सेवन न करे।

3- किसी से ईष्र्या न करे और स्त्रियों की रक्षा करे।

4- जिन्होंने अपकार (अनुचित व्यवहार) किया हो, उनके प्रति कोमलता का बर्ताव न करे।

5- क्रूरता (जबर्दस्ती या अधिक कर लगाकर) का आश्रय लिए बिना ही अर्थ (धन) संग्रह करे।

6- अपनी मर्यादा में रहते हुए ही सुखों का उपभोग करे।

7- दीनता न लाते हुए ही प्रिय भाषण करे।

8- स्पष्ट व्यवहार करे पर कठोरता न आने दे।

9- दुष्टों के साथ मेल न करे।

10- बंधुओं से कलह न करे।

11- जो राजभक्त न हो ऐसे दूत से काम न ले।

12- किसी को कष्ट पहुंचाए बिना ही अपना कार्य करे।

13- दुष्टों से अपनी बात न कहे।

14- अपने गुणों का वर्णन न करे।

15- साधुओं का धन न छीने।

16- धर्म का आचरण करे, लेकिन व्यवहार में कटुता न आने दे।

17- आस्तिक रहते हुए दूसरों के साथ प्रेम का बर्ताव न छोड़े।

18- दान दे परंतु अपात्र (अयोग्य) को नहीं।

19- लोभियों को धन न दे।

20- जिन्होंने कभी अपकार (अनुचित व्यवहार) किया हो, उन पर विश्वास न करे।

21- शुद्ध रहे और किसी से घृणा न करे।

22- नीच व्यक्तियों का आश्रय न ले।

23- अच्छी तरह जांच-पड़ताल किए बिना किसी को दंड न दे।

24- गुप्त मंत्रणा (बात या राज) को प्रकट (किसी को न बताए) न करे।

25- आदरणीय लोगों का बिना अभिमान किए सम्मान करे।

26- गुरु की निष्कपट भाव से सेवा करे।

27- बिना घमंड के भगवान का पूजन करे।

28- अनिंदित (जिसकी कोई बुराई न करे, ऐसा काम) उपाय से लक्ष्मी (धन) प्राप्त करने की इच्छा रखे।

29- स्नेह पूर्वक बड़ों की सेवा करे।

30- कार्यकुशल हो, किंतु अवसर का विचार रखे।

31- केवल पिंड छुड़ाने के लिए किसी से चिकनी-चुपड़ी बातें न करे।

32- किसी पर कृपा करते समय आक्षेप (दोष) न करे।

33- बिना जाने किसी पर प्रहार न करे।

34- शत्रुओं को मारकर शोक न करे।

35- अचानक क्रोध न करे।

36- स्वादिष्ट होने पर भी अहितकर (शरीर को रोगी बनाने वाला) हो, उसे न खाए।

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