Wednesday 9 March 2016

मुल्तानी मिट्टी (Multani soil)

हमारे शरीर के पांच तत्वों में एक है मिटटी. मुल्तानी मिटटी प्रयोग के लिए श्रेष्ठ मानी जाती है.यह पाकिस्तान के इलाके मुल्तान में बहुतायत से पायी जाती है. यह हलके पीले रंग की एकदम चिकनी होती है और ढेले के रूप में मिलती है. इसमें सिलिका कम और लाइम स्टोन ज्यादा रहता है. उत्तर भारत में तो वाकई में यह सस्ते में आसानी से मिल जाती है. अयूर आदि कंपनिया इसे पैकेट बनाकर बेचती हैं. अगर इसे कूट कर हल्दी के साथ मिलकर प्रयोग किया जाए तो झाइयां व् मुहांसे दूर होते हैं और त्वचा कांतिमय बन जाती है.
- रोज रोज साबुन लगाने से शरीर के मित्र जीवाणु नष्ट हो जाते है ,साथ ही देह की कुदरती मानुष गंध -फेरोमोंन का भी सफाया हो जाता है ; जो लोगों में परस्पर जैव रासायनिक संचार का एक बहुत ही महत्वपूर्ण जरिया होता है . मनुष्य के पारस्परिक व्यवहार ,आक्रामकता ,प्रेम सबंध आदि के निर्धारण /नियमन में फेरोमोंन की बड़ी भूमिका है . इसलिए कुदरती मुल्तानी मिटटी से स्नान करें, जो मित्र कीटाणु और शरीर की गंध दोनों बचाती है.
- गर्मियों में होने वाली घमौरियों के उपचार में मुल्तानी मिट्टी अचूक औषधि है।
- शरीर पर इसका पतला-पतला लेप खून की गर्मी को कम करता है। तेज बुखार में तापमान तुरंत नीचे लाने के लिये सारे शरीर पर इसका मोटा-मोटा लेप करना चाहिए।
- अगर आप महंगे-महंगे ब्यूटी प्रोडक्ट, शैम्पू, ऑलिव ऑयल का इस्तेमाल करते हुए थक चुकी हैं, फिर भी आपको कोई फ़ायदा नहीं हुआ है तो एक बार मुल्तानी मिट्टी ज़रूर इस्तेमाल करके देखें।
- ये नेचुरल कंडीशनर भी है और ब्लीच भी। ये सौन्दर्य निखारने का सबसे सस्ता और आयुर्वेदिक नुस्खा है।
- मुल्तानी मिट्टी सभी फेस पैक का बेस होती है। चेहरे पर मुल्तानी मिट्टी का लेप लगाने से रंगत निखरती है।
- बालों में लगाने से वे घने, मुलायम और काले हो जाते हैं। - मुहांसों की समस्या से परेशान लोगों के लिए तो मुल्तानी मिट्टी सबसे कारगर इलाज है, क्योंकि मुल्तानी मिट्टी चेहरे का तेल सोख लेती है, जिससे मुहांसे सूख जाते हैं।

- मुंहासों के दाग़ घटाने लिए मुल्तानी मिट्टी में नीम की पत्तियों को पीसकर पेस्ट बना लें और चेहरे के दाग-धब्बों पर लगाएं। 15 दिनों में ही असर दिखेगा।
- धूप में झुलसी त्वचा को ठीक करने के लिए मुल्तानी मिट्टी को गुलाब जल या टमाटर के रस में मिला कर लगाएं।
- मुल्तानी मिट्टी में, सूखे संतरे के छिलकों का पाउडर, जई का आटा मिलाकर चेहरे और गर्दन पर लगाएं। इस पैक को रोज़ लगाने से रोम छिद्र साफ होते हैं और मुंहासे नहीं होते।
- मुल्तानी मिटटी को खट्टे छाछ में घोल कर उससे बाल धोने से रूखापन गायब हो जाएगा और बालों में चमक आ जायेगी.
- 100 ग्राम मुल्तानी मिट्टी को एक कटोरे पानी में भिगो दें। दो घन्टे बाद जब मुल्तानी मिट्टी पूरी तरह घुल जाये तो इस घोल को सूखे बालों में लगा कर हल्के हाथ से बालों को रगड़े। पाँच मिनट तक ऐसा ही करें।अगर बालों मे ज्यादा गंदगी मौजूद है, तो इस क्रिया को दोबारा फिर करें। हफ्ते में दो बार इस क्रिया को करने से बालों में बहुत ज्यादा निखार आ जाता है। बाल लम्बे, रेशमी और मुलायम हो जाते हैं। इस क्रिया को करने के बाद सिर में हल्केपन के साथ शीतलता का अहसास होता है। ऐसी शीतलता किसी भी शैम्पू में नहीं मिल सकती है।
- रोजाना मुल्‍तानी मिट्टी से बाल धोने पर बाल झडना कम हो जाएंगे।
- धूप में त्वचा की रंगत काली होने पर इसमें सुधार के लिए मुल्तानी मिट्टी का इस्तेमाल एंटी टैनिंग एजेंट के तौर पर करें। मुल्तानी मिट्टी का लेप न सिर्फ त्वचा को राहत पहुंचाता है, बल्कि टैन हुई त्वचा को साफ बनाता है।
- आधा चम्मच संतरे का रस लेकर उसमें 4-5 बूंद नींबू का रस, आधा चम्मच मुल्तानी मिट्टी, आधा चम्मच चंदन पाउडर और कुछ बूंदें गुलाब जल की मिलाकर कर थोड़ी देर के लिए फ्रिज में रख दें। फिर इसे लगा कर 15-20 मिनट तक रखें। इसके बाद पानी से इसे धो दें। यह ऑयली त्वचा का सबसे अच्छा उपाय है।
- तैलीय त्वचा के लिए मुल्तानी मिट्टी में दही और पुदीने की पत्तियों का पाउडर मिला कर उसे आधे घंटे तक रखा रहने दें, फिर अच्छे से मिला कर चेहरे और गर्दन पर लगाएं। सूखने पर हल्के गर्म पानी से धो दें। ये तैलीय त्वचा को चिकनाई रहित रखने का कारगर नुस्खा है।
- अगर आपकी त्वचा ड्राई है तो काजू को रात भर दूध में भिगो दें और सुबह बारीक पीसकर इसमें मुल्तानी मिट्टी और शहद की कुछ बूंदें मिलाकर स्क्रब करें।
- रूखी त्वचा पर मुल्तानी मिट्टी में चन्दन पाउडर या कैलामाइन पाउडर मिला कर लगाएं, इससे चेहरे की नमी बनी रहेगी।
- बडे से बडे फोडे़ पर मिट्टी की पट्टी चढ़ाने से, विद्रावक शक्ति के कारण वह उसे पकाकर निचोड़ देती है एवं घाव भी बहुत जल्दी भर देती है ।
- मिट्टी मे विष को शोषित करने की विलक्षण शक्ति होती है । सांप,बिच्छू, कैंसर तक के जहर को खींचकर(सोखकर) कुछ ही दिनों में ठीक कर देती है

जड़ी-बूटियों के सेवन से आसानी से बढ़ा सकते हैं वजन(You can easily increase the intake of herbal weight)

शरीर को स्वस्थ और तंदुरुस्त रखने के लिए आयुर्वेदिक पद्धति का प्रयोग बहुत पहले से किया जा रहा है। जडी बूटियों में बहुत गुण होता है और शरीर पर इसका साइड इफेक्ट नहीं होता है। कई जडी बूटियां ऐसी हैं जिनके सेवन से भूख बढती है और जिनसे वजन बढता है।

आयुर्वेद की भाषा में जिन लोगों को वात दोष (पेट की बीमारी) होता है उनका स्वास्‍थ्‍य हमेशा खराब रहता है। खान-पान में अनियमितता की वजह से शरीर के अंदर कम कैलोरी जाती है और मेटाबॉलिज्म प्रभावित होता है। मोटापा बढाने के लिए अगर आप जडी बूटियों का इस्तेमाल करना चाहते हैं तो किसी चिकित्सक से परामर्श जरूर ले लीजिए जिससे कि इन जडी-बूटियों का आपके स्वास्‍थ्‍य पर कोई बुरा असर न हो।


वजन बढ़ाने वाली कुछ जड़ी-बूटियां इस प्रकार से हैं:-

किरात (Gentian)

वजन बढाने के लिए यह बहुत ही अच्छी औषधि है। यह खाने में कडवी होती है। इसका सेवन करने से भूख बढती है। इसके अलावा पेट की समस्या जैसे – अपच या अन्य विकार इससे समाप्त होते हैं। किरात का प्रयोग छोटी आंत के एंजाइमों में स्राव, गैस्ट्रिक स्राव और पित्त की समस्या के लिए प्रयोग किया जाता है।
कैमोमाइल

कैमोमाइल का सेवन करने से भूख बढती है। खाने में यह कडवी नहीं होती है। कैमोमाइल का सेवन बहुत पहले से खाने को अच्छी तरह से पचाने के लिए किया जाता था। इसके अलावा कैमोमाइल कैंसर के रोगियों के लिए भी बहुत ही कारगर औषधि है। पतले लोगों के लिए यह औषधि बहुत ही उपयोगी है। इसे खाने से दिमागी चिंता और तनाव भी समाप्त होता है।

अदरक

अदरक खाने में बहुत ही तीखा होता है। अदरक बहुत ही पुरानी और आसानी से मिलने वाली औषधि है। इसका प्रयोग पहले से भी पाचन क्रिया को ठीक रखने के लिए के लिए किया जाता था। सूखे अदरक को गुड के साथ मिलाकर खाने से ठंड और पेट में दर्द जैसी समस्याओं से छुटकारा मिलता है। अदरक खाने से रक्त संचार भी बढता है। अदरक का प्रयोग भूख न लगना, अपच, पेट फूलना और मितली में किया जाता है। ठंड से बचाव के लिए अदरक बहुत ही फायदेमंद है।
च्यवनप्राश

च्यवनप्राश शरीर के लिए बहुत ही फायदेमंद हर्बल टॉनिक है। च्यवनप्राश का प्रयोग सभी उम्र के लोग कर सकते हैं। इसे हर रोज खाने से शरीर को ऊर्जा मिलती है और मेटाबॉलिज्म में सुधार होता है। च्यवनप्राश में कई जडी बूटियों का मिश्रण होता है। दूध के साथ और जूस के साथ इसका सेवन करने से शरीर को प्राकृतिक ताकत मिलती है।
सत्वारी कल्प

यह मोटापा बढाने के लिए बहुत ही फायदेमंद जडी है। इसका सेवन करने से प्रजनन करने वाले अंग और मांसपेशियां मजबूत होती हैं। सत्वारी कल्प आंखों को रोशनी भी बढती है।
अश्वगंधा

यह एक रसायन या टॉनिक है जो रोग-प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत करता है। इसे खाने से भूख बढती है और पाचन क्रिया अच्छी होती है। यह तनाव समाप्त करता है।
वसंत कुसुमाकर रस

यह शरीर के अंगो को मजबूत बनाता है। इससे पाचन क्रिया अच्छी होती है और मोटापा बढता है।
यष्टिमधु

यष्टिमधु खाने से शरीर को पर्याप्त मात्रा में पोषक तत्व मिलते हैं। फलों की कमी वाले पोषक तत्वों को यह पूरा करता है।

हालांकि पाचन क्रिया को सुधारने के लिए जडी बूटियों का सेवन बहुत ही बेहतर उपाय है। लेकिन बेहतर स्वास्‍थ्‍य के लिए उचित खान-पान और प्रत्येक दिन योगा भी बहुत जरूरी है। योगा और उचित खान-पान से वजन बढाने में मदद मिलती है।

रोजाना खाली पेट थोड़ा सा कच्चा लहसुन खाने के जबरदस्त फायदे(The tremendous benefits of eating raw garlic daily on an empty stomach a little bit)

लहसुन सिर्फ खाने का स्वाद ही नहीं बढ़ाता, बल्कि इसे खाने के अनेक हेल्दी फायदे भी हैं। आप सोच भी नहीं सकते कि लहसुन की एक कली कितने रोगों को खत्म कर सकती है। यह कई बीमारियों की रोकथाम और उपचार में प्रभावी है। कुछ भी खाने या पीने से पहले लहसुन खाने से ताकत बढ़ती है। यह एक महत्वपूर्ण प्राकृतिक एंटीबायोटिक की तरह काम करता है। आयुर्वेद में लहसुन को जवान बनाए रखने वाली औषधि माना गया है। साथ ही, यह जोड़ों के दर्द की भी अचूक दवा है। आज हम आपको बताने जा रहे हैं लहसुन खाने से होने वाले ऐसे ही कुछ फायदों के बारे में…..
Benefits of Garlic Daily Eating
1. हाई बीपी से बचाए
कई लोगों का मानना है कि लहसुन खाने से हाइपरटेंशन के लक्षणों से आराम मिलता है। यह न केवल ब्लड सर्कुलेशन को नियमित करता है, बल्कि दिल से संबंधित समस्याओं को भी दूर करता है। साथ ही, लीवर और मूत्राशय को भी सुचारू रूप से काम करने में सहायक होता है।
2. डायरिया दूर करे
पेट से जुड़ी समस्याओं जैसे डायरिया आदि के उपचार में भी लहसुन रामबाण का काम करता है। कुछ लोग तो यह दावा भी करते हैं कि लहसुन तंत्रिकाओं से संबंधित बीमारियों को दूर करने में बहुत लाभकारी होता है, लेकिन केवल तभी जब इसे खाली पेट खाया जाए।
3. भूख बढाए
यह डाइजेस्टिव सिस्टम को ठीक करता है और भूख भी बढ़ाता है। जब भी आपको घबराहट होती है तो पेट में एसिड बनता है। लहसुन इस एसिड को बनने से रोकता है। यह तनाव को कम करने में भी सहायक होता है।
4. वैकल्पिक उपचार
जब डिटॉक्सिफिकेशन की बात आती है तो वैकल्पिक उपचार के रूप में लहसुन बहुत प्रभावी होता है। लहसुन शरीर को सूक्ष्मजीवों और कीड़ों से बचाता है। अनेक तरह की बीमारियों जैसे डाइबिटीज़, ट्युफ्स, डिप्रेशन और कुछ प्रकार के कैंसर की रोकथाम में भी यह सहायक होता है।
5. श्वसन तंत्र को मजबूत बनाएं
लहसुन श्वसन तंत्र के लिए बहुत लाभदायक होता है। यह अस्थमा, निमोनिया, ज़ुकाम, ब्रोंकाइटिस, पुरानी सर्दी, फेफड़ों में जमाव और कफ आदि की रोकथाम व उपचार में बहुत प्रभावशाली होता है।
6. ट्यूबरकुलोसिस में लाभकारी
ट्यूबरकुलोसिस (तपेदिक) में लहसुन पर आधारित इस उपचार को अपनाएं। एक दिन में लहसुन की एक पूरी गांठ खाएं। टी.बी में यह उपाय बहुत असरदार साबित होता है।

आयुर्वेद में ३०० रोगों का सहजन से उपचार (Ayurveda treatment of 300 diseases drumstick)



दक्षिण भारत में साल भर फली देने वाले पेड़ होते है. इसे सांबर में डाला जाता है . वहीँ उत्तर भारत में यह साल में एक बार ही फली देता है. सर्दियां जाने के बाद इसके फूलों की भी सब्जी बना कर खाई जाती है. फिर इसकी नर्म फलियों की सब्जी बनाई जाती है. इसके बाद इसके पेड़ों की छटाई कर दी जाती है.

