Monday, 4 April 2016

"सृष्टि उत्पत्ति मॉडल्स में ब्रह्मा-नारायण-शिव का योगदान" ●Role Of Brahma-Narayan-Shiv In Creation Theories●

अपने मूल के विषय में खोज करना... अपने पूर्वजो की जानकारी खोजना मानव मन की सहज प्रवत्ति है
और किस्मत से हमारे इतिहास का क्रम बद्ध ब्योरा हमारे पास कुछ ग्रंथो के रूप में मौजूद है जिन्हें हम कहते है
"पुराण"
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बेशक ये पुराण प्राचीन काल से लेके अब तक हजारो व्यक्तियों के हाथो से हो के गुजरे है और सभी ने अपनी कल्पनाओं और मान्यताओं को इनमे घुसेड इन्हें काफी प्रक्षिप्त कर दिया है
पर
अगर देवी भागवत और ब्रह्मा वैवर्त पुराण जैसे कुछ अति रंजित पुराणों को छोड़ दिया जाए और... कुछ अतिश्योक्ति पूर्ण वर्णन, रूपक अलंकारों और काल खंड वर्णन की त्रुटियों को दूर कर दिया जाए
तो... पुराणों में वर्णित इतिहास 100% सत्य है
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बचपन से पुराणों को लेके एक सवाल मेरे मन में जरुर घूमता था की पुराणों में सृष्टि का कारण भिन्न भिन्न अर्थात ब्रह्मा-नारायण-रूद्र के होने का लॉजिक क्या है?
धर्म ज्ञानियों से पूछा तो जवाब मिला कि...
"ये तो अलग अलग कल्पो की.... 1,960,853,152 वर्षो की कहानी है बेटे... ईश्वर अलग अलग समय पर अलग अलग नाम से सृष्टि की रचना करता है"
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ठीक बात है... हम सब ईश्वर अथवा ब्रह्माण्ड की परम चेतना के ही विस्तार है
पर... ईश्वर को इस ठलुआगिरी की क्या आवश्यकता आन पड़ी कि... भिन्न भिन्न कल्प के हर युग में देव दानव राक्षस की same कहानिया रिपीट करे?
नहीं ये तो सत्य नहीं हो सकता
इसकी वजह कुछ और ही है
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अब या तो हम इन घपलाबाजियो को दरकिनार कर... "ऊपर वाले की माया वो ही जाने" का नारा लगा इन कहानियो में श्रद्धा व्यक्त कर अपने खाटी धार्मिक होने का परिचय देते
या... इन कहानियो का मजाक उड़ा आज कल के फेसबुक पर बिखरे पड़े विचारको की तरह अपनी संस्कृति का मजाक उड़ाते
पर
जिस संस्कृति में आपने जन्म लिया... उसका मजाक उडाना कृतध्नता कहलाता है... जो की ठीक नहीं
तो आखिर क्यों मानव के इतिहास की इन मानवीय घटनाओं को दिव्यता का चोला पहना इतने भ्रम पैदा कर दिए गए?
well... "सत्य की खोज" इतनी मुश्किल नहीं... सुराग पुराणों में ही बिखरे पड़े है...
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सबसे विश्वसनीय पुराणों में से एक "हरिवंश" में एक घटना का उल्लेख आता है
जिसमे कृष्ण ब्रह्मा से मिलने ब्रह्मलोक जाते है... वहा एक ऐसी घटना का वर्णन है जो बरबस मेरा ध्यान अपनी ओर खीचती है
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लिखा है कि... जब कृष्ण ब्रह्मलोक में घुसे तो... ब्रह्मलोक में ऋषि गण भिन्न भिन्न ग्रुप्स में बैठे सृष्टि कैसे उत्पन्न हुई विषयक विचारों जैसे एकात्मवाद, नानात्मकवाद, ब्रहावाद, सांख्य, प्रकृतिवाद,पुरुषवाद आदि के शोध तथा "सृष्टि कैसे उत्पन्न हुई" की चर्चा में व्यस्त थे
पर
अगर ब्रह्मा ने ही दुनिया बनाई तो... उन्ही के लोक में लघु विद्यालयों में सृष्टि विषय पर परस्पर विरोधी विचारों पर चिंतन काहे चल रहा था?
अब या तो ब्रह्मा ने दुनिया नहीं बनाई
या फिर....
"दुनिया को समझने में उनके योगदान को हमने गलत तरीके से समझा है"
और इसे बेहतर समझने के लिए हम सन 1986 में जाना होगा
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1986 में मानव नेत्र ने रात के आसमान में पृथ्वी के आस पास घुमने वाले पिंडो में सबसे प्रसिद्द "हैली धूमकेतु" का साक्षात्कार किया था
हर 76 वर्षो में पृथ्वी की ओर लौट कर आने वाले इस धूमकेतु के दिखने की अगली संभावना सन 2062 में है
पर...
