सन 1990 में कुवैत, सद्दाम हुसैन की दहशत से काँप रहा था और वहां के शाही कुबेरपति रातो रात सऊदी अरब में शरण पाने के लिए रातो रात पलायन कर रहे थे.
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लाखों लोग सद्दाम द्वारा पैदा की गई भीषण युद्ध की परिस्तिथियों में फंस चुके थे. ऐसे हालात में वहां रह रहे एक लाख सत्तर हज़ारहिंदुस्तानी भारतीय एम्बेसी से याचना कर रहे थे कि किसी तरह उन्हें वहां से निकाला जाए.
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उस वक्त विश्वनाथ प्रताप सिंह प्रधानमंत्री के पद पर काबिज थे. हमारी विदेश नीति उस दौर में बहुत कमज़ोर थी. ये ऐसा दौर था जब विश्व के ताकतवर देश इराक़ से बेहद नाराज थे और ऐसे हालात में भारत की सरकार अपने लोगों को छुड़ाने के लिए सीधे ईराक से बात करने में कतरा रही थी. सरकार अपने लोगों को सुरक्षित वापस लाने के लिए और दूसरे विकल्पों पर विचार कर रही थी.
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ऐसे में कुवैत में रहने वाला एक अनजान व्यापारी सामने आया. खुद को पहले कुवैती और बाद में भारतीय मानने वाले रंजीत कत्याल ने हमारे लोगों कोबचाने का बीड़ा उठाया। वह बहुत अमीर व्यक्ति था और इस नाते कुवैत के
प्रभावशाली लोगों में उसकी अच्छी पकड़ थी. एक तरह से वह भारत के लिए
पहली और आखिरी उम्मीद बनकर उभरा था.
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सद्दाम हुसैन आधिकारिक रूपसे भारत को अपने लोगों को बचाने की इज़ाज़त नहीं देने वाला था लेकिन
तत्कालीन विदेश मंत्री इंद्रकुमार गुजराल से हुई बातचीत के बाद वह इस बात पर तैयार हो गया कि बिना किसी आधिकारिक घोषणा के भारत अपने लोगों को बचा सकता है.
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कुवैत में हालात बद से बदतर होते जा रहे थे इसलिए भारतीय सेना सीधे तौर पर कुछ नहीं कर पा रही थी. ऐसे में रंजीत कत्याल ने विश्व का सबसे बड़ा बचाव अभियान शुरू करने का फैसला खुद के
दम पर लिया।
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उसने कुवैत के युद्ध प्रभावित हिस्सों में फंसे भारतीयों को अम्मान लेजाना शुरू किया। अम्मान ही वो जगह थी जहाँ से भारतीय विमान अपने लोगों को सुरक्षित ले जा सकते थे. सबसे पहले वृद्ध, बच्चो और महिलाओं
को ले जाने का काम शुरू किया गया. ये अभियान 60 दिन तक चला जिसमे भारत रंजीत कत्याल की मदद से एक लाख सत्तर हज़ार भारतीयों को सुरक्षित वापस लाने में कामयाब रहा.
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अभियान ख़त्म होने के बाद इसे गिनीज बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकार्ड्स में शामिल किया गया क्योकि विश्व मेंअब तक इतना बड़ा बचाव अभियान केवल एक व्यक्ति की मदद से सम्भव हो सका था. ख़ास बात इस अभियान में भारत की सिविल एयर लाइन (एयरइंडिया) ने ये करिश्मा किया क्योकि गुजराल और सद्दाम के गुप्त समझौते के तहत हमारी सेना कुवैत में प्रवेश नहीं कर सकती थी.
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एक लाख सत्तर हज़ार लोगों के लिए देवदूत बने रंजीत कत्याल को कोई भारत रत्न नहीं दिया
गया क्योकि ये अभियान घोषित नहीं था. बाद की सरकारों ने भी उसके इस बेहतरीन काम के लिए कभी कोई शुकराना अदा नहीं किया।
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अब अक्षय कुमार आने वाली फिल्म 'एयर लिफ्ट' में उसी रंजीत कत्याल की भूमिका
निभाने जा रहे हैं. मुझे उम्मीद है कि इस फिल्म को देखने के बाद भारतीय सेल्यूट ठोंककर उनके बेमिसाल काम की सराहना करेंगे।
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भारत में न रहकर भी रंजीत ने एक आदर्श भारतीय होने का गौरव हासिल किया है. इस गुमनाम
हीरो को आप एयरलिफ्ट देखकर सलामी दे सकते हैं
क्योकि सलामी देने के लिए रंजीत की कोई भी फोटो भी उपलब्ध नहीं है.. ..