- आयुर्वेद में ३०० रोगों का सहजन से उपचार बताया गया है। इसकी फली, हरी पत्तियों व सूखी पत्तियों में कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, कैल्शियम, पोटेशियम, आयरन, मैग्नीशियम, विटामिन-ए, सी और बी कॉम्पलैक्स प्रचुर मात्रा में पाया जाता है।
- इसके फूल उदर रोगों व कफ रोगों में, इसकी फली वात व उदरशूल में, पत्ती नेत्ररोग, मोच, शियाटिका,गठिया आदि में उपयोगी है|
- जड़ दमा, जलोधर, पथरी,प्लीहा रोग आदि के लिए उपयोगी है तथा छाल का उपयोग शियाटिका ,गठिया, यकृत आदि रोगों के लिए श्रेयष्कर है|
- सहजन के विभिन्न अंगों के रस को मधुर,वातघ्न,रुचिकारक, वेदनाशक,पाचक आदि गुणों के रूप में जाना जाता है|
- सहजन के छाल में शहद मिलाकर पीने से वात, व कफ रोग शांत हो जाते है| इसकी पत्ती का काढ़ा बनाकर पीने से गठिया,शियाटिका ,पक्षाघात,वायु विकार में शीघ्र लाभ पहुंचता है| शियाटिका के तीव्र वेग में इसकी जड़ का काढ़ा तीव्र गति से चमत्कारी प्रभाव दिखता है,
- मोच इत्यादि आने पर सहजन की पत्ती की लुगदी बनाकर सरसों तेल डालकर आंच पर पकाएं तथा मोच के स्थान पर लगाने से शीघ्र ही लाभ मिलने लगता है |
- सहजन को अस्सी प्रकार के दर्द व 72 प्रकार के वायु विकारों का शमन करने वाला बताया गया है|
- इसकी सब्जी खाने से पुराने गठिया , जोड़ों के दर्द, वायु संचय , वात रोगों में लाभ होता है.
- सहजन के ताज़े पत्तों का रस कान में डालने से दर्द ठीक हो जाता है.
- सहजन की सब्जी खाने से गुर्दे और मूत्राशय की पथरी कटकर निकल जाती है.
- इसकी जड़ की छाल का काढा सेंधा नमक और हिंग डालकर पिने से पित्ताशय की पथरी में लाभ होता है.
- इसके पत्तों का रस बच्चों के पेट के किडें निकालता है और उलटी दस्त भी रोकता है.
- इसका रस सुबह शाम पीने से उच्च रक्तचाप में लाभ होता है.
- इसकी पत्तियों के रस के सेवन से मोटापा धीरे धीरे कम होने लगता है.
- इसकी छाल के काढ़े से कुल्ला करने पर दांतों के कीड़ें नष्ट होते है और दर्द में आराम मिलता है.
- इसके कोमल पत्तों का साग खाने से कब्ज दूर होती है.
- इसकी जड़ का काढे को सेंधा नमक और हिंग के साथ पिने से मिर्गी के दौरों में लाभ होता है.
- इसकी पत्तियों को पीसकर लगाने से घाव और सुजन ठीक होते है.
- सर दर्द में इसके पत्तों को पीसकर गर्म कर सिर में लेप लगाए या इसके बीज घीसकर सूंघे.
- इसमें दूध की तुलना में ४ गुना कैलशियम और दुगना प्रोटीन पाया जाता है।
- सहजन के बीज से पानी को काफी हद तक शुद्ध करके पेयजल के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। इसके बीज को चूर्ण के रूप में पीस कर पानी में मिलाया जाता है। पानी में घुल कर यह एक प्रभावी नेचुरल क्लैरीफिकेशन एजेंट बन जाता है। यह न सिर्फ पानी को बैक्टीरिया रहित बनाता है बल्कि यह पानी की सांद्रता को भी बढ़ाता है जिससे जीवविज्ञान के नजरिए से मानवीय उपभोग के लिए अधिक योग्य बन जाता है।
- कैन्सर व पेट आदि शरीर के आभ्यान्तर में उत्पन्न गांठ, फोड़ा आदि में सहजन की जड़ का अजवाइन, हींग और सौंठ के साथ काढ़ा बनाकर पीने का प्रचलन है। यह भी पाया गया है कि यह काढ़ा साइटिका (पैरों में दर्द), जोड़ो में दर्द, लकवा, दमा, सूजन, पथरी आदि में लाभकारी है।
- सहजन के गोंद को जोड़ों के दर्द और शहद को दमा आदि रोगों में लाभदायक माना जाता है।
- आज भी ग्रामीणों की ऐसी मान्यता है कि सहजन के प्रयोग से विषाणु जनित रोग चेचक के होने का खतरा टल जाता है।
- सहजन में हाई मात्रा में ओलिक एसिड होता है जो कि एक प्रकार का मोनोसैच्युरेटेड फैट है और यह शरीर के लिये अति आवश्यक है।
- सहजन में विटामिन सी की मात्रा बहुत होती है। विटामिन सी शीर के कई रोगों से लड़ता है, खासतौर पर सर्दी जुखाम से। अगर सर्दी की वजह से नाक कान बंद हो चुके हैं तो, आप सहजन को पानी में उबाल कर उस पानी का भाप लें। इससे जकड़न कम होगी।
- इसमें कैल्शियम की मात्रा अधिक होती है जिससे हड्डियां मजबूत बनती है। इसके अलावा इसमें आइरन, मैग्नीशियम और सीलियम होता है।
- इसका जूस गर्भवती को देने की सलाह दी जाती है। इससे डिलवरी में होने वाली समस्या से राहत मिलती है और डिलवरी के बाद भी मां को तकलीफ कम होती है।
- सहजन में विटामिन ए होता है जो कि पुराने समय से ही सौंदर्य के लिये प्रयोग किया आता जा रहा है। इस हरी सब्जी को अक्सर खाने से बुढापा दूर रहता है। इससे आंखों की रौशनी भी अच्छी होती है।
- आप सहजन को सूप के रूप में पी सकते हैं, इससे शरीर का रक्त साफ होता है। पिंपल जैसी समस्याएं तभी सही होंगी जब खून अंदर से साफ होगा।

बवासीर{Hemorrhoids}

* 15 ग्राम काले तिल पिसकर, 10-15 ग्राम मख्खन के साथ मिलाकर सुबह सुबह खा लो । कैसा भी बवासीर हो मिट जाता है ।

* जिनको बवासीर है, शौच वाली जगह से जिनको खून आता है, वे २ नींबू का रस निकालकर, छान लें और एनिमा के साधन से शौच वाली जगह से एनिमा द्वारा नींबू का रस लें और १० मिनट सिकोड़ कर सोये रहें । इतने में वो नींबू गर्मी खींच लेगा और शौच होगा । हफ्ते में ३-४ बार करें.......कैसा भी बवासीर हो.........


नीम के पके हुए फल को छाया में सुखाकर इसके फल का चूर्ण बना लें। 5 ग्राम चूर्ण सुबह जल के साथ खाने से बवासीर रोग ठीक होता है।
लगभग 50 मिलीलीटर नीम का तेल, कच्ची फिटकरी 3 ग्राम, चौकिया सुहागा 3 ग्राम को बारीक पीस लें। शौच के बाद इस लेप को उंगली से गुदा के भीतर तक लगाने से कुछ ही दिनों में बवासीर के मस्से मिट जाते हैं।
नीम के बीज, बकायन की सूखी गिरी, छोटी हरड़, शुद्ध रसौत 50-50 ग्राम, घी में भूनी हींग 30 ग्राम को बारीक पीसकर चूर्ण बनाकर उसमें 50 ग्राम बीज निकली हुई मुनक्का को घोंटकर छोटी-छोटी गोलियां बना लें, 1 से 4 गोली को दिन में 2 बार बकरी के दूध के साथ या ताजे लेने से बवासीर में लाभ मिलता हैं, और खूनी बवासीर में खून का गिरना बन्द हो जाता है।
नीम की गिरी का तेल 2-5 बूंद तक शक्कर (चीनी) के साथ खाने से या कैप्सूल में भर कर निगलने से लाभ मिलता है। इसके सेवन के समय केवल दूध और भात का प्रयोग करें।
नीम के बीज की गिरी, एलुआ और रसौत को बराबर भाग में कूटकर झड़बेरी जैसी गोंलियां बनाकर रोजाना सुबह 1-1 गोली नीम के रस के साथ बवासीर में लेने से आराम मिलता है।
नीम के बीजों की गिरी 100 ग्राम और नीम के पेड़ की छाल 200 ग्राम को पीसकर 1-1 ग्राम की गोलियां बनाकर 4-4 गोली दिन में 4 बार 7 दिन तक खिलाने से तथा नीम के काढ़े से मस्सों को धोने से या नीम के पत्तों की लुगदी को मस्सों पर बांधने से लाभ मिलता है।
100 ग्राम सूखी नीम की निबौली 50 मिलीलीटर तिल के तेल में तलकर पीस लें, बाकी बचे तेल में 6 ग्राम मोम, 1 ग्राम फूला हुआ नीला थोथा मिलाकर मलहम या लेप बनाकर दिन में 2 से 3 बार मस्सों पर लगाने से मस्सें दूर हो जातें हैं।
फिटकरी का फूला 2 ग्राम और सोना गेरू 3 ग्राम, नीम के बीज की गिरी 20 ग्राम में घी या मक्खन मिलाकर या गिरी का तेल मिलाकर घोट लें, इसे मस्सों पर लगाने से दर्द तुरन्त दूर होता हैं और खून का बहना बन्द होता है।
50 ग्राम कपूर, नीम के बीज की गिरी 50 ग्राम को दोनों का तेल निकालकर थोड़ी-सी मात्रा में मस्सों पर लगाने से मस्सें सूखने लगते हैं।
नीम की गिरी, रसौत, कपूर व सोना गेरू को पानी पीसकर लेप करें या इस लेप को एरण्ड के तेल में घोंटकर मलहम (लेप) करने से मस्से सूख जाते हैं।
नीम के पेड़ की 21 पत्तियों को भिगोई हुई मूंग की दाल के साथ पीसकर, बिना मसाला डालें, घी में पकाकर 21 दिन तक खाने से और खाने में छाछ और अधिक भूख लगने पर भात खाने से बवासीर में लाभ हो जाता है। ध्यान रहे कि नमक का सेवन बिल्कुल नहीं करना चाहिए।
नीम के बीजों को तेल में तलकर, उसी में खूब बारीक पीस लें। इसके बाद फुलाया हुआ तूतिया डालकर मस्सों पर लेप करना चाहिए।
पकी नीम की निबौंली के रस में 6 ग्राम गुड़ को मिलाकर रोजाना सुबह सात दिन तक खाने से बवासीर नष्ट हो जाता है।

be carefull

यदि विकास चाहते हैं तो नकारात्मक ऊर्जा देने वाली वस्तुओं से दूर रहें .

कोई भी वस्तु नकारात्मक ऊर्जा निकलती हो तो यह गंभीर वास्तु दोष की श्रेणी में आती है। यदि विकास चाहते हैं तो नकारात्मक ऊर्जा देने वाली वस्तुओं से यथा शक्ति दूर रहना चाहिए -

1- घर के आंगन में सूखे एवं भद्दे दिखने वाले पेड़ जीवन के अंत की ओर इशारा करते हैं। ऐसे पेड़ों या ठूंठ को शीघ्र ही कटवा देना चाहिए।


2- इंटीरियर डेकोरेशन के लिए कुछ ऐसी कलाकृतियों का प्रयोग होता है जो सूखे ठूंठ या नकारात्मक आकृति के होते हैं। ये सभी मृतप्राय: सजावटी वस्तुएं वास्तु शास्त्र में अच्छे नहीं माने जाते हैं अत: इनके प्रयोग से भी बचें।

3- यदि ड्रॉइंगरूम में फूलों को सजाते हैं तो ध्यान दें कि उन्हें प्रतिदिन बदलते रहना जरुरी है। चूंकि जब ये फूल मुरझा जाते हैं तो इनसे नकारात्मक ऊर्जा निकलने लगती है।

4- कभी-कभी बेडरूम की खिड़की से नकारात्मक वस्तुएं दिखाई देती हैं जैसे- सूखा पेड़, फैक्ट्री की चिमनी से निकलता हुआ धुआं आदि। ऐसे दृश्यों से बचने के लिए खिड़कियों पर परदा डाल दें।

5- किसी भी भवन के मुख्य द्वार के पास या बिल्कुल सामने बिजली के ट्रांसफार्मर लगे होते हैं जिनसे चिंगारियां निकलती हैं । ऐसे दृश्य भी नकारात्मक ऊर्जा फैलाते हैं। उसे तुरंत ठीक करवा लें।

6- पुराने भवन के भीतर कमरों की दीवारों पर सीलन पैदा होने से बनी भद्दी आकृतियां भी नकारात्मक ऊर्जा का सूचक होती हैं। ऐसी दीवारों की तुरंत रिपेयरिंग करवा लें।

दमा अस्थमा


दमा अस्थमा में केले का रामबाण प्रयोग।

दमा अस्थमा के तेज़ दौरे में विशेष रूप से तैयार किया गया केला बहुत उपयोगी सिद्ध हो सकता है, आज हम आपको केले को दमे के लिए विशेष रूप से तैयार करना बता रहे हैं। आइये जाने।

1. दमा के तेज़ दौरे के समय पका हुआ एक केला छिलके सहित सेंके। इस सिके हुए केले का छिलका हटाकर केले के टुकड़े करके उन पर १५ कालीमिर्च पीसकर बुरका दें और दमा रोगी को खिलाएं। दमा के तेज़ दौरे में शीघ्र लाभ मिलेगा। केला गरमा गर्म ही खिलाएं, ठंडा होने पर लाभ नहीं करेगा।



2. केले का थोड़ा सा छिलका उसमे चाक़ू से छेद बनाकर चौथाई चम्मच नमक, कालीमिर्च पीसकर भर दें। छेद पर वापिस गूदा लगा दें और वापिस छिलका लगा दीजिये। इसे रात को खुली जगह रखें। रात को चन्द्रमा की चांदनी में रखना अधिक लाभदायक है। प्रात: इस केले को सेंक लें और छीलकर गरमा गर्म ही खाएं। दमा में आराम मिलेगा।
सावधानी।

दमा के रोगियों को केला कम खाना चाहिए और यह ज़रूर ध्यान रखें के कहीं केला खाने से दमा बढ़ तो नहीं रहा। दमा यदि बढ़ता हुआ पाया जाए तो केला नहीं खाना चाहिए। दमे में केले से एलर्जी पायी जाती है।

किडनी को मजबूत बनाने वाले योग

किडनी शरीर के मुख्य अंगों में से एक है। शरीर में किडनी का काम है रक्त में से पानी और बेकार पदार्थों को अलग करना। इसके अलावा शरीर में रसायन पदार्थों का संतुलन, लाल रक्त कोशिकाओं के निर्माण में भी सहायता करता है। इसका एक और कार्य है विटामिन-डी का निर्माण करना, जो शरीर की हड्डियों को स्वस्थ और मजबूत बनाता है

लगातार दूषित पदार्थ खाने, दूषित जल पीने और नेफ्रॉन्स के टूटने से किडनी के रोग होते हैं। इस वजह से किडनी शरीर से व्यर्थ पदार्थो को निकालने में अक्षम हो जाते हैं। किडनी रोग का बहुत समय तक पता नहीं चलता, लेकिन जब भी कमर के पीछे दर्द उत्पन्न हो तो इसकी जांच करा लेनी चाहिए। आइए जानें योग के जरिए किडनी को कैसे मजबूत बनाया जा सकता है।


अंर्धचंद्रासन

इस आसन को करते वक्त शरीर की स्थिति अर्ध चंद्र के समान हो जाती है, इसीलिए इसे अर्ध चंद्रासन कहते है। इस आसन की स्थि‍ति त्रिकोण समान भी बनती है इससे इसे त्रिकोणासन भी कह सकते है, क्योंकि दोनों के करने में कोई खास अंतर नहीं होता। यह आसन खड़े होकर किया जाता है। इससे किडनी से जुड़ी सभी समस्याएं दूर हो जाती हैं।
पश्चिमोत्तनासन

अपने पैर को सामने की ओर सीधी स्ट्रेच करके बैठ जाएं। दोनों पैर आपस में सटे होने चाहिए। पीठ को इस दौरान बिल्कुल सीधी रखें और फिर अपने हाथों से दोनों पैरों के अंगूठे को छूएं। ध्यान रखें कि आपका घुटना न मुड़े और अपने ललाट को नीचे घुटने की ओर झुकाएं। 5 सेकंड तक रुकें और फिर वापस अपनी पोजीशन में लौट आएं। यह पोजीशन किडनी की समस्या के साथ क्रैम्स आदि जैसी समस्याओं से निजात दिलाता है।

उष्ट्रासन

उष्ट्रासन करते समय हमारे शरीर की आकृति कुछ-कुछ ऊँट के समान प्रतीत होती है, इसी कारण इसे उष्ट्रासन कहते हैं। यह आसन वज्रासन में बैठकर किया जाता है। इस आसन से घुटने, ब्लैडर, किडनी, छोटी आँत, लीवर, छाती, लंग्स एवं गर्दन तक का भाग एक साथ प्रभावित होता है, जिससे क‍ि यह अंग निरोगी बने रहते हैं।

सर्पासन

पेट के बल लेट जाएं और दोनों पैरों को मिलाकर रखें। ठुड्डी को जमीन पर रखें। दोनों हाथों को कोहनी से मोड़ें और हथेलियों को सिर के दाएं-बाएं रखें और हाथों को शरीर से सटाकर रखें। आपकी कोहनी जमीन को छूती हुई रहेगी। धीरे-धीरे सांस भरे और कंधे को ऊपर की ओर उठाएं शरीर का भार कोहनी और हाथों पर रहेगा। कोशिश करें कि छाती भी ऊपर की ओर रहे। इस स्थिति में कुछ पल रुकें और सांस को सामान्य कर लें। इस स्थिति में आप दो मिनट तक रुकें। अगर रोक पाना संभव न हो तो पाँच बार इस क्रिया को दोहराएं।

किडनी को स्वस्थ रखने और इसकी समस्याओं को दूर करने के लिए नियमित योगा करना आपके लिए बहुत फायदेमंद हो सकता है।

शक्ति बढ़ाने के लिए निम्बू के 4 अदभुत प्रयोग।{4 wonderful use of lime to increase the power.}


आइये जाने इन प्रयोगो को।

1. सुबह खाली पेट उबलते हुए एक गिलास पानी में एक निम्बू निचोड़ ले और इसको बैठ कर घूँट घूँट कर पिए। इस से आपके अंग अंग में नयी शक्ति का संचार होगा, रोग दूर होते हैं, नेत्रज्योति तेज़ हो जाती हैं, मानसिक दुर्बलता, थकावट दूर होती हैं, सर दर्द, पुट्ठों में बार बार झटके लगने बंद हो जाते हैं। अगर आप अधिक काम भी करते हैं तो भी आपको थकावट नहीं होगी। आपके शरीर से सारी गंदगी धीरे धीरे बाहर निकल जायेगी, शरीर ज़हर मुक्त हो जायेगा। और इसके नियमित सेवन करने से शरीर स्फूर्तिवान होगा। ध्यान रखे स्वाद के लिए नमक या शक्कर ना मिलाये। सिर्फ शुद्ध शहद मिला सकते हैं।

2. 40 ग्राम किशमिश, 6 मुनक्के, 6 बादाम, 6 पिस्ते रात को आधा किलो पानी में कांच के बर्तन में भिगो कर रख दे। प्रात : पीसकर, छानकर, एक चम्मच शहद मिलाकर और एक निम्बू निचोड़ कर भूखे पेट पिए। इस से मानसिक व् शारीरिक कमज़ोरी और थकान दूर होती हैं। यह इन्द्रियों की शक्ति के लिए भी लाभदायक हैं।

3. एक कांच के गिलास में तीन हिस्से अजवायन भर दे। अब इस गिलास को निम्बू के रस से भर कर इसका मुंह कपडे से ढक कर धुप में रख दीजिये। जब निम्बू का रस सूख जाए तो पुन: इसे निम्बू के रस से भर दे और धुप में ही पड़ा रहने दे। इस प्रकार सात बार निम्बू का रस डालकर अजवायन सुखाएं। इस सुखाई हुयी अजवायन को अंत में कांच की शीशी में भर कर रखे ले। अब इसका एक चौथाई (1/4) चम्मच एक बार नित्य पानी के साथ फांक ले। इस से शरीर में बल बढ़ता हैं तथा यौन शक्ति बढ़ती हैं। इसे सेवन करते समय अर्थात सेवन काल में घी दूध भी सेवन करते रहे।

4. एक कप उबला हुआ पानी, एक चुटकी सेंधा नमक, एक चुटकी काला नमक, एक चम्मच देसी चीनी, दस बूँद निम्बू का रस, भूना पीसा हुआ एक चौथाई चम्मच जीरा सबको मिलाकर पिए। यह पेय बहुत स्वादिष्ट, पाचन शक्ति बढ़ाने वाला, शक्ति बढ़ाने वाला हैं। इसको चाय की तरह और चाय के स्थान पर पिए और चाय बंद कर दे। ये मिलायी जाने वाली चीजे स्वाद के अनुसार और परहेज के अनुसार घटा बढ़ा सकते हैं। यह बीमारी की अवस्था में भी ले सकते हैं। ये दिन में तीन बार लीजिये।

रामबाण चुकंदर।(Beetroot.)

कैंसर, हृदय, अनीमिया जैसे अनेक रोगों में रामबाण चुकंदर।

चुकंदर में एंटी ऑक्सीडेंट, कैल्शियम, मिनरल, मैग्नीशियम, आयरन, सोडियम, पोटेशियम, फॉस्फोरस, क्लोरीन, नाइट्रेट, आयोडीन, और अन्य महत्वपूर्ण विटामिन की भरपूर मात्रा होती है। चुकंदर अनेक रोगों में लाभदायक है। चुकंदर में आयरन होने से यह रक्त बढ़ाता है, कामेच्छा बढ़ाता है, स्त्रियों का दूध बढ़ाता है, जोड़ों का दर्द दूर करता है, लिवर को शक्ति देता है, मस्तिष्क को ताज़ा रखता है, यह बलगम निकाल कर श्वांस नली को साफ़ रखता है। यह गुणों में मीठा, विरेचक, मूत्रल, पुष्टिकर, और मानसिक विकृतियों को ठीक करता है। आइये जानते हैं चुकंदर के सेवन के फायदे।

उच्च रक्तचाप में चुकंदर।

उच्च रक्तचाप में चुकंदर के सेवन से बहुत लाभ मिलता है। चुकंदर में नाइट्रेट बहुत अधिक मात्रा में पाया जाता है, नाइट्रेट शरीर में जाने पर नाइट्रिक ऑक्साइड में परिवर्तित हो जाता है, नाइट्रिक ऑक्साइड संकुचित हुयी रक्त वाहिकाओं को खोलने में बहुत उपयोगी है।

गाँठ ट्यूमर और कैंसर में चुकंदर।

चुकंदर में पाये जाने वाले ‘बिटिन’ तत्व के कारण ये गाँठ और कैंसर जैसी बीमारी के होने से बचाता है। ट्यूमर के रोगी को प्रारम्भ के दो दिन मौसम के फल व् सब्जियों के रस पर रखें। तीसरे दिन प्रात: एक गिलास पानी में एक निम्बू का रस व् चार चम्मच शहद मिलाकर पिलायें। दिन में अंगूर का रस एक एक कप चार बार और मौसमी का रस एक दो बार दें। रोगी आराम करता रहे। शारीरिक श्रम नहीं करें। रोगी को चौथे दिन से लगातार कुछ दिन तक आधा गिलास गाजर का रस आधा गिलास चुकंदर का रस मिलाकर चार बार दिया जाए। सामान्य हल्का अंकुरित अन्न दें। कुछ ही दिनों में गाँठ पिघल जाएगी।

गुर्दे की पत्थरी और गुर्दे के रोगों में चुकंदर।

चुकंदर का रस या चुकंदर को पानी में उबालकर उसका सूप पीने से पथरी गलकर निकल जाती है। मात्रा ३० ग्राम दिन में ४ बार। यह कुछ सप्ताह लें। इससे गुर्दे की सूजन भी दूर होती है। यह पेशाब ज़्यादा लाता है। यह गुर्दे के रोगों में लाभदायक है

कामेच्छा बढ़ाने के लिए चुकंदर।

रोमन सभ्यता में चुकंदर को अच्छी सेक्स लाइफ के लिए बहुत जरूरी माना गया है। इसके सेवन से रक्त संचार ठीक रहता है और सेक्स हार्मोन का निर्माण अच्छी तरह होता है जिससे सेक्स लाइफ में गर्मजोशी बरकरार रहती है।

गर्भवती महिलाओ के लिए चुकंदर।

इसमें पाया जाने वाला फॉलिक एसिड गर्भवती महिला के लिए बहुत अच्छा होता है। यह पाचन तंत्र को भी सही रखता है। यह आंखों के लिए भी लाभकारी है। चुकंदर का जूस शरीर में खून बनाने का काम करता है।

स्त्रियों के रोगों में चुकंदर।

मासिक धर्म, श्वेत प्रदर, कष्टप्रद मासिक, बंद हुए मासिक, जननांगों के रोगों में गाजर का रस पौन गिलास में चौथाई गिलास चुकंदर का रस मिलाकर नित्य दो बार पिलायें। इससे प्राय: स्त्रियों सम्बन्धी रोग ठीक हो जाते है।

महिलाओ में दूध वृद्धि।

नियमित चुकंदर खाने से महिलाओ का दूध बढ़ता है। इसको कच्चा या इसका रस बहुत लाभदायक है।

एक्सरसाइज करने वालों के लिए चुकंदर।

चुकंदर के सेवन से शरीर में एनर्जी बढ़ती है और थकान दूर होती है। जो लोग जिम जाते है या बढ़ती उम्र के बच्चों के लिए जो एक्सरसाइज करते हैं, उनके लिए ये बहुत उपयोगी है।

खून की कमी में चुकंदर।

चुकंदर में आयरन की अधिकता होने के कारण इसका नियमित सेवन करने से ये खून की कमी को पूरा करने में बहुत लाभदायक है।

त्वचा की ख़ूबसूरती के लिए चुकंदर।

चुकंदर में भरपूर मात्रा में पोषक तत्व होते हैं, इसके सेवन से त्वचा पर लाल टमाटर जैसा निखार आ जाता है, जिनकी बॉडी पर पानी के फोड़े, जलन और मुहांसे हो गए हों उनके लिए ये काफी उपयोगी होता है। यह सनबर्न से झुलसी त्वचा में लाभ पहुंचाता है।

चेहरे का सौंदर्य बढ़ने के लिए चुकंदर।

कील, मुंहासे, झाइयां, दाग धब्बे चेहरे पर हों तो चुकंदर, टमाटर का रस आधा आधा कप तथा एक गिलास गाजर का रस मिलाकर पीने से बहुत लाभ होता है। इसमें दो चम्मच कच्ची हल्दी का रस या एक चम्मच पिसी हल्दी मिलाकर सुबह शाम १५ से ३० दिन लगातार पीने से चेहरे पर स्वर्ण आभा आती है।

नाखूनों का सौंदर्य बढ़ने के लिए चुकंदर।

नित्य सौ ग्राम चुकंदर का रस पीने या १५० ग्राम चुकंदर खाने से नाखून का फटना, उखड़ना, बदरंग होना, मोटे होना ठीक हो जाता है।

बवासीर के मस्सो के लिए चुकंदर।

नित्य चुकंदर खाने से बवासीर के मस्से झड़ जाते हैं।

पाचन संस्थान के रोगों में चुकंदर।

दो चम्मच चुकंदर के रस में एक चम्मच निम्बू का रस मिलाकर नित्य पियें। इससे उल्टी, दस्त, हैजा, पेचिश, लिवर इन्फेक्शन और टी बी में लाभ होता है।

गैस्ट्रिक अल्सर में चुकंदर।

दो चम्मच चुकंदर के रस में एक चम्मच शहद मिलाकर नित्य कुछ दिन पीने से लाभ होता है।

हाइपो गलाईसीमिया (रक्त में शुगर की कमी)

चुकंदर खाने से ये रोग दूर हो जाता है।

फरास जुएं होने पर चुकंदर।

चुकंदर के पत्तों को पानी में उबालकर सिर धोने से फरास दूर होती है और जुएं भी मर जाती हैं।

दाद।

चुकंदर के पत्तों का रस शहद में मिलाकर दाद पर लगाने से दाद ठीक हो जाता है।

बाल गिरना।

चुकंदर के पत्ते मेहँदी के साथ पीसकर सिर पर लेप करने से बाल गिरना बंद हो जाते है और तेज़ी से उगते हैं तथा बढ़ते भी हैं। चुकंदर के पत्तों को पीसकर उसमे थोड़ी सी हल्दी मिलाकर सिर में लेप करने से बाल उग आते हैं।

यकृत वृद्धि (हेपाटोमेगेली) के अचूक उपचार(Liver enlargement (Hepatomegeli) infallible treatment)

यकृत का बढना यकृत में विकार पैदा हो जाने की ओर संकेत करता है। इसी को हेपटोमेगेली कहते हैं। बढे हुए और शोथ युक्त लिवर के कोइ विशेष लक्षण नहीं होते हैं। यह रोग लिवर के केन्सर,खून की खराबी,अधिक शराब सेवन, और पीलिया के कारण उत्पन्न हो सकता है। यहां मैं यकृत वृद्धि रोग के कुछ आसान उपचार प्रस्तुत कर रहा हूं जिनके समुचित प्रयोग से इस रोग को ठीक किया जा सकता है।


१) अजवाईन ३ ग्राम और आधा ग्राम नमक भोजन के बाद पानी के साथ लेने से लिवर-तिल्ली के सभी रोग ठीक होते हैं।

२) .दो सन्तरे का रस खाली पेट एक सप्ताह तक लेने से लिवर सुरक्षित रहता है।

३) एक लम्बा बेंगन प्रतिदिन कच्चा खाने से लिवर के रोग ठीक होते हैं।

४) दिन भर में ३ से ४ लिटर पानी पीने की आदत डालें।

५) एक पपीता रोज सुबह खाली पेट खावें। एक माह तक लेने से लाभ होगा। पपीता खाने के बाद दो घन्टे तक कुछ न खावें।

६) कडवी सहजन की फ़ली,करेला, गाजर,पालक और हरी सब्जीयां प्रचुर मात्रा में भोजन में शामिल करें।

७) शराब पीना लिवर रोगी के लिये मौत को बुलावा देने के समान है। शराब हर हालत में त्याग दें।

८) चाय पीना हानिकारक है। भेंस के दूध की जगह गाय या बकरी का दूध प्रयोग करें।

१०) भोजन कम मात्रा में लें। तली-गली,मसालेदार चीजों से परहेज करें।

११) मुलहठी में लिवर को ठीक रखने के गुण मौजूद होते हैं। पान खाने वाले मुलहटी पान में शामिल करें।

१२) आयुर्वेदिक मत से कुमारी आसव इस रोग की महौषधि है

हाई यूरिक एसिड(High uric acid)

हाई यूरिक एसिड अर्थात गाउट में ये खाएं और ये नहीं
गाऊट आर्थाराइटिक की ही एक स्थिति होती है, जो जोड़ों की सूजन की वजह से होती है। यह जोड़ों, पैर के अंगूठों, एड़ी, टखने, घुटने या फिर हाथ के अंगूठे को भी प्रभावित करता है। गाऊट रक्त में यूरिक एसिड नामक रसायन की अत्यधिक मात्रा के कारण होता है।
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हाई यूरिक एसिड में आहार की भूमिका
गाऊट आर्थाराइटिक की ही एक स्थिति होती है, जो जोड़ों की सूजन की वजह से होती है। यह जोड़ों, पैर के अंगूठों, एड़ी, टखने, घुटने या फिर हाथ के अंगूठे को भी प्रभावित करता है। गाऊट रक्त में यूरिक एसिड नामक रसायन की अत्यधिक मात्रा के कारण होता है। आमतौर पर तनाव, शराब का अत्यधिक सेवन, लम्बे समय तक भोजन न करना, कसरत का अभाव, डीहाइड्रेशन तथा कुछ विशेष खाद्य जैसे रैड मीट, सी फूड इत्यादि व जीवनशैली तथा कुछ दवाओं का सेवन गाऊट को बढ़ा सकता है। इसलिये इस समस्या में क्या खाना चाहिये और क्या नहीं, इसका विशेष ध्यान रखने की ज़रूरत होती है।
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कोल्ड प्रेस्ड जैतून का तेल
खाना पकाने के लिए बटर या वेजटेबल आयल के स्थान पर कोल्ड प्रेस्ड जैतून के तेल का इस्तेमाल करें। जैतून के तेल के इस्तेमाल से शरीर में अतिरिक्त यूरिक एसिड नहीं बनता है और यह दिल के लिये भी बेहद लाभदायक होता है।
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विटामिन सी
भरपूर मात्रा में विटामिन सी लें। शरीर में यूरिक एसिड की मात्रा को कम करने के लिए हर दिन कम से कम 500 मिलीग्राम विटामन सी लें। इसके सेवन से एक से दो महीने के भीतर ही यूरिक एसिड का स्तर काफी कम हो जाता है।
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अजवाइन के बीज का अर्क
गठिया और यूरिक एसिड की समस्या का यह एक जानामाना प्राकृतिक उपचार है। जैसा कि अजवाइन में दर्द को कम करने, एंटीआक्सीडेंट और डाइयुरेटिक गुण पाया जाता है, ये एक एंटीसेप्टिक भी होता है। कई दुर्भल मामलों में नींद न आना, व्याग्रता और नर्वस ब्रेकडाउन आदि समस्याओं के उपचार में भी इसका उपयोग किया जाता है।
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एंटीआक्सीडेंट युक्त भोजन
लाल शिमला मिर्च, टमाटर, ब्लूबेरी, ब्रोकली और अंगूर आदि एंटीआक्सीडेंट विटामिन का प्रचुर स्रोत होते है। एंटीआक्सीडेंट विटामिन फ्री रेडिकल्स अणुओं को शरीर के अंग और मसल टिशू पर हमला करने से रोकते हैं, जिससे यूरिक एसिड का स्तर कम होने लगता है।
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सेब का सिरका
माना जाता है कि सेब का सिरका रक्त का पीएच वैल्यू बढ़ाकर हाई यूरिक एसिड लेवल कम करता है। किंतु सेब का सिरका कच्चा, बिना पानी मिला और बिना पाश्चरीकृत ही होना चाहिए। आप इसे किसी भी हेल्थ फूड स्टोर से आसानी से प्राप्त कर सकते हैं।
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बेकरी के उत्पाद से बचें
सैचुरेटेड फैट और ट्रांस फैट की अधिकता वाले खाद्य जैसे, केक, पेस्ट्री, कुकी आदि के ज्यादा सेवन से बचें। अगर शरीर में यूरिक एसिड हाई हो, तो बेकरी प्रोडक्‍ट का सेवन नहीं करना चाहिये। जैसा कि इनमें सेच्‍युरेटेड फैट काफी होता है, जिससे शरीर में यूरिक एसिड का स्तर बढ़ जाता है।
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एल्‍कोहल से दूर रहें
शरीर में एल्‍कोहल जानें पर भी यूरिक एसिड हाई हो जाता है। अगर लगातार एल्‍कोहल का सेवन किया जाए, तो शरीर में यूरिक एसिड की मात्रा काफी बढ़ जाती है और कई बार तो गाउट अटैक आ जाता है। इसलिये एल्‍कोहल से तो बिल्कुल दूर हा रहें।
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डिब्‍बा बंद भोजन
यूरिक एसिड बढ़ने की शिकायत होने पर डिब्‍बा बंद भोजन का सेवन कतई न करें। डिब्‍बा बंद भोजन का सेवन न करने से शरीर में यूरिक एसिड को बूस्‍टअप करने वाले तत्‍व नहीं मिलेगें और वह नियंत्रण में रहेगा।
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मछली और मीट
हाई यूरिक एसिड की शिकायत होने पर मछली और मीट आदि के सेवन से भी बचें। खासतौर पर कुछ विशेष प्रकार की मछली जैसे, सारडिनेस और मैकीरिल आदि तो कतई न खाएं। इनके सेवन से यूरिक एसिड बढ़ने की शिकायत हो सकती है।

जौ {Barley}



हमारे ऋषियों-मुनियों का प्रमुख आहार जौ ही था। वेदों द्वारा यज्ञ की आहुति के रूप में जौ को स्वीकारा गया है। जौ को भूनकर, पीसकर, उस आटे में थोड़ा-सा नमक और पानी मिलाने पर सत्तू बनता है। कुछ लोग सत्तू में नमक के स्थान पर गुड़ डालते हैं व सत्तू में घी और शक्कर मिलाकर भी खाया जाता है। गेंहू , जौ और चने को बराबर मात्रा में पीसकर आटा बनाने से मोटापा कम होता है और ये बहुत पौष्टिक भी होता है .राजस्थान
में भीषण गर्मी से निजात पाने के लिए सुबह सुबह जौ की राबड़ी का सेवन किया जाता है .

अगर आपको ब्लड प्रेशर की शिकायत है और आपका पारा तुरंत चढ़ता है तो फिर जौ को दवा की तरह खाएँ। हाल ही में हुए एक अध्ययन में दावा किया गया है कि जौ से ब्लड प्रेशर कंट्रोल होता है।कच्चा या पकाया हुआ जौ नहीं बल्कि पके हुए जौ का छिलका ब्लड प्रेशर से बहुत ही कारगर तरीके से लड़ता है।

यह नाइट्रिक ऑक्साइड और हाइड्रोजन सल्फाइड जैसे रसायनिक पदार्थे के निर्माण को बढ़ा देता है और उनसे खून की नसें तनाव मुक्त हो जाती हैं।

उत्तर प्रदेश के फैजाबाद स्थित नरेंद्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय ने इस नयी किस्म नरेंद्र जौ अथवा उपासना को विकसित किया है और हाल ही में उत्तर भारत के किसानों के लिए जारी किया गया है। नरेंद्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक डॉक्टर सियाराम विश्वकर्मा ने बताया कि इसकी सबसे बड़ी खासियत है कि यह छिलका रहित है। उपासना में बीटाग्लूकोन ग्लूटेन की कम मात्रा सुपाच्य रेशो एसिटिल कोलाइन (कार्बोहाइड्रेट पदार्थ) पाया जाता है।

इसमें फोलिक विटामिन भी पाया जाता है। यही कारण है कि इसके सेवन से रक्तचाप मधुमेह पेट एवं मूष संबंधी बीमारी गुर्दे की पथरी याद्दाश्त की समस्या आदि से निजात दिलाता है।

इसमें एंटी कोलेस्ट्रॉल तत्व भी पाया जाता है।

यह उत्तर भारत के मैदानी इलाकों उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश, बिहार, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर और गुजरात की एक महत्वपूर्ण रबी फसल है।

इसका उपयोग औषधि के रूप मे किया जा सकता है । जौ के निम्न औषधीय गुण है :

- कंठ माला- जौ के आटे में धनिये की हरी पत्तियों का रस मिलाकर रोगी स्थान पर लगाने से कंठ माला ठीक हो जाती है।
- मधुमेह (डायबटीज)- छिलका रहित जौ को भून पीसकर शहद व जल के साथ सत्तू बनाकर खायें अथवा दूध व घी के साथ दलिया का सेवन पथ्यपूर्वक कुछ दिनों तक लगातार करते करते रहने से मधूमेह की व्याधि से छूटकारा पाया जा सकता है।
- जलन- गर्मी के कारण शरीर में जलन हो रही हो, आग सी निकलती हो तो जौ का सत्तू खाने चाहिये। यह गर्मी को शान्त करके ठंडक पहूचाता है और शरीर को शक्ति प्रदान करता है।
- मूत्रावरोध- जौ का दलिया दूध के साथ सेवन करने से मूत्राशय सम्बन्धि अनेक विकार समाप्त हो जाते है।
- गले की सूजन- थोड़ा सा जौ कूट कर पानी में भिगो दें। कुछ समय के बाद पानी निथर जाने पर उसे गरम करके उसके कूल्ले करे। इससे शीघ्र ही गले की सूजन दूर हो जायेगी।
- ज्वर- अधपके या कच्चे जौ (खेत में पूर्णतः न पके ) को कूटकर दूध में पकाकर उसमें जौ का सत्तू मिश्री, घी शहद तथा थोड़ा सा दूघ और मिलाकर पीने से ज्वर की गर्मी शांत हो जाती है।
- मस्तिष्क का प्रहार- जौ का आटा पानी में घोलकर मस्तक पर लेप करने से मस्तिष्क की पित्त के कारण हूई पीड़ा शांत हो जाती है।
- अतिसार- जौ तथा मूग का सूप लेते रहने से आंतों की गर्मी शांत हो जाती है। यह सूप लघू, पाचक एंव संग्राही होने से उरःक्षत में होने वाले अतिसार (पतले दस्त) या राजयक्ष्मा (टी. बी.) में हितकर होता है।
- मोटापा बढ़ाने के लिये- जौ को पानी भीगोकर, कूटकर, छिलका रहित करके उसे दूध में खीर की भांति पकाकर सेवन करने से शरीर पर्यात हूष्ट पुष्ट और मोटा हो जाता है।
- धातु-पुष्टिकर योग- छिलके रहित जौ, गेहू और उड़द समान मात्रा में लेकर महीन पीस लें। इस चूर्ण में चार गुना गाय का दूध लेकर उसमे इस लुगदी को डालकर धीमी अग्नि पर पकायें। गाढ़ा हो जाने पर देशी घी डालकर भून लें। तत्पश्चात् चीनी मिलाकर लड्डू या चीनी की चाशनी मिलाकर पाक जमा लें। मात्रा 10 से 50 ग्राम। यह पाक चीनी व पीतल-चूर्ण मिलाकर गरम गाय के दूध के साथ प्रातःकाल कुछ दिनों तक नियमित लेने से धातु सम्बन्धी अनेक दोष समाप्त हो जाते हैं ।
- पथरी- जौ का पानी पीने से पथरी निकल जायेगी। पथरी के रोगी जौ से बने पदार्थ लें।
- कर्ण शोध व पित्त- पित्त की सूजन अथवा कान की सूजन होने पर जौ के आटे में ईसबगोल की भूसी व सिरका मिलाकर लेप करना लाभप्रद रहता है।
- आग से जलना- तिल के तेल में जौ के दानों को भूनकर जला लें। तत्पश्चात् पीसकर जलने से उत्पन्न हुए घाव या छालों पर इसे लगायें, आराम हो जायेगा। अथवा जौ के दाने अग्नि में जलाकर पीस लें। वह भस्म तिल के तेल में मिलाकर रोगी स्थान पर लगानी चाहियें।
- जौ की राख को पानी में खूब उबालने से यवक्षार बनता है जो किडनी को ठीक कर देता है |

हिन्दू धर्म के देवता और उनके वाहन(Hindu gods and their vehicle)

हिंदू धर्म में विभिन्न देवताओं का स्वरूप अलग-अलग बताया गया है। हर देवता का स्वरूप उनके आचरण व व्यवहार के अनुरूप ही हमारे धर्म ग्रंथों में वर्णित है। स्वरूप के साथ ही देवताओं के वाहनों में विभिन्नता देखने को मिलती है। हर देवता प्रकृति के एक विशिष्ट गुण का प्रतिनिधित्व करता है ,तदनुरूप ही उनके स्वरुप की परिकल्पना और प्रकृति का विवरण होता है | धर्म ग्रंथों के अनुसार अधिकांश देवताओं के वाहन पशु ही होते हैं। यह धार्मिक अर्थों में कुछ और परिभाषित करते हैं ,सामाजिक परिभाषा कुछ और होती है तथा तात्विक अर्थ कुछ और होता है |यह वाहन देवता के अनुसार विशिष्ट गुण -स्वभाव और कर्म प्रदर्शित करते हैं |
भगवान श्रीगणेश का वाहन मूषक
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भगवान श्रीगणेश का वाहन है मूषक अर्थात चूहा। चूहे की विशेषता यह है कि यह हर वस्तु को कुतर डालता है। वह यह नही देखता की वस्तु आवश्यक है या अनावश्यक, कीमती है अथवा बेशकीमती। इसी प्रकार कुतर्की भी यह विचार नही करते की यह कार्य शुभ है अथवा अशुभ। अच्छा है या बुरा। वह हर काम में कुतर्कों द्वारा व्यवधान उत्पन्न करते हैं। श्रीगणेश बुद्धि एवं ज्ञान के देवता हैं तथा कुतर्क मूषक है, जिसे गणेशजी ने अपने नीचे दबा कर अपनी सवारी बना रखा है। यह हमारे लिए भी शिक्षा है कि कुतर्कों को परे कर उनका दमन कर ज्ञान को अपनाएं।अब इसकी अगर हम तात्विक व्याख्या करें तो पाते हैं की चूहा महा चंचल जीव है जो कभी स्थिर नहीं रहता ,इसके अंग अवश्य हिलते रहेंगे |यह जीव इधर उधार फुदकता रहता है और चलायमान रहता है |गणेश आज्ञा चक्र के स्वामी हैं ,जहाँ की तरंगे कभी स्थिर नहीं रहती ,हमेशा विभिन्न दिशाओं में अनियंत्रित दौड़ती रहती हैं |यह चूहे की तरह चंचल भी होती हैं और यह नुक्सान भी अक्सर करती रहती हैं |व्यक्ति को स्थिर और नियंत्रित नहीं रहने देती |गणेश इस चूहे [तरंग] को नियंत्रित करते हैं |यही तरंगें आज्ञा चक्र तक संकेत लाती भी हैं और ले भी जाती हैं ,जैसे चूहा गणपति का प्रतिनिधित्व करता है छोटा सा जीव ,वैसे ही यह तरंगे जो बहुत मामूली होती हैं किन्तु गणेश अर्थात आज्ञा चक्र का भार वहां करती हैं और जीवन नियंत्रित करती हैं |अतः गणेश को साधने से मानसिक तरंगों का चूहा भी नियंत्रित हो जाता है और जीवन भी नियंत्रित हो जाता है |...
भगवान विष्णु का वाहन गरुड़
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भगवान विष्णु का वाहन गरुड़ है। इसे पक्षियों का राजा भी कहते हैं। गरुड़ की विशेषता है कि यह आसमान में बहुत उंचाई पर उड़कर भी धरती के छोटे-छोटे जीवों पर नजर रख सकता है। उसमें अपरिमित शक्ति होती है।भगवान विष्णु का वाहन गरुड सांपों का शत्रु है। इस कारण यह कहा जाता है कि गरुड विष को खत्म करने वाला अर्थात आतंक को नष्ट करने वाला पक्षी है। वैसे ही भगवान विष्णु सबका पालन करने वाले तथा प्रत्येक जीव का ध्यान रखने वाले होते हैं। उनकी नजर सदा प्रत्येक जीव पर होती है। उन पर सबकी रक्षा का भार भी है। इसलिए वह परम शक्तिशाली हैं।
भगवान शंकर का वाहन बैल
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धर्म ग्रंथों में भगवान शंकर का वाहन बैल है। बैल बहुत ही मेहनती जीव होता है। वह शक्तिशाली होने के बावजूद शांत एवं भोला होता है। वैसे ही भगवान शिव भी परमयोगी एवं तप के बल पर शक्तिशाली होते हुए भी परम शंात एवं इतने भोले हैं कि उनका एक नाम ही भोलेनाथ जगत में प्रसिद्ध है। भगवान शंकर ने जिस तरह काम को भस्म कर उस पर विजय प्राप्त कि थी, उसी तरह उनका वाहन भी कामी नही होता। उसका काम पर पूरा नियंत्रण होता है। कृषक का प्रिय वृषभ (बैल) श्रमशीलता का प्रतीक है। जन-जन के आराध्य शिव जी का वाहन बैल भी उनके साथ पूजा जाता है। यह हमारी संस्कृति में श्रम की उपासना का अप्रतिम उदाहरण है।
देवी दुर्गा का वाहन शेर
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शास्त्रों में देवी दुर्गा का वाहन सिंह यानी शेर बताया गया है। शेर एक संयुक्त परिवार में रहने वाला प्राणी है। वह अपने परिवार की रक्षा करने के साथ ही सामाजिक रूप से वन में रहता है। वह वन का सबसे शक्तिशाली प्राणी होता है, किंतु अपनी शक्ति को व्यर्थ में व्यय नही करता। आवश्यकता पडऩे पर ही उसका उपयोग करता है। देवी के वाहन शेर से यह संदेश मिलता है कि घर की मुखिया स्त्री को अपने परिवार को जोड़कर रखना चाहिए तथा व्यर्थ के कार्यों में अपनी बुद्धि को न लगाकर घर को सुखी बनाने के लिए लगातार प्रयास करना चाहिए। देवी दुर्गा का वाहन वनराज सिंह शक्ति का प्रतीक है, तभी तो स्वामी विवेकानंद उद्घोष करते हैं - हे युवाओं, तुम सिंह की तरह निर्भय बनो और आगे बढे चलो। इस प्रतीक को वैदिक, बौद्ध, जैन तीनों धर्र्मो में अपनाया गया है।
लक्ष्मी का वाहन हाथी एवं उल्लू
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माता लक्ष्मी का एक वाहन सफेद रंग का हाथी है। हाथी परिवार के साथ मिल-जुलकर रहने वाला सामाजिक एवं बुद्धिमान प्राणी है। उनके परिवार में मादाओं को प्राथमिकता दी जाती है तथा सम्मान किया जाता है। हाथी हिंसक प्राणी नही होता। उसी तरह अपने परिवार वालों को एकता के साथ रखने वाला तथा अपने घर की स्त्रियों को आदर एवं सम्मान देने वालों के साथ लक्ष्मी का निवास होता है।गज अर्थात हाथी वैभव का सूचक है। पुराणों में कहा गया है कि धन-संपन्नता की देवी लक्ष्मी की अर्चना गजराज जल से करते रहते हैं। गज को बुद्धि के देवता गणपति का प्रतीक भी माना गया है।
लक्ष्मी का वाहन उल्लू भी होता है। ऊल्लू सदा क्रियाशील होता है। वह अपना पेट भरने के लिए लगातार कर्म करता रहता है। अपने कार्य को पूरी तन्मयता के साथ पूरा करता है। इसका अर्थ है कि जो व्यक्ति रात-दिन मेहनत करता है, लक्ष्मी सदा उस पर प्रसन्न होती हैं तथा स्थाई रूप से उसके घर में निवास करती हैं।
सरस्वती का वाहन हंस
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मां सरस्वती का वाहन हंस है। हंस का एक गुण होता है कि उसके सामने दूध एवं पानी मिलाकर रख दें तो वह केवल दूध पी लेता हैं तथा पानी को छोड़ देता है। यानी वह सिर्फ गुण ग्रहण करता है व अवगुण छोड़ देता है। इसलिए वह विवेक का प्रतीक है। इसी कारण देवी सरस्वती ने उसे अपना वाहन बनाया है। हंस मोती चुगकर सर्वश्रेष्ठ को ग्रहण करने का संदेश देता है देवी सरस्वती विद्या की देवी हैं। गुण व अवगुण को पहचानना तभी संभव है, जब आपमें ज्ञान हो। इसलिए माता सरस्वती का वाहन हंस है।
हनुमानजी का आसन पिशाच
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हनुमानजी पे्रत या पिशाच को अपना आसन बनाकर उस पर बैठते हैं। इसी को वह अपने वाहन के रूप में भी प्रयोग करते हैं। पिशाच या प्रेत बुराई तथा दूसरों का भय एवं कष्ट देने वाले होते हैं। इसका अर्थ है कि हमें कभी भी बुराई को अपने ऊपर हावी नहीं होने देना चाहिए।
सूर्य का वाहन रथ
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भगवान सूर्य का वाहन रथ है। इस रथ में सात घोड़ें होते हैं। जो सातों वारों का प्रतीक हैं। रथ का एक पहिया एक वर्ष का प्रतीक है जिसमें बाहर आरे होते हैं तथा छ: ऋतु रूपी छ: नेमीयां होती हैं। भगवान सूर्य का वाहन रथ इस बात का प्रतीक होता है कि हमें अपना कर्म करते हुए सदैव आगे बढ़ते रहना चाहिए, तभी जीवन में प्रकाश आता है अश्व (घोडा) को स्फूर्ति एवं शक्ति का प्रतीक माना जाता है। हमारी सृष्टि के साक्षात देवता माने जाने वाले सूर्य के रथ में सात घोडे होते हैं, जो सात किरणों के प्रतीक हैं। अश्वमेध यज्ञ से संबद्ध होने के कारण भी इसे पूज्य माना गया है।
यमराज का वाहन भैंसा
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यमराज भैंसे को अपने वाहन के रूप में प्रयोग करते हैं। भैंसा भी सामाजिक प्राणी होता है। भैंसों के झुंड के सदस्य मिलकर एक-दूसरे की रक्षा करते हैं। उनका रूप भयानक होता है और उनमें शक्ति भी बहुत होती है, लेकिन वे इस शक्ति का दुरुपयोग नहीं करते। इसका अर्थ है कि यदि हम अपने परिवार के साथ मिल-जुलकर रहें तो बड़ी समस्याओं का सामना भी आसानी से कर सकते हैं। अत: यमराज उसको अपने वाहन के तौर पर प्रयोग करते हैं।
भगवान कार्तिकेय का वाहन मोर
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भगवान शिव के पुत्र कार्तिकेय देवताओं के सेनापति कहे जाते हैं। इनका वाहन मोर है। धर्म ग्रंथों के अनुसार कार्तिकेय ने असुरों से युद्ध कर देवताओं को विजय दिलाई थी। अर्थात इनका युद्ध कौशल सबसे श्रेष्ठ है। अब यदि इनके वाहन मोर को देखें तो पता चलता है कि इसका मुख्य भोजन सांप है। सांप भी बहुत खतरनाक प्राणी है। इसलिए इसका शिकार करने के लिए बहुत ही स्फूर्ति और चतुराई की आवश्यकता होती है। इसी गुण के कारण मोर सेनापति कार्तिकेय का वाहन है।
मां गंगा का वाहन मगर
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धर्म ग्रंथों में माता गंगा का वाहन मगरमच्छ बताया गया है। इससे अभिप्राय है कि हमें जल में रहने वाले हर प्राणी की रक्षा करनी चाहिए। अपने निजी स्वार्थ के लिए इनका शिकार करना उचित नहीं है, क्योंकि जल में रहने वाला हर प्राणी पारिस्थितिक तंत्र में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इनकी अनुपस्थिति में पारिस्थितिक तंत्र बिगड़ सकता है।....................................................हर-हर महादेव

पपीता खाने के 11 स्‍वास्‍थ्‍यवर्धक कारण{11 reasons to eat healthy papaya}

विटामिन सी, ए, पोटेशियम और कैल्शियम और आयरन से भरपूर पपीता स्वास्थ्य के लिए बहुत फायदेमंद होता है। पपीता पेट, हृदय और लीवर के रोगों और आंतों की कमजोरी को दूर करने में मददगार होता है।

1
पपीते के स्‍वास्‍थ्‍यवर्धक गुण

गुणों की खान कहा जाने वाला पपीता आपके पेट के साथ आपकी त्‍वचा की खूबसूरती बढ़ने में भी आपकी मदद करता है। यह एक ऐसा फल जिसमें विटामिन सी, ए, पोटेशियम और कैल्शियम और आयरन प्रचुर मात्रा में मौजूद होता है इसके साथ ही स्वास्थ्य के लिए कई हितकारी गुण निहित होते हैं। पपीते के कुछ बेहतरीन स्‍वास्‍थ्‍य लाभों की सूची यहां पर दी गई है

2
वजन घटाने में मददगार

मीठा होने के बावजूद कैलोरी में कम पपीते को वजन कम करने वाले लोगों को अपने आहार में जरूर शामिल करना चाहिए। इसके अलावा, पपीता में मौजूद फाइबर आपको संतुष्ट और पूर्ण महसूस करवाने के साथ आंतों के कार्यों को ठीक रखता है जिसके फलस्‍वरूप वजन घटाना आसान हो जाता है।

3
आंखों के लिए फायदेमंद

पपीता नेत्र रोगों के लिए बहुत फायदेमंद होता है। इसमें प्रचुर मात्रा में विटामिन ए की मौजूदगी आंखों की रोशनी को कम होने से बचाती है। इसके सेवन से रतौंधी रोग का निवारण होता है और आंखों की ज्योति बढ़ती हैं।

4
कोलेस्ट्रोल कम करें

पपीते में फाइबर, विटामिन सी और एंटी-ऑक्सीडेंट प्रचुर मात्रा में होता है जो आपकी रक्त-शिराओं में कोलेस्ट्रोल के थक्कों को बनने देता। कोलेस्ट्रोल के थक्के दिल का दौरा पड़ने और उच्च रक्तचाप समेत कई अन्य ह्रदय रोगों का कारण बन सकते हैं।

5
माहवारी के दर्द से छुटकारा

पपीते में पैपेन नामक एंजाइम माहवारी के दौरान रक्त के प्रवाह को ठीक कर दर्द को दूर करने में मदद करता है। इसलिए माहवारी के दर्द से गुजर रही महिलाओं को अपने आहार में पपीता को शामिल करना चाहिए।

6
प्रतिरोधक क्षमता में मजबूती

आपकी इम्‍यूनिटी विभिन्‍न संक्रमणों के विरूद्ध ढाल का काम करती हैं। केवल एक पपीते में इतना विटामिन सी होता है जो आपके प्रतिदिन की विटामिन सी की आवश्यकता का लगभग 200 प्रतिशत होता है। इस तरह से ये आपकी प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत करता है।

7
डायबिटीज के रोगियों के लिए अच्छा

स्‍वाद में मीठा होने के बावजूद इसमें शुगर नाममात्र का होता है इसलिए पपीता डायबिटीज रोगियों के लिए आहार के रूप में एक बेहतरीन विकल्प है। इसके अलावा, जो लोग डायबिटीज के रोगी नहीं हैं, इसके सेवन से डायबिटीज होने के खतरों को दूर कर सकते हैं।

8
कैंसर को रोकने में मददगार

कुछ अध्‍ययनों के अनुसार, पपीते के सेवन से कोलन और प्रोजेक्ट कैंसर के खतरे को कम किया जा सकता है। पपीते में एंटी-ऑक्‍सीडेंट, फीटोन्यूट्रिएंट्स और फ्लेवोनॉयड्स प्रचूर मात्रा में होते हैं। इसके अलावा इसमें मौजूद विटामिन सी, बीटा कैरोटीन और विटामिन ई शरीर में कैंसर सेल को बनने से रोकते हैं। इसलिए अपने आहार में पपीता शमिल करें।

9
तनाव कम करें

इस कमाल के फल में तनाव को दूर करने की ताकत होती हैं। यूनिवर्सिटी ऑफ अल्बामा में हुए एक अध्‍ययन के अनुसार, लगभग 200 मिलीग्राम विटामिन सी स्ट्रेस हार्मोंन को संचालित करने में सक्षम होता है और पपीते में विटामिन सी प्रचुरता में उपलब्ध होता है।

10
पाचन को दुरुस्‍त करें

पपीते में फाइबर के साथ-साथ पपैन नामक एक एंजाइम होता है जो आपकी पाचन शक्ति को दुरुस्त रखता है। यह एंजाइम आहार को पचाने में अत्‍यंत मददगार होता है। जिन लोगों को पेट से संबंधित समस्‍या जैसे कब्‍ज की शिकायत हमेशा बनी रहती है, उन्‍हें पपीते का सेवन नियमित रूप से करना चाहिए।

11
एजिंग को रोकें

हम सभी सदा जवां बने रहना चाहते हैं, पर कोई भी ऐसा करने में कामयाब नहीं हो पाता है। लेकिन फिर भी, स्‍वास्‍थ्‍यवर्द्धक आदतों और पपीते को अपने आहार में शामिल कर आप उम्र के असर को कम कर सकते हैं। पपीते में विटामिन सी, विटामिन ई और बीटा-कैरोटीन सरीखे एंटी-ऑक्सीडेंट प्रचुर मात्रा में होते हैं जो शरीर की पोषण की जरूरतों को पूरा कर आपको सालों साल जवान बनाये रखते हैं।

12
गठिया से बचाव

गठिया जैसी बीमारी शरीर को दुर्बल करने के साथ आपकी जीवनशैली को भी बुरी तरह से प्रभावित करती है। इनमें विटामिन-सी के साथ-साथ एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण होने के कारण पपीता खाना आपकी हड्डियों के लिए बेहद लाभकारी होता हैं। एक अध्ययन के अनुसार विटामिन-सी युक्त भोजन न लेने वाले लोगों में गठिया का खतरा विटामिन-सी का सेवन करने वालों के मुकाबले लगभग तीन गुना अधिक होता है।

मटके के पानी में हैं बड़े गुण.. जानकर चौंक जाएंगे आप!{Large pot of water, you will be shocked to learn the virtues ..!}

आयुर्वेद में मटके के पानी को शीतल, हल्का, स्वच्छ और अमृत के समान माना गया है। यह प्राकृतिक जल का स्रोत है जो ऊष्मा से भरपूर होता है और शरीर की गतिशीलता को बनाए रखता है।
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मटके की मिट्टी कीटाणुनाशक होती है जो पानी में से दूषित पदार्थों को साफ करने का काम करती है।
इस पानी को पीने से थकान दूर होती है। इसे पीने से पेट में भारीपन की समस्या भी नहीं होती। रक्त बहने की स्थिति में मटके के पानी को चोट या घाव पर डालने से खून बहना बंद हो जाता है।
सुबह के समय इस पानी के प्रयोग से हृदय व आंखों की सेहत दुरुस्त रहती है।
गला, भोजन नली और पेट की जलन को दूर करने में मटके का पानी काफी उपयोगी होता है।
जिन लोगों को अस्थमा की समस्या हो वे इस पानी का प्रयोग न करें क्योंकि इसकी तासीर काफी ठंडी होती है जिससे कफ या खांसी बढ़ती है। जुकाम, पसलियों में दर्द, पेट में आफरा बनने की स्थिति व शुरुआती बुखार के लक्षण होने पर मटके का पानी न पिएं।
तली-भुनी चीजें खाने के बाद यह पानी न पिएं वर्ना खांसी हो सकती है। मटके का पानी रोजाना बदलें। लेकिन इसे साफ करने के लिए अंदर हाथ डालकर घिसे नहीं वर्ना इसके बारीक छिद्र बंद हो जाते हैं और पानी ठंडा नहीं हो पाता।
मित्रों से मेरी विनती है इस पोस्ट को शेयर करे और आगे बढ़ाए.ताकी पूरा भारत स्वास्थ हो।

पैर में असहनीय दर्द - गृध्रसी या सायटिका या एक पैर का दर्द या पटनल का दर्द ।

‪#‎सायटिका‬ एक तरह का भयानक दर्द है जिसका मुख्य कारण सायटिक ‪#‎नर्व‬ है। यह वो नर्व है जो रीढ़ के निम्न भाग से निकलकर घुटने के पीछे की ओर से पैर की तरफ जाती है।
शरीर को अधिक समय तक एक ही स्थिति में रखने से यह दर्द बढ़ जाता है यह दर्द बहुत असहनीय होता है। अक्सर यह समस्या उन लोगों में होती है जो बहुत समय तक बैठ कर काम करते हैं या बहुत अधिक चलते रहने से अत्यधिक ‪#‎साइकिल‬, ‪#‎मोटर‬ साइकिल अथवा ‪#‎स्कूटर‬ चलाने से सायटिका नर्व पर दबाव पड़ता है। कभी-कभी ऐसा भी होता है कि अचानक हड्डियों पर जोर पड़ जाने से भी इस प्रकार का दर्द होता है।
इस प्रकार का दर्द अकसर 40 से 50 वर्ष की उम्र में होता है और यह बीमारी बरसात या ठंड के मौसम में ज्यादा तकलीफ देती है। अगर आप भी सायटिका दर्द से परेशान है तो आइए हम आपको बताते हैं कुछ ऐसे आयुर्वेदिक प्रयोग जिनसे #सायटिका दर्द जल्द ही ठीक हो जाएगा।


‪#‎आयुर्वेदिक‬ प्रयोग :- मीठी सुरंजन 20 ग्राम + सनाय 20 ग्राम + सौंफ़ 20 ग्राम + शोधित गंधक 20 ग्राम + मेदा लकड़ी 20 ग्राम + छोटी हरड़ 20 ग्राम + सेंधा नमक 20 ग्राम इन सभी को लेकर मजबूत हाथों से घोंट लें व दिन में तीन बार तीन-तीन ग्राम गर्म जल से लीजिये।
---------------‪#‎या‬#-------------------------------
लौहभस्म 20 ग्राम + रस सिंदूर 20 ग्राम + विषतिंदुक बटी 10 ग्राम + त्रिकटु चूर्ण 20 ग्राम इन सबको अदरक के रस के साथ घोंट कर 250 मिलीग्राम के वजन की गोलियां बना लीजिये और दो दो गोली दिन में तीन बार गर्म जल से लीजिये।
------------------#या#-----------------------------
50 पत्ते परिजात या हारसिंगार व 50 पत्ते निर्गुण्डी के पत्ते लाकर एक लीटर पानी में उबालें। जब यह पानी 750 मिली हो जाए तो इसमें एक ग्राम केसर मिलाकर उसे एक बोतल में भर लें। यह पानी सुबह शाम 3/4 कप मात्रा में दोनों टाइम पीएं। साथ ही दो-दो गोली वातविध्वंसक वटी की भी लें।

दर्द के समय गुनगुने पानी से नहायें ।
आप सन बाथ भी ले सकते हैं, अपने आपको ठंड से बचाएं।
सुबह व्यायाम करें या सैर पर जायें ।
अधिक समय तक एक ही स्थिति में ना बैठें या खड़े हों। अगर आप आफिस में हैं तो बैठते समय अपने पैरों को हिलाते डुलाते रहें।

नीम का तेल (neem oil)

- नीम का तेल जोकि गंध व स्वाद में कड़वा
होता है प्रथम श्रेणी की कीटाणुनाशक
होता है।

- यह चर्म रोगों में लाभदायक है.


-यह गर्भ निरोधक के रूप में काम आता है .

-दांतों और मसूड़ों की समस्या में इसके तेल
की कुछ बूंदों मंजन में मिला कर मले.

- कील-मुंहासों के लिए नीम का तेल लगाने से भी लाभ होता है। चेचक के दाग दूर करने के लिए नीम की निबोली का तेल आराम देता है।

- गंजेपन की समस्या है तो सिर में नीम का
तेल लगाएं। इससे जूएं-लीखें भी दूर हो जाती हैं।

- बालों को चमकदार, स्वस्थ बाल के
लिए,सूखापन दूर करने के लिए कारगर हे। समय से पहले सफ़ेद होने से रोकता है और यहां तक कि बालों के झड़ने के लिए कुछ हद तक मदद कर सकता हैं।

- यह नाखून में स्निग्धता बनाता है, और भंगुर नाखून(टूटने और विकृत होने की समस्या) को हटा कर उन्हें नया- सुन्दर वर्ण प्रदान करता हे।इससे नाखून के कवक(फंगल) से छुटकारा मिल जाता है।

-नीम तेल एक जैविक कीटनाशक के रूप में
काम करता है: इससे "यह 'कीड़े हार्मोनल
संतुलन को बाधित किये बिना मर जाते हैं।
नीम तेल स्प्रे भी एक कीट रिपेलेंट के रूप में
इस्तेमाल किया जा सकता है. नीम मच्छरों
को दूर रखता है और यह आपकी त्वचा के
लिए अच्छा है.

- किसानों के लिए यह जैविक कीटनाशक का काम करता है. यह
पर्यावरण हितैषी है. यह जमीन या पानी
की आपूर्ति में कोई हानिकारक पदार्थ
नहीं मिलाता .यह बायोडीग्रेडेबल है. यह
मधुमक्खियों और केंचुए के रूप में उपयोगी
कीड़े को नुकसान नहीं पहुंचाता .

- जोड़ों
में दर्द हो तो नीम के तेल की मालिश से
लाभ होता है.

- फीलपांव के रोगी को 5 से
10 बूंद नीम का तेल प्रतिदिन 2 बार सेवन
करना चाहिए।

- जलने की वजह से शरीर में
जख्म बन जाने पर नीम का तेल लगाने से
जख्म जल्दी ठीक हो जाते हैं। जीवाणुओं के
संक्रमण (फैलने) से भी सुरक्षा होती है।

-
आधा चम्मच नीम का तेल दूध में मिलाकर
सुबह-शाम को पीने से रक्तप्रदर और सभी
प्रकार के प्रदर निश्चित रूप से बन्द हो
जाता है।

- नीम के तेल को लगाने से कान
की फुंसिया ठीक हो जाती हैं। अगर
फुंसियों में जलन भी हो तो नीम के तेल के
बराबर ही तिल का तेल मिलाकर फुंसियों
पर लगाने से आराम आता है। कान के दर्द और
कान बहने में भी नीम का तेल लगाने से लाभ
होता है.

- नीम का तेल और शहद बराबर लेकर
मिला लें, फिर इसकी 2-2 बूंदे रोजाना 1 से
2 महीने तक कान में डालने से कान के बहने में
लाभ मिलता है।

- नीम के तेल में चालमोंगरे
का तेल बराबर मात्रा में मिलाकर शीशी में
भरकर रख लें। इस तेल को सफेद दागों पर लगा
लें और 5 से 6 बूंद बताशे में डालकर खा लें।

-
नीम के तेल को सूंघने मात्र से बाल काले हो
जाते हैं। इसकी २ बूँद नाक में डाले . - नीम के
तेल की मालिश करने से सिर के दर्द में आराम
आता है। - नीम तेल और सरसों तेल में थोड़ा
कपूर मिला ले. इसका दिया जलाने से कीड़े
और मच्छर दूर रहते है.

Vegetarians beware !!

शाकाहारी लोग सावधान !!
अधिक जानकारी के लिए यहाँ click करे !
https://www.youtube.com/watch?v=733RlrQ42YU

क्या आप भी बोन चाइना के बर्तन प्रयोग करते है ??


ऐसे बर्तन आज कल हर घर में देखे जा सकते है, इस तरह की खास क्राकरी जो सफेद, पतली और अच्छी कलाकारी से बनाई जाती है, बोन चाइना कहलाती है। इस पर लिखे शब्द बोन का वास्तव में सम्बंध बोन (हड्डी) से ही है। इसका मतलब यह है कि आप किसी गाय या बैल की हड्डियों की सहायता से खा-पी रही है। बोन चाइना एक खास तरीके का पॉर्सिलेन है जिसे ब्रिटेन में विकसित किया गया और इस उत्पाद का बनाने में बैल की हड्डी का प्रयोग मुख्य तौर पर किया जाता है। इसके प्रयोग से सफेदी और पारदर्शिता मिलती है।

बोन चाइना इसलिए महंगा होती है क्योंकि इसके उत्पादन के लिए सैकड़ों टन हड्डियों की जरुरत होती है, जिन्हें कसाईखानों से जुटाया जाता है। इसके बाद इन्हें उबाला जाता है, साफ किया जाता है और खुले में जलाकर इसकी राख प्राप्त की जाती है। बिना इस राख के चाइना कभी भी बोन चाइना नहीं कहलाता है। जानवरों की हड्डी से चिपका हुआ मांस और चिपचिपापन अलग कर दिया जाता है। इस चरण में प्राप्त चिपचिपे गोंद को अन्य इस्तेमाल के लिए सुरक्षित रख लिया जाता है। शेष बची हुई हड्डी को १००० सेल्सियस तापमान पर गर्म किया जाता है, जिससे इसमें उपस्थित सारा कार्बनिक पदार्थ जल जाता है। इसके बाद इसमें पानी और अन्य आवश्यक पदार्थ मिलाकर कप, प्लेट और अन्य क्राकरी बना ली जाती है और गर्म किया जाता है। इन तरह बोन चाइना अस्तित्व में आता है। ५० प्रतिशत हड्डियों की राख २६ प्रतिशत चीनी मिट्टी और बाकी चाइना स्टोन। खास बात यह है कि बोन चाइना जितना ज्यादा महंगा होगा, उसमें हड्डियों की राख की मात्रा भी उतनी ही अधिक होगी।

अब प्रश्न यह उठता है कि क्या शाकाहारी लोगों को बोन चाइना का इस्तेमाल करना चाहिए? या फिर सिर्फ शाकाहारी ही क्यों, क्या किसी को भी बोन चाइना का इस्तेमाल करना चाहिये। लोग इस मामले में कुछ तर्क देते है। जानवरों को उनकी हड्डियों के लिए नहीं मारा जाता, हड्डियां तो उनको मारने के बाद प्राप्त हुआ एक उप-उत्पाद है। लेकिन भारत के मामले में यह कुछ अलग है। भारत में भैंस और गाय को उनके मांस के लिए नहीं मारा जाता क्योंकि उनकी मांस खाने वालों की संख्या काफी कम है। उन्हें दरअसल उनकी चमड़ी और हड्डियों के मारा जाता है। भारत में दुनिया की सबसे बड़ी चमड़ी मंडी है और यहां ज्यादातर गाय के चमड़े का ही प्रयोग किया जाता है। हम जानवरों को उनकी हड्डियों के लिए भी मारते है। देखा जाए तो वर्क बनाने का पूरा उद्योग ही गाय को सिर्फ उसकी आंत के लिए मौत के घाट उतार देता है। आप जनवरों को नहीं मारते, लेकिन आप या आपका परिवार बोन चाइना खरीदने के साथ ही उन हत्याओं का साझीदार हो जाता है, क्योंकि बिना मांग के उत्पादन अपने आप ही खत्म हो जायेगा।

चाइना सैट की परम्परा बहुत पुरानी है और जानवर लम्बे समय से मौत के घाट उतारे जा रहे हैं। यह सच है, लेकिन आप इस बुरे काम को रोक सकते हैं। इसके लिए सिर्फ आपको यह काम करना है कि आप बोन चाइना की मांग करना बंद कर दें।

आपने पूरी post पढ़ी बहुत बहुत धन्यवाद !!
यहाँ जरूर click करे !
https://www.youtube.com/watch?v=l-eYup4tOoM


वन्देमातरम ! —

देशी घी की कैसे करे पहचान(How to identify ghee)


देशी घी की कैसे करे पहचान

देसी घी को सेहत का अचूक नुस्खा माना जाता है, लेकिन बाज़ार में बड़े पैमाने पर जो घी बिक रहा है, वो सेहत का सत्यानाश करने वाला है. घी के नाम पर जो कुछ बिक रहा है, वह घी है ही नहीं. उसमें तो जानवरों की चर्बी, हड्डी और केमिकल है……

पूरे देश में बड़े पैमाने पर घी के नाम पर हड्डी औऱ चर्बी के घालमेल का काला कारोबार चल रहा है. भैंस, भैसा, गाय, बैल औऱ ऊंट का मांस उबाला जाता है. मांस उबालकर जानवरों की चर्बियां सुखायी जाती हैं.

पहचान
देसी नस्ल की गाय का घी या भेंस का शुद्ध असली घी लीजिए 1 लीटर.
अब इसको किसी बर्तन में डाल कर उबाल लीजिए.
जब यह अच्छे से उबल जाए तो उतार लीजिए.
अब इस तरल घी को किसी बर्तन में डाल कर ढक कर 24 घंटे रख दीजिए.
24 घंटे बाद जब आप घी को देखेंगे तो वह दानेदार बन चुका होगा एवं खुश्बू भी अच्छी आ रही होगी. खा कर देखिए स्वाद से भी आपको पता लगेगा की घी बिल्कुल शुद्ध है.

यह पहचान है शुद्ध देसी घी की.. चाहे वह देसी गाय का हो चाहे भेंस का हो.

अब यही प्रयोग आप बाजार में मिलने वाले घी के साथ कीजिए. जो डिब्बे में पेक मिलता है..

जब इन डिब्बा बंद घी को आप गर्म कर के ठंडा करेंगे तो पाएँगे की घी का रंग बदल चुका होगा.. दानेदार की जगह घी दिखने में अजीब सा हो चुका होगा. खुश्बू जा चुकी होगी.. और स्वाद डालडा घी (वनस्पति घी) जैसा मिलेगा.

पांच एम एल पिघला हुआ घी लें। इसमें पांच एमएल हाइड्रोक्लोरिक एसिड डालें। एक चुटकी चीनी डालकर इसे दो मिनट तक मिलाएं। घी का रंग गुलाबी या लाल हो जाएगा। यह मिलावट की पहचान है।

घी में शकरकंदी या आलू मिला होने पर जांच के लिए पांच बूंद घी टैस्ट ट्यूब में लें। इसमें एक बूंद आयोडीन सोल्यूशन डालें। घी का रंग नीला हो जाएगा। यह घी में स्टार्च की मिलावट बताता है। इसे गर्म करने पर घी का रंग उड़ जाता है। ठंडा होने पर घी पुन: उसी रंग का बन जाता है।

घी में दूध या दूध से तैयार सामग्री की मिलावट जांचने के लिए एक चम्मच पिघले हुए घी में पांच एमएल डाइल्यूटेड सल्फ्यूरिक एसिड डालकर हिलाएं। इसका रंग गुलाबी या केसरी हो जाएगा। यह घी में कोलटार डाई की मिलावट को बताता है। डाइल्यूटेड सल्फ्यूरिक एसिड की बजाय हाइड्रोक्लोरिक एसिड से भी जांच की जा सकती है।

हेल्थ इस वेल्थ

आज भारत मे हो रही 100% बीमारियो का कारण हमारा गलत और अज्ञानता पूर्वक किया गया भोजन है है जिसे हम tv और filmo से प्रभावित होकर करने लगे है
जैसे की शक्कर -आयोडिन नमक आदि आदि
बात अगर हम शक्कर की करे तो भारत वासी पिछले 250 साल से इसका सेवन करने लगे परिणाम आपकी आंखो के सामने है 8.50 लाख लोगो को शुगर की बीमारी और करीब 60 करोड़ लोगो को bp की कम या ज्यादा होने की बीमारी
शक्कर मे सल्फर (बारूद )मिला होता है जो शरीर मे जाकर हमारे पाचन तंत्र को प्रभावित करता है और हमारे शरीर की सारी ऊर्जा जो हम दिन भर खाकर प्राप्त करते है उसे खत्म करने लगता है हमारे शरीर की सारी ऊर्जा शकर को पचाने मे ही खत्म हो जाती है और इसके गंभीर परिणाम हमारे शरीर को भुगतना पड़ते है कई बीमारिया हो जाती है आज से दौ सौ पचास साल पहले हमारे देश मे बीमारिया नहीं होती थी गंभीर बीमारियो की तो बात ही दूर है
इसलिए आइये पवित्र भारत की पवित्र जीवन परम्पराओ की और
गुड़ का सेवन करने से शरीर में होने वाले कई प्रकार के रोग ठीक हो जाते हैं। मिठाई और चीनी की अपेक्षा गुड़ अधिक लाभकारी है। आज कल चीनी का प्रयोग अधिक होने के कारण से गुड़ के उपयोग कम ही हो रहा है। गन्ने के रस से गुड़ बनाया जाता है। गुड़ में सभी खनिज द्रव्य और क्षार सुरक्षित रहते हैं।
गुड़ से कई प्रकार के पकवान बनाये जाते हैं जैसे- हलुआ, चूरमा तथा लपसी आदि। गुड़ खाने से थकावट मिट जाती है। परिश्रमी लोगों के लिए गुड़ खाना अधिक लाभकारी है। मटके में जमाया हुआ गुड़ सबसे अच्छा होता है।
पुराना गुड़ का गुण : पुराना गुड़ हल्का तथा मीठा होता है। यह आंखों के रोग दूर करने वाला, भुख को बढ़ने वाला, पित्त को नष्ट करने वाला, शरीर में शक्ति को बढ़ाने वाला और वात रोग को नष्ट करने वाला तथा खून की खराबी को दूर करने वाला होता है।
गुड़ का प्रयोग दूसरे पदार्थों के साथ सेवन करने पर इसके गुण :
अदरक के साथ गुड़ खाने से कफ खत्म होता है। हरड़ के साथ इसे खाने से पित्त दूर होता है तथा सोंठ के साथ गुड़ खाने से वात रोग नष्ट होता है।
रंग : गुड़ का रंग लाल पीला, काला और सफेद होता है।
स्वाद : गुड़ का स्वाद मीठा होता है।
स्वरूप : गन्ने का रस निकालकर इसे आग पर पकाकर गुड़ बनाया जाता है।
वैज्ञानिक मतानुसार : 100 ग्राम गुड़ में लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग खनिज द्रव्य होता है। चीनी में खनिज द्रव्यों और क्षारों का अभाव होता है। इसलिए चीनी की अपेक्षा गुड़ खाना अधिक लाभकारी होता है। गुड़ में बिटामिन `बी´-1, `बी´-2, विटामिन `सी´ और अल्पमात्रा में विटामिन `ए` होता है।
प्रकृति : गुड़ की प्रकृति गर्म होती है।
दोषों को दूर करने वाला : वंशलोचन गन्ना के दोषों को दूर करता है एवं गुड़ के गुणों को भी सुरक्षित रखता है।
गुण : गुड़ पेट को हल्का तथा साफ करता है। यह आंतों के घावों को ठीक करने में लाभकारी है तथा सर्दी-जुकाम की अवस्था में इसका सेवन करना अधिक फायदेमन्द होता है। यह कफ को नष्ट करता है तथा हाजमें को बढ़ाता है। गुड़ खांसी और सांस को रोकता है। इसका जला हुआ खार खांसी को दूर करता है।
तुलना : गुड़ की तुलना शहद के साथ की जा सकती है

पाचन और पानी{Digestion and water}

ये जानना बहुत जरुरी है.! हमारा खाना सही पच रहा है या नहीं ?
हम पानी क्यों ना पीये खाना खाने के बाद.! क्या कारण है.?

हमने दाल खाई, हमने सब्जी खाई, हमने रोटी खाई, हमने दही खाया, लस्सी पी, दूध, दही, छाझ, लस्सी, फल आदि.! ये सब कुछ भोजन के रूप मे हमने ग्रहण किया, ये सब कुछ हमको उर्जा देता है और पेट उस उर्जा को आगे ट्रांसफर करता है.! पेट मे एक छोटा सा स्थान होता है, जिसको हम हिंदी मे कहते है "अमाशय" | उसी स्थान का संस्कृत नाम है "जठर" | उसी स्थान को अंग्रेजी मे कहते है "epigastrium", ये एक थेली की तरह होता है और यह जठर हमारे शरीर मे सबसे महत्वपूर्ण है क्योंकि सारा खाना सबसे पहले इसी मे आता है। ये बहुत छोटा सा स्थान हैं, इसमें अधिक से अधिक 350gms खाना आ सकता है.! हम कुछ भी खाते, सब ये अमाशय मे आ जाता है.! आमाशय मे अग्नि प्रदीप्त होती है | उसी को कहते हे "जठराग्न".! ये जठराग्नि है वो अमाशय मे प्रदीप्त होने वाली आग है । ऐसे ही पेट मे होता है जेसे ही आपने खाना खाया कि जठराग्नि प्रदीप्त हो गयी..| यह ऑटोमेटिक है, जेसे ही अपने रोटी का पहला टुकड़ा मुँह मे डाला कि इधर जठराग्नि प्रदीप्त हो गई.! ये अग्नि तब तक जलती हे जब तक खाना' पचता है | अब अपने खाते ही गटागट पानी पी लिया और खूब ठंडा पानी पी लिया | और कई लोग तो बोतल पे बोतल पी जाते है.! अब जो आग (जठराग्नि) जल रही थी, वो बुझ गयी.! आग अगर बुझ गयी, तो खाने की पचने की जो क्रिया है वो रुक गयी.! You suffer from IBS, Never CURABLE.

अब हमेशा याद रखें

खाना जाने पर हमारे पेट में दो ही क्रिया होती है, एक क्रिया है जिसको हम कहते हैं "Digestion" और दूसरी है "fermentation" फर्मेंटेशन का मतलब है सडना...! और डायजेशन का मतलब है पचना.!

आयुर्वेद के हिसाब से आग जलेगी तो खाना पचेगा, तो उससे रस बनेगा.! जो रस बनेगा तो उसी रस से मांस, मज्जा, रक्त, वीर्य, हड्डिया, मल, मूत्र और अस्थि बनेगा और सबसे अंत मे मेद बनेगा.! ये तभी होगा जब खाना पचेगा.! यह सब हमें चाहिए. ये तो हुई खाना पचने की बात |

अब जब खाना सड़ेगा तब क्या होगा..?

खाने के सड़ने पर सबसे पहला जहर जो बनता है वो हे यूरिक एसिड (uric acid) | कई बार आप डॉक्टर के पास जाकर कहते है कि मुझे घुटने मे दर्द हो रहा है, मुझे कंधे-कमर मे दर्द हो रहा है तो डॉक्टर कहेगा आपका यूरिक एसिड बढ़ रहा है आप ये दवा खाओ, वो दवा खाओ यूरिक एसिड कम करो| और एक दूसरा उदाहरण खाना जब खाना सड़ता है, तो यूरिक एसिड जेसा ही एक दूसरा विष बनता है जिसको हम कहते है LDL (Low Density lipoprotine) माने खराब कोलेस्ट्रोल (cholesterol).

जब आप ब्लड प्रेशर(BP) चेक कराने डॉक्टर के पास जाते हैं तो वो आपको कहता है (HIGH BP) हाई-बीपी है आप पूछोगे... कारण बताओ.? तो वो कहेगा कोलेस्ट्रोल बहुत ज्यादा बढ़ा हुआ है | आप ज्यादा पूछोगे कि कोलेस्ट्रोल कौनसा बहुत है ? तो वो आपको कहेगा LDL बहुत है | इससे भी ज्यादा खतरनाक एक विष है वो है.... VLDL (Very Low Density Lipoprotive) ये भी कोलेस्ट्रॉल जेसा ही विष है। अगर VLDL बहुत बढ़ गया तो आपको भगवान भी नहीं बचा सकता|

खाना सड़ने पर और जो जहर बनते है उसमे एक ओर विष है जिसको अंग्रेजी मे हम कहते है triglycerides.! जब भी डॉक्टर आपको कहे की आपका "triglycerides" बढ़ा हुआ है तो समझ लीजिए की आपके शरीर मे विष निर्माण हो रहा है |
तो कोई यूरिक एसिड के नाम से कहे, कोई कोलेस्ट्रोल के नाम से कहे, कोई LDL -VLDL के नाम से कहे तो समझ लीजिए कि ये विष है और ऐसे विष 103 है | ये सभी विष तब बनते है जब खाना सड़ता है | मतलब समझ लीजिए किसी का कोलेस्ट्रोल बढ़ा हुआ है तो एक ही मिनिट मे ध्यान आना चाहिए की खाना पच नहीं रहा है , कोई कहता है मेरा triglycerides बहुत बढ़ा हुआ है तो एक ही मिनिट मे डायग्नोसिस कर लीजिए आप...! कि आपका खाना पच नहीं रहा है | कोई कहता है मेरा यूरिक एसिड बढ़ा हुआ है तो एक ही मिनिट लगना चाहिए समझने मे कि खाना पच नहीं रहा है | क्योंकि खाना पचने पर इनमे से कोई भी जहर नहीं बनता.! खाना पचने पर जो बनता वो है.... मांस, मज्जा, रक्त, वीर्य, हड्डिया, मल, मूत्र, अस्थि.! और खाना नहीं पचने पर बनता है.... यूरिक एसिड, कोलेस्ट्रोल, LDL-VLDL.! और यही आपके शरीर को रोगों का घर बनाते है.! पेट मे बनने वाला यही जहर जब ज्यादा बढ़कर खून मे आते है ! तो खून दिल की नाड़ियो मे से निकल नहीं पाता और रोज थोड़ा थोड़ा कचरा जो खून मे आया है इकट्ठा होता रहता है और एक दिन नाड़ी को ब्लॉक कर देता है जिसे आप Heart Attack कहते हैं.!
तो हमें जिंदगी मे ध्यान इस बात पर देना है कि जो हम खा रहे हैं वो शरीर मे ठीक से पचना चाहिए और खाना ठीक से पचना चाहिए इसके लिए पेट मे ठीक से आग (जठराग्नि) प्रदीप्त होनी ही चाहिए| क्योंकि बिना आग के खाना पचता नहीं है और खाना पकता भी नहीं है |

महत्व की बात खाने को खाना नहीं, खाने को पचाना है |

पुरुषों के लिए बाल जल्दी बढ़ाने के तरीके-Natural speed hair growth tips in Hindi for men

मर्दों के बाल उम्र बढ़ने के साथ साथ कम होते जाते हैं। दुनिया में ऐसी कई चीज़ें हैं जो आपके बाल सामान्य से अधिक तेज़ी से बढ़ाने में सहायता करती है। यह आवश्यक है कि बालों की अच्छी बढ़त के लिए आप इन उपायों के बारे में ठीक समय पर जानें। बाल बढ़ाने की प्रक्रिया तेज़ एवं वैध (legitimate) होनी चाहिए और इस तरह बढ़े बालों से आप काफी खुश रहेंगे।
आप यह मानते ही होंगे कि एक आकर्षक लुक के लिए बाल हमारे शरीर में एक प्रमुख भूमिका निभाते हैं। आजकल सभी लोग अपने बालों की देखभाल और उनकी बढ़त को लेकर खासे चिंतित रहते हैं। इनमें किशोर वर्ग से लेकर 40 वर्ष तक की उम्र के लोग प्रमुख हैं। पर इनमें से कई लोगों का सुन्दर बाल पाने का सपना पूरा नहीं हो पाता, हालांकि उन्होनें कई अच्छे और बेहतरीन उत्पादों का इस्तेमाल किया हुआ होता है।
बालों के कम होने की समस्या के कई कारण हो सकते हैं। आनुवंशिक(Genetic) समस्या, हॉर्मोन्स की असमानता, थाइरोइड ग्लैंड का पूर्ण सक्रिय न होना, पोषक पदार्थों की कमी तथा सिर में सही प्रकार से रक्त संचार न हो पाने की वजह से बाल कम होते हैं। अगर आप इनमें से किसी भी समस्या से जूझ रहे हैं तो समय नष्ट न करें और नीचे दिए तरीकों से बाल बढ़ाएं।
बालों के झड़ने की समस्या से आज के समय में ज़्यादातर लोग परेशान रहते हैं। बालों को वापस लाने की दवाइयों का प्रयोग करने के बाद भी जब वे नहीं उगते, तो काफी निराशा का सामना करना पड़ता है। पर चिंता न करें। नीचे बाल बढ़ाने के कुछ प्राकृतिक उपायों का वर्णन किया गया है।

सही खानपान से बाल जल्दी बढ़ाने के टिप्स (Eat a right food to promote growth)

  • सही पोषक तत्वों से युक्त स्वस्थ भोजन करें। इससे बाल झड़ने से मुक्ति और बाल बढ़ाने में मदद मिलेगी।
  • भोजन में मीट को शामिल करें। इससे हॉर्मोन की बढ़त में सहायता मिलती है। हॉर्मोन्स में असमानता ही बाल झड़ने का मुख्य कारण है।
  • पल्मेट्टो नाम की एक जड़ी बूटी बाल बढ़ाने में सहायक है। 400 मिलीग्राम सॉ पल्मेट्टो (Saw Palmetto) का अंश लें और 100 मिलीग्राम बीटा साइटोस्टेरॉल लें। इनका सेवन रोज़ाना करें।
  • स्वस्थ बालों के लिए ज़रूरी फैटी एसिड्स काफी प्रमुख भूमिका निभाते हैं। अखरोट, पटसन के बीज (flaxseeds), मछली और नाशपाती लें क्योंकि ये फैटी एसिड्स से भरपूर होते हैं।
  • रोज़ाना 100 मिलीग्राम बी-काम्प्लेक्स सप्लीमेंट का सेवन करें। इसमें बायोटिन और विटामिन बी 6 मौजूद होते हैं जो सिर में रक्त संचार बढ़ाकर बालों को पतला होने से बचाते हैं।
  • ऐसा भोजन करें जिसमें भरपूर मात्रा में विटामिन्स जैसे विटामिन सी, इ, जिंक आदि हो।
  • विटामिन सी कोलेजन की मात्रा बढ़ाता है जो कि उम्र बढ़ने के साथ साथ कम होती जाती है। विटामिन सी से भरपूर भोजन हैं सिट्रस फल, स्ट्रॉबेरी, लाल मिर्च आदि।
  • विटामिन इ बालों को खराब होने और टूटने से बचाता है।
  • भोजन में फल और सब्ज़ियों की मात्रा बढ़ाएं। सेब, पालक, गोभी, सभी गाढ़ी हरी सब्ज़ियाँ, नट्स, आलू बुखारा(Plum), पीच, बीन्स, गाजर आदि का सेवन करें।

गंजे हो रहे हैं तो अपनाइये ये तरीके/प्राकृतिक उपाय (Natural remedies)

तेल की विधि (Oil treatment)

प्राकृतिक तेल बाल बढ़ाने में काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। कोई भी प्राकृतिक तेल जैसे नारियल,ओलिव आदि लें और इसे कुछ देर तक गर्म होने दें। जब यह ज़्यादा गर्म न रह जाए तब इसे अपने सिर पर लगाएं। अब सिर को किसी कपडे से ढक लें और इसी अवस्था में 1 से 2 घंटे तक रखें। इसके बाद बालो को शैम्पू से धो दें। आपको अपने बालों में काफी फर्क दिखेगा।

बालों को झड़ने से रोके – अलसी के बीजों का सेवन (Eat Flaxseeds)

रोज़ाना अलसी के बीजों का सेवन करने से आपके बाल काफी चमकदार, स्वस्थ तथा सुन्दर रहेंगे, और उनकी बढ़त में भी काफी इज़ाफ़ा होगा। अलसी के बीजों में ओमेगा 3 फैटी एसिड्स, कॉपर, सेलेनियम, कैल्शियम, मैग्नीशियम, फॉस्फोरस, विटामिन बी और एमिनो एसिड्स (omega-3 fatty acids, copper, selenium, calcium, magnesium, phosphorous, B vitamins, and amino acids) आदि पोषक तत्व मौजूद होते हैं, जो कि बालों के लिए वरदान सरीखे साबित होते हैं।

बालों को झड़ने से रोके – आंवला (Gooseberry)

आंवले को बालों का बेहतरीन टॉनिक (tonic) माना जाता है। यह एक एंटी ऑक्सीडेंट (antioxidant) है, जिसमें विटामिन सी, मिनरल्स, एमिनो एसिड्स, फ्लेवोनॉयड्स तथा टैनिन्स (vitamin C, minerals, amino acids, flavonoid and tannins) की उच्च मात्रा होती है। ताज़े या सूखे आंवले का सेवन करने से बालों का झड़ना रूकता है, इनके सफ़ेद होने में कमी आती है तथा ये स्वस्थ और मज़बूत होते हैं। इसके जलनरोधी और एंटी माइक्रोबियल गुणों (antimicrobial benefits) के कारण सिर में इसके प्रयोग से डैंड्रफ (dandruff) को दूर किया जा सकता है तथा सिर की त्वचा को आराम मिलता है।आंवला के रस को नारियल या आंवला के तेल के साथ मिलाकर बालों की मालिश करें। आप आंवला के पाउडर का हेयर पैक में भी इस्तेमाल कर सकते हैं।

तनाव और चिंता दूर करें (Remove stress and tension)

कई लोग इस बात को नहीं मानेंगे, पर यह सत्य है कि ज़्यादातर बालों का झड़ना आपके ज़्यादा तनाव या चिंता में रहने की वजह से होता है। शारीरिक व्यायाम तथा योग करें। योग आपके शरीर और मस्तिष्क को तरोताज़ा रखता है और चिंता को दूर भगाता है।

रस से उपचार (Juicy treatment)

सिर्फ शरीर और स्वास्थ्य ही नहीं, बल्कि ताज़ा रस बालों के लिए भी काफी उपकारी हैं। अदरक, प्याज और लहसुन का रस लें। इन्हें अच्छे से मिलाएं और अपने सिर पर लगाएं। इसे रातभर छोड़ दें और सुबह बालों को शैम्पू से धो दें। इससे चमत्कारी प्रभाव पड़ता है।

बाल जल्दी बढ़ाने के टिप्स – मसाज  (Massage masti)

सिर में रक्त संचार बढ़ाने और बालों के रोमछिद्रों (hair follicles) को सक्रिय रखने के लिए रोज़ाना कुछ मिनटों तक सिर की मसाज करें। इसके लिए लैवेंडर या बे एसेंशियल आयल का प्रयोग करें जिसका बेस बादाम या तिल का तेल हो। रोज़ाना इस विधि का प्रयोग करने से सिर में रक्त संचार अवश्य बढ़ेगा। इन सब के बाद हम यही कहना चाहेंगे कि अपना समय व्यर्थ न करें और अनावश्यक उत्पाद खरीदकर अपने पैसे बर्बाद न करें। ऊपर दी गयी विधियों का प्रयोग करने से भी आपको स्वस्थ और सुन्दर बालों की प्राप्ति होगी।

प्रोटीन युक्त भोजन (A protein rich diet)

प्रोटीन युक्त भोजन करना इस स्थिति में सबसे अच्छा होता है। दुनिया की अन्य किसी भी चीज़ की तुलना में प्रोटीन आपके बालों को सबसे तेज़ गति से बढ़ाने में मदद करता है। बालों में केराटिन की मौजूदगी पायी जाती है। यह एक तरह का प्रोटीन आधारित एमिनो एसिड होता है जो कि बालों की बढ़त सुचारू रूप से करने में काफी बड़ी भूमिका निभाता है। अगर आप प्रोटीन की पर्याप्त मात्रा नहीं ले रहे हैं, तो आपके बालों में केराटिन की मात्रा भी कम हो जाती है। बालों में केराटिन की मौजूदगी बालों को स्वस्थ रूप से बढ़ाने के लिए आपके द्वारा लिए जाने वाले प्रोटीन पर निर्भर करती है। अतः अगर आप रोजाना के खानपान में प्रोटीन की मात्रा बढ़ा लें तो बाल काफी जल्दी और तेज़ी से बढ़ेंगे।

एमिनो एसिड (Amino acid boost hair growth)

एमिनो एसिड से भी तेज़ी से बाल बढ़ाने में काफी मदद मिलती है। इस एमिनो एसिड को सीस्टीन (cysteine) कहते हैं। यह एक तरह का एंटी ऑक्सीडेंट होता है जिसमें पर्याप्त मात्रा में मौजूद प्रोटीन की वजह से आप इसका रोज़ाना सेवन कर सकते हैं। इसके लिए प्रोटीन युक्त भोजन ज़्यादा मात्रा में करें जिससे प्राकृतिक रूप से आप सीस्टीन की अधिक मात्रा ग्रहण कर सकते हैं। सीस्टीन गेहूं के कुछ उत्पादों में भी पाया जाता है और इनमें ग्रेनोला, कॉस्कोस (couscous) और ब्रान प्रमुख हैं।

बालों को रोज़ाना शैम्पू ना करें (Regular shampooing of the hair can be damaging)

अगर आप अपने बालों को तेज़ी से अपने सिर पर उगाना चाहते हैं तो आपको कुछ चीज़ों से बचना होगा। अपने बालों को रोज़ाना कतई ना धोएं। इससे आपके बालों को फायदे से ज़्यादा नुकसान ही होगा। शैम्पू करने के दौरान इसमें मौजूद हानिकारक केमिकल (chemical) आपके बालों के प्राकृतिक तेल को निकाल लेता है। इससे बालों के दोबारा उगने की प्रक्रिया काफी धीमी तथा प्रभावहीन हो जाती है। हर दूसरे दिन अपने बाल धोएं। इससे आपके बालों की गुणवत्ता बेहतरीन रहेगी और इनकी बढ़त में भी तेज़ी आएगी। इसके अलावा प्राकृतिक शैम्पू का प्रयोग करना भी काफी फायदेमंद रहेगा। इससे बालों में प्राकृतिक तेल की मात्रा बरकरार रहने में मदद मिलेगी तथा आपके बाल सालों तक मुलायम और चमकदार रहेंगे।

बाल जल्दी बढ़ाने के उपाय – रोज़ाना बालों की ट्रिमिंग (The process of regular hair trimming)

बालों की निरंतर ट्रिमिंग करने से भी इनकी बढ़त की प्रक्रिया में बाधा उत्पन्न होती है। जब आप बालों को छोटा करते हैं तो इससे ये दोबारा तेज़ी से बढ़ने में असमर्थ रहते हैं। इससे बालों के टूटने तथा उनके दोमुंहे होने की समस्या भी पैदा हो जाती है जिससे कि बालों की प्राकृतिक बढ़त काफी प्रभावित होती है। इसके फलस्वरूप आपके बाल काफी खराब दिखने लगते हैं। अतः इस बात को सुनिश्चित करें कि आपके बाल हर 6 से 8 हफ़्तों में ट्रिम हों। इससे आपके बालों की बढ़त में काफी तेज़ी आएगी। असल में बालों की सही देखभाल बालों के बढ़ने की प्रक्रिया भी काफी तेज़ और प्रभावी रूप से होती है।

चौड़े दांतों वाली कंघी का प्रयोग करें (Use a wide tooth wood comb)

पतली कंघी से बालों की बढ़त बुरी तरह प्रभावित होती है तथा इससे आपके सिर की त्वचा पर घाव भी हो जाते हैं। चौड़े दांतों वाली लकड़ी की कंघी आपके बालों और सिर पर काफी नरमी से पेश आती है। ये कंघी सिर में मसाज (massage) का प्रभाव छोड़ती है तथा सिर की त्वचा से बालों में प्राकृतिक तेल का संचार करती है। अतः अगर आप स्वस्थ बालों की बढ़त सुनिश्चित करना चाहते हैं तो पतले और नुकीले प्लास्टिक (plastic) के कंघे इस्तेमाल ना करें।

बाल जल्दी बढ़ाने के उपाय – नाखून रगड़ें (Fingernails rubbing)

हर रोज़ 10 मिनट तक नाखूनों को आपस में तेज़ी से रगड़ने से बालों की बढ़त में इज़ाफ़ा होता है तथा वे स्वस्थ और मज़बूत बनते हैं। यह काफी प्रभावी विधि है और प्राचीन काल से चली आ रही है। कई लोगों का तो यहां तक कहना है कि इस पद्दति के फलस्वरूप सिर के गंजे भागों में भी बाल आ जाते हैं। इस विधि का आप कहीं पर भी किसी भी समय प्रयोग कर सकते हैं।