एक मिनट...
हमें कैसे पता कि... इस धूमकेतु का नाम.... हैली है??
इस धूमकेतु ने तो अपना विजिटिंग कार्ड कभी हमें थमाया है नहीं?
वास्तव में इस धूमकेतु को खोजने वाले वैज्ञानिक "एडमंड हैली" के नाम पर इस धूमकेतु का नाम दिया गया
इसी तरह "प्लांक डिस्टेंस" "बोसान कण" "चन्द्र शेखर रेखा" आदि ज्यादातर वैज्ञानिक खोजो को नाम... उनके खोज कर्ताओं के नाम पर ही दिया गया है
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"क्रेडिट्स" देने के लिए खोज को व्यक्ति या संस्था का नाम दे देना... मानव की सहज वृत्ति रही है
ये वृत्ति आज भी है
और
आज से 9000 वर्ष पूर्व भी थी
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8000-9000 वर्ष पूर्व
"स्थान: हिमालय का उत्तरी इलाका"
विश्व के अति प्राचीन आर्य सभ्यता का एक कबीला हिमालय के क्षेत्रो में निवास कर रहा था
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ये कबीला कहा से आया पता नहीं पर...
इस कबीले के कुछ पूर्वज कभी ना कभी ध्रुवो पर अवश्य रहते थे
वे पूर्वज... जिन्होंने ऋग्वेद में आये वर्णनो के अनुसार "6 माह की रात्रि और 6 माह के दिन" का साक्षात्कार किया था
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शिकार और कंदमूल पर जीवित रहने वाले इस कबीले के पास दर्शन के नाम पर अपने पूर्वजो का रचित ग्रन्थ "वेद" के कुछ मन्त्र थे जिनमे प्रकृति की शक्तियों (इंद्र-अग्नि आदि) का गुणगान और प्राकृतिक शक्तियों से ऊपर एक सर्वशक्तिमान की कल्पना की गई थी
(तब तक मानवीय रूप वाले इंद्र विष्णु का जन्म नहीं हुआ था... वेदों के प्राकृतिक देवता मानवीय रूप में परिणत कैसे हुए... ये झोल जल्द एक पोस्ट में समझायेगे)
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ये कबीला खुद को आर्य और अपने कबीले को "ब्रह्म कबीला" और अपने मुखिया को "प्रजापति अथवा ब्रह्मा" बुलाता था... कोई वर्ण व्यवस्था नहीं थी... देव जाति की शुरुआत करने वाले इंद्र का जन्म भी तब नहीं हुआ था...
पुराणों में वर्णित आदिदेव ब्रह्मा से लेके वैवस्वत मनु तक का काल 1,840,320,000 वर्ष नहीं...
वास्तव में ये मोटा मोटा 300-400 वर्ष की कहानी है... और वैवस्वत मनु से अब तक 8-9000 साल व्यतीत हो चुके है... पुराणों में वर्णित सभ्यता का इतिहास अधिक से अधिक 10000 साल पुराना है
(ये झोल भी जल्द समझायेगे)
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इन 300 सालो में इस सभ्यता ने विकास के कई पायदानो को चढ़ा, नगरीकरण और कृषि तथा वर्ण व्यवस्था का आरम्भ इन 300 वर्ष में हुआ
और कुछ ऐसे मनुष्य भी थे... जिनका मन इस अद्धुत ब्रह्माण्ड के रहस्यों की तलाश में जुटा था
और तभी आया वो दर्शन जो हिन्दू अध्यात्म दर्शन का मील का पत्थर था
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"सांख्य दर्शन"
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ब्रह्मा कबीले के मुखिया के पद पर विराजमान तत्कालीन ब्रह्मा "कपिल" नामक मनुष्य ने इस बेहतरीन दर्शन की खोज की जिसके अनुसार...
प्रकृति से महत तत्व(basic particle of universe) बना
महत्तत्व से अहंकार (individual consciousness)
अहंकार से पञ्च महाभूत
1. आकाश(space time)> 2. वायु(hydrogen)> 3. अग्नि(nuclear process of stars through hydrogen collapse) 4. जल (water is generated through electricity) 5. पृथ्वी (carbon turned from burning water)
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फिर इन महाभूतो के गुण (शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गंध)
फिर ज्ञानेन्द्रिया और फिर कर्मेन्द्रिया
टोटल 23 तत्व हुए... 24वा तत्व मन माना गया और 25वा तत्व "परमात्मा"
यही सांख्य दर्शन का जूस है !!!