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लाखों लोग सद्दाम द्वारा पैदा की गई भीषण युद्ध की परिस्तिथियों में फंस चुके थे. ऐसे हालात में वहां रह रहे एक लाख सत्तर हज़ारहिंदुस्तानी भारतीय एम्बेसी से याचना कर रहे थे कि किसी तरह उन्हें वहां से निकाला जाए.
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उस वक्त विश्वनाथ प्रताप सिंह प्रधानमंत्री के पद पर काबिज थे. हमारी विदेश नीति उस दौर में बहुत कमज़ोर थी. ये ऐसा दौर था जब विश्व के ताकतवर देश इराक़ से बेहद नाराज थे और ऐसे हालात में भारत की सरकार अपने लोगों को छुड़ाने के लिए सीधे ईराक से बात करने में कतरा रही थी. सरकार अपने लोगों को सुरक्षित वापस लाने के लिए और दूसरे विकल्पों पर विचार कर रही थी.
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ऐसे में कुवैत में रहने वाला एक अनजान व्यापारी सामने आया. खुद को पहले कुवैती और बाद में भारतीय मानने वाले रंजीत कत्याल ने हमारे लोगों कोबचाने का बीड़ा उठाया। वह बहुत अमीर व्यक्ति था और इस नाते कुवैत के
प्रभावशाली लोगों में उसकी अच्छी पकड़ थी. एक तरह से वह भारत के लिए
पहली और आखिरी उम्मीद बनकर उभरा था.
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सद्दाम हुसैन आधिकारिक रूपसे भारत को अपने लोगों को बचाने की इज़ाज़त नहीं देने वाला था लेकिन
तत्कालीन विदेश मंत्री इंद्रकुमार गुजराल से हुई बातचीत के बाद वह इस बात पर तैयार हो गया कि बिना किसी आधिकारिक घोषणा के भारत अपने लोगों को बचा सकता है.
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कुवैत में हालात बद से बदतर होते जा रहे थे इसलिए भारतीय सेना सीधे तौर पर कुछ नहीं कर पा रही थी. ऐसे में रंजीत कत्याल ने विश्व का सबसे बड़ा बचाव अभियान शुरू करने का फैसला खुद के
दम पर लिया।
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उसने कुवैत के युद्ध प्रभावित हिस्सों में फंसे भारतीयों को अम्मान लेजाना शुरू किया। अम्मान ही वो जगह थी जहाँ से भारतीय विमान अपने लोगों को सुरक्षित ले जा सकते थे. सबसे पहले वृद्ध, बच्चो और महिलाओं
को ले जाने का काम शुरू किया गया. ये अभियान 60 दिन तक चला जिसमे भारत रंजीत कत्याल की मदद से एक लाख सत्तर हज़ार भारतीयों को सुरक्षित वापस लाने में कामयाब रहा.
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अभियान ख़त्म होने के बाद इसे गिनीज बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकार्ड्स में शामिल किया गया क्योकि विश्व मेंअब तक इतना बड़ा बचाव अभियान केवल एक व्यक्ति की मदद से सम्भव हो सका था. ख़ास बात इस अभियान में भारत की सिविल एयर लाइन (एयरइंडिया) ने ये करिश्मा किया क्योकि गुजराल और सद्दाम के गुप्त समझौते के तहत हमारी सेना कुवैत में प्रवेश नहीं कर सकती थी.
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एक लाख सत्तर हज़ार लोगों के लिए देवदूत बने रंजीत कत्याल को कोई भारत रत्न नहीं दिया
गया क्योकि ये अभियान घोषित नहीं था. बाद की सरकारों ने भी उसके इस बेहतरीन काम के लिए कभी कोई शुकराना अदा नहीं किया।
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अब अक्षय कुमार आने वाली फिल्म 'एयर लिफ्ट' में उसी रंजीत कत्याल की भूमिका
निभाने जा रहे हैं. मुझे उम्मीद है कि इस फिल्म को देखने के बाद भारतीय सेल्यूट ठोंककर उनके बेमिसाल काम की सराहना करेंगे।
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भारत में न रहकर भी रंजीत ने एक आदर्श भारतीय होने का गौरव हासिल किया है. इस गुमनाम
हीरो को आप एयरलिफ्ट देखकर सलामी दे सकते हैं
क्योकि सलामी देने के लिए रंजीत की कोई भी फोटो भी उपलब्ध नहीं है.. ..
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