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और ये दर्शन इतना लोकप्रिय हुआ कि... हर पुराण में सृष्टि विषयक वर्णन में इस दर्शन का वर्णन किया गया है
जिसके प्रवर्तक ब्रह्मा अर्थात "कपिल ऋषि" थे
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जिस इतिहास को हम सृष्टि वर्णन समझते है वो वास्तव में हमारे पूर्वजो के वंश वर्णन मात्र है... जिन्हें पुराणों में सांख्य दर्शन द्वारा सृष्टि उत्पत्ति वर्णन के बाद बताया जाता है
पुराणों में जो वशिष्ठ, अत्रि, मरीचि,पुलस्त्य,पुलह, क्रतु आदि ऋषियों से सृष्टि वर्णन शुरू हुआ है उसका कालखंड लगभग 9000 वर्ष पुराना है
पर आर्यों का आस्तित्व 9000 वर्ष से बहुत पहले भी था... ऋग्वेद के ज्यादातर मन्त्रो की रचना 8-9000 वर्ष के अंदर ही हुई है पर कुछ मन्त्र स्पष्ट तौर पर 14000-15000 साल पुराने है और 2 मंत्रो का भोगोलिक वर्णन तो कम से कम उन मंत्रो का रचना काल 25000-30000 वर्ष पुराना सिद्ध करता है
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वास्तव में... कालांतर में खेती और नगरीकरण की शुरुआत के बाद देव जाति के मुखिया इंद्र अथवा उनके भाई विष्णु ने इतिहास क्रम बद्ध करना शुरू किया तब संभव है की लिखित इतिहास की परम्परा ना होने के कारण 300-400 वर्ष पूर्व हुए वशिष्ठ आदि ऋषियों के पूर्वजो का उन्हें ज्ञान नहीं था इसलिए लफड़ेबाजी से बचने के लिए उन्होंने इन ऋषियों को ही डायरेक्ट ब्रह्मा (मूल तत्व) से पैदा दिखा दिया
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पुराणों में सृष्टि की उत्पत्ति के कारण रूप में वर्णित ब्रह्मा निराकार ब्रह्माण्ड का मूल तत्व है
पर... साथ ही साथ इतिहास के सफ़र की घटनाओं में ब्रह्मा कबीले के मुखिया "ब्रह्मा" की उपस्थिति और संवाद... उस भ्रम को जन्म देते है... जिसके आधार पर पुराणों को दिव्यता प्रदान करने के लिए "सृष्टि रचियता के सशरीर होने की" भ्रामक कथाओं की उत्पत्ति हुई
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खैर सांख्य दर्शन से ही उस कबीले में जिज्ञासा और वैज्ञानिक सफ़र पर कोई अंकुश नहीं लगा
कुछ ऐसे मनुष्य भी थे जो जीव उत्पत्ति की खोज को नए आयाम देने में जुटे थे
जिनमे से एक थे
"नारायण"
अर्थात ब्रह्मा कबीले से निकली शाखा... एक पुरातन कबीले "धर्म" के सरदार धर्म और उनकी पत्नी रूचि के पुत्र...
जिन्होंने ये सिद्धांत प्रतिपादित किया कि...
प्रथम जीव की उत्पत्ति... "जल में हुई है"
1st micro organism was evolved in water... sea is a big meta bolism itself !!!
(Which is scientifically true!!!!)

और उनके इस सिद्धांत अथवा जीव के जल में उत्पन्न होने के कारण का नामकरण उनके नाम पर कर दिया गया
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बहरहाल इस यात्रा में एक मील का पत्थर आना बाकी था
आर्यों से अलग..... एक स्वतंत्र गणराज्य अथवा कबीला और विकसित हो रहा था जिसने बाद में देव जाति से गठजोड़ कर तत्कालीन समाज में वर्ण व्यवस्था बनने के बाद "दंडनीति" अथवा आचार संहिता का प्रतिपादन किया... सभी लोगो के कार्य सुनिश्चित किये
और उल्लंघन करने पर "न्यायपालिका" की तरह कार्य कर.... दंड अथवा "संहार" की संस्था के नाम से प्रसिद्द हुआ
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इस कबीले का नाम था
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"रूद्र कबीला"
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"Everything Is Vibration".... ब्रह्माण्ड के मॉडल की इस सबसे सटीक व्याख्या की खोज करने वाले... रूद्र गणराज्य के मुखिया थे
जिनका नाम था...
...देवो के देव...
.
".......महादेव......."